सफ़ेद दाग और होम्योपैथी- आशा की एक किरण -भाग-१ (Leucoderma & homeopathy- an ultimate hope -Part-1)

Tuesday 14 August, 2007

  leucoderma लियकोडर्मा पर पिछली दो पोस्टों से अब की बार कुछ हट कर बात करते हैं। लेकिन यह बिल्कुल आवशयक नही कि मेरे तरीके दूसरे होम्योपैथिक चिकित्सक पसन्द करें और एक राय बनायें । सच तो यह है कि आज होम्योपैथी क्लासिकल और नान -क्लासिकल होम्योपैथी मे बुरी तरह से फ़ँस कर रह गयी है। हर चिकित्सक का औषधि देने का तरीका अलग-2 होता है , भले ही हम अपने को कितने सिद्दांत्वादी कह ले , लेकिन कही न कही हम करते वही हैं जो हम किलीनिकल प्रैकिटिस मे सीखते हैं। क्या क्लासिकल होम्योपैथी गलत है- बिल्कुल नहीं , मेरे यह लिखने का तात्पर्य यह कदापि नहीं है । हैनिमैन ने भी आर्गेनान मे अपने जीवित रहने तक छह बार सुधार किया , लेकिन उसके बाद क्या हुआ ? कुछ दिन पूर्व कलकत्ता के डां शयामल बैनर्जी ने बातों - 2 मे बहुत ही महत्वपूर्ण इशारा किया और मै डा बैनर्जी की बात से काफ़ी हद तक सहमत भी हूँ । बतौर डा बैनर्जी

"अकसर रिपर्टार्जेशन करते समय या तो पोलीक्रेस्ट औषधिया सामने आती हैं या ऐसी औषधियाँ जो कुछ मिलती हुयी या काफ़ी हद तक मिलती प्रतीत होती हु्यी या ऐसी मे वह औषधियाँ जो मियाज्म की पृष्ठभूमि से हैं लेकिन ऐसी औषधियाँ जो नयी और हाल ही मे आयी हैं वह लगभग छूट ही जाती हैं …. ”
यह बात काफ़ी हद तक सच भी है ।

 कुछ इसी तरह के विचार डां देश बन्धु वाजपेजी जी ने मेरी एक पोस्ट सेंकड प्रिसक्र्पशन और सही पोटेन्सी के चुनाव पर रखी थी । आपके अनुसार,

Since commence of Homeopathic doctrine in existence from Medicine of Experiences unto the appearance of the Organon of Medicine 6th edition, Hahnemann have changed many times his doctrine and philosophy, which he laid down in earliest period in their subsequent editions. These changes are itself proved that there is need to make much more changes in the practical way. Why we forget that Boenninghausen convinced Hahnemann for alternation of medicine rule inclusion in Organon. If you go Hahnemannian Life History and also in some writings, Hahnemann himself used and advocated alternation of two remedies at a time. Why you forget the famous trio of Boenninghausen, which is still effective in Spasmodic croup.But due to opposition of the then followers Hahnemann geared back to include this law.

