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बडॆ जोर-शोर से शुरु की गई स्वास्थ एंव परिवार कल्याण मंत्रालय , भारत सरकार की योजना माँ और शिशु स्वास्थ मे होम्योपैथी की उपयोगिता का लगभग अंत निशिचित ही है । गुजरात मे किये गये अच्छॆ परिणामों को देखते हुये ऊ.प्र. मे भी इस योजना पर लाखॊं खर्च हुये , बडी-२ नीतियाँ बनाई गई , थोडॆ बहुत प्रशिक्षि्ण भी दिये गये लेकिन न तो कोई स्पष्ट नीति ही थी और न कोई स्पष्ट दिशा निर्देश तो अंत तो निशिचित ही था ।
थमी मां-बच्चे की सेहत संवारने की मुहिम
साभार : दैनिक जागरण , २१ जनवरी २००९
आशीष मिश्र लखनऊ, 21 जनवरी : मां और नवजात को बीमारियों से निजात दिलाने में होम्योपैथी कारगर है। सरकार ने भी इसे पहचाना। राज्य में एक योजना शुरू की। इसके तहत अधिकारियों, डाक्टरों से लेकर कर्मचारियों तक को मां व बच्चे का स्वास्थ्य सुधारने का प्रशिक्षण देने का कार्यक्रम बनाया। अधिकारियों व कुछ डाक्टरों को प्रशिक्षित भी किया गया। लाखों खर्च हुए। अब सरकारी सुस्त पड़ गयी। न तो एलोपैथ व आयुर्वेद डाक्टरों को ट्रेनिंग मिली और न ही मरीजों के इलाज के लिए कोई रणनीति तय हुई। नतीजा इलाज की एक कारगर रणनीति मरीजों से दूर है। राज्य में बीते फरवरी माह में नेशनल कैम्पेन आन होम्योपैथी फार मदर एंड चाइल्ड केयर नाम से एक राष्ट्रीय कार्यक्रम की शुरूआत की गयी थी। इसके तहत सभी विधा के चिकित्सकों को होम्यपैथी से मां और बच्चे से जुड़ी बीमारियों के इलाज का प्रशिक्षण देना था। यह सिद्घ हो चुका है कि यदि प्रसूता को समय पर होम्यौपैथिक दवाओं का सेवन कराया जाये तो न केवल बच्चा स्वस्थ पैदा होता है। साथ ही प्रसव के दौरान जटिलता और मृत्यु की आशंका भी घट जाती है। गुजरात के अच्छे नतीजों को देखते हुए उत्तर प्रदेश में बड़े ही जोरशोर के साथ उक्त योजना शुरू की गयी। लाखों रुपये खर्च कर अधिकारियों, होम्योपैथिक मेडिकल कालेज के प्रधानाचार्यो और चिकित्सकों को प्रशिक्षित किया गया। लेकिन इसके बाद योजना सुस्ती का शिकार हो गयी। आगे कोई भी प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित नहीं हुआ। ऐसे में होम्योपैथी से दूसरी विधा के डाक्टरों द्वारा इलाज करना संभव नहीं था। मरीजों तक नहीं पहुंची योजना अधिकारियों को प्रशिक्षण देने के बाद योजना थम गयी। न तो सभी 1216 होम्यौपैथिक मेडिकल आफीसर और न ही एलोपैथ व आयुर्वेद विधा के चिकित्सकों को कोई प्रशिक्षण मिल पाया। प्रशिक्षण पाने वाले सभी चिकित्सकों को मां व बच्चे की बीमारियों से जुड़ी दवाओं की किट मुहैया कराने की बात तो दूर की कौड़ी ही साबित हुई। योजना से जुड़े एक अधिकारी के मुताबिक केंद्र-राज्य सम्बन्धों का असर इस कारगर योजना पर पड़ा है। केंद्र से न तो सहायता राशि मिली है और न ही कोई गाइड लाइन। नतीजा लाखों रुपये खर्च करने के बार मरीजों को इसका कोई लाभ नहीं मिल पाया। केंद्र से करेंगे मांग निदेशक, होम्योपैथी सेवाएं डा. बीएन सिंह का कहना है कि नेशनल कैम्पेन आन होम्योपैथी फार मदर एंड चाइल्ड केयर के लिए केंद्र से रुकी धनराशि लेने के कई प्रयास हुए हैं। जल्द ही एक दूसरा रिमांडर भेजा जा रहा है। यहां से अनुमति मिलते ही योजना सही ढंग से लागू हो जायेगी ।
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