हाल के दिनो मे देखें काफ़ी नयी होम्योपैथिक औषधियाँ प्रयोग के लिये तैयार हैं , लेकिन बात वही आ कर फ़ँस जाती है कि इनका उपयोग करने की जहमत कौन उठाये ।  ओ. बी. जूलियन की मैटिया मेडिका , डा घोष की ड्र्ग्स आफ़ हिन्दुस्तान, ऎन्शुट्ज की रेअर होम्योपैथिक मेडिसिन्स मे बहुत सी नयी औषधियों का समावेश है , उनको व्यवहार मे लाना तो होगा , मगर कैसे ? जब आप उनका उपयोग ही नही करोगे तो कहाँ से वह कसौटी पर उतरेगीं, जबकि इन औषधियों का कार्य कई रोगों मे अधिक त्वरित है। यही हाल बैच फ़्लावर औषधि और मदर टिन्चर के साथ भी है । डां रौजर वान वैन्डर्वुर्ड की कम्पलीट रिपर्ट्री को खोल कर देखें तो बहुत सी औषधियों के क्लीनिकल प्रमाण लियकोडर्मा मे दिखते हैं , यह बात अलग कि इनमे से अधिकांश औषधि भारत मे नही मिलती , और शायद इनका न मिलने का कारण होम्योपैथिक चिकित्सकों द्वारा नयी औषधियों के प्रति अरुचि दिखाना   है ।
लेकिन मैने पाया कि पुराने और जटिल रोगों मे अगर हम क्लासिकल और नान-क्लासिकल होम्योपैथी का संगम ले कर चलते हैं तो उनके परिणाम अधिक सुखद दिखते हैं। मै समझता हूँ कि बहुत से होम्योपैथिक चिकित्सक इनका प्रयोग सफ़लता पूर्वक कर रहे हैं लेकिन बोलने की हिमाकत नही करते क्योंकि फ़िर उनकी टाँग- खिचाई यह क्लासिकल वाले कुछ अधिक ही कर डाल देते हैं ) , तो जाहिर है कि कि मै हैनिमैन और केन्ट के तरीको से थोडा हट कर बात कर रहा हूँ, हाँ , यही सत्य है, कम से कम लियकोडरमा के रोगियों मे मै अपने ही तरीके से चलना पसन्द करता हूँ। हर साल कुछ नये रोगी लियकोडर्मा के मिलते रहते हैं , कुछ इनमे से ठीक होते हैं तो कुछ नही भी और कुछ बिना समय दिये ही जल्दी भाँगने मे भलाई समझते हैं , इतने सालों मे मै अपने कोई रिकार्ड व्यवस्थित न रख पाया लेकिन गत वर्ष होम्पैथ के case analysis साफ़्टवेऐर से लियकोडर्मा के रोगियों की सही ढँग से समीक्षा करने का मौका पडा । इस एक साल के दौरान २२ रोगी लिये गये जिनमें से ७ रोगियों ने १-२ महीने के अन्तराल पर इलाज छोडा , बाकी बचे १५ , इनमे से ७ पूर्णतया ठीक हुये और ४ को कुछ महीने के बाद मना करना पडा क्योंकि इनमे रोग  के पैच काफ़ी बडॆ थे और बाकी बचे ४ जिनका इलाज अभी चल रहा है और रोग मे कमी दिखा रहे हैं।
वैसे जब मै अपने तरीको की ही बात करूँ तो सबसे पहले रोग के प्रमुख कारण ,लियकोडर्मा रोगियों के लिये आहार और पथ्य,  विभिन्न होम्योपैथिक और दूसरी पद्दतियों के चिकित्सकों के मत और  उनके सफ़ल तरीको   पर भी एक चर्चा कर लेना आवशयक समझता हूँ। साथ ही में कुछ टिप्स B.H.M.S. छात्रॊं के लिये भी, विशेष कर रिपर्टाराजेशन करते समय आने वाली दुशवारियों और उनके हल पर भी रहेगीं । एक नजर हम डा सहगल की  "Revolutionized Homoeopathy  यानि इन्कलाबी होम्योपैथी " पर भी डालेगें और साथ ही मे बैच फ़्लावर पर भी एक नजर रहेगी । लेकिन यह सब देखेगें किसी दूसरी पोस्ट में ।  बास आज इतना ही !

क्रमश: आगे जारी .........

 देखें  लियकोडर्मा पर संबधित पोस्ट :


एक अदद डिजिटल कैमेरे की तलाश---- जारी है.....

Tuesday 7 August, 2007

वैसे तो एक अदद  कैमेरे को खरीदने के लिये मै कई महीनों से मन बना रहा हूँ लेकिन मन बनाने से क्या होता है , महँगा , सस्ता , कितने जूम वाला , कितने पिक्सल , भई मेरे समझ मे यह सारे तकनीकी शब्द अधिक नहीं आते । रेट को अगर देखें तो लखनऊ की मार्केट और नेट पर जे. जे. मेहता की साईट में सर्च करने पर कोडक के कैमेरों में रेट का काफ़ी भारी अन्तर साफ़ दिख जाता है । तो क्या करें , लखनऊ  से खरीदें या बाहर से ?


लेकिन चन्द दिन पहले अमित ने कैमेरे लेने के पहले कुछ विचारणीय बातों को ध्यान मे लेने की सलाह दी ,



लेकिन, कैमरा लेने से पहले यह निश्चय करें कि क्या आपको वाकई कैमरा चाहिए? यदि हाँ तो क्या कारण हैं जिनकी वजह से आपको डिजिटल कैमरा चाहिए? इन कारणों की एक सूचि बना लें(आगे भी काम आएगी, कैमरा मॉडल निर्धारित करने में)।


यह मुझे जँची । अपनी लिस्ट बनायी तो समझ मे आया कि मुझे खासकर त्वचा संबधित रोंगों में जैसे लियोकोडर्मा , फ़ंगल संक्रमण आदि मे पेपर तैयार करने के लिये फ़ोटोग्राफ़ की आवशयकता अक्सर पडती है । जो कैमरा अभी मै प्रयोग कर रहा हूँ उसमे फ़ॊटो तो खिचं जाती है लेकिन इन की बारीकियाँ नजर नही आती । और इसके अलावा बाकी मौकों पर तो उसका काम है ही ।


आजकल मेरा भान्जा अनन्त जो इन्फ़ोसीस से अगले महीने जुडने वाला है , लखनऊ भ्रमण के लिये आया हुआ है और साथ मे है उसके कैनन का  S2IS कैमरा। अब इतने बढिया कैमेरे को देखकर तो मेरी उनीदीं आँखों मे ताजगी आ गयी । सोचा कि चलो इससे ही फ़िलहाल हाथ आजमायें । घर की फ़ुलावारी तो आजकल सूनी पडी है , गुलदाउदी के पौधों का रोपण इस सप्ताह बारिश के आरम्भ होते ही कर दिया । गुलमेहंदी के पौधे अभी तो बहुत ही छोटे हैं , हाँ , लेकिन नरगिस मे अबकी बार कुछ जल्द ही फ़ूल आ गये । तो फ़िर किसका फ़ोटो सेशन करें ; हाँ , पक्षियों का यहाँ कोई अकाल नहीं है । पैराकीट ( बजरी ) अपने पूरे शबाब में है यानि प्रजनन के लिये तैयार और इतने रोंमान्टिक मौसम मे कबूतरों मे भी जोडे बनाने की होड सी लगी है । इसी फ़ोटो सेशन की तो  मुझे तलाश थी , जो कल मिल गयी । आप भी देखो और लुत्फ़ उठाओ । हाँ, अधिकतर फ़ोटो अनन्त के ही खीचे हुये हैं ।


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 एक वीडियो भी जो कैमरे को फ़िन्च के पिंजरे के अन्दर रखकर रिकार्ड किया










 


 

खलील जिब्रान -एक विद्रोही व्यक्तित्व

Thursday 26 July, 2007








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खलील जिब्रान की साहित्यिक कृतियों को मै पहले भी पढ चुका हूँ ,  विद्रोह की ऐसी आँधी  मैने किसी  लेखक मे पहले कभी न देखी। खलील के विद्रोही तेवर इनकी कथाओं मे साफ़ दिखाई पडते हैं . खलील के समग्र साहित्य मे गहरी जीवन अनूभूति , संवेदन शीलता , भावात्मकता , व्यग्यं एवं पाखडं के प्रति गहरा विद्रोह साफ़ दिखता है । हाल ही मे डां महेन्द्र मित्तल द्वारा संपादित और संकलित खलील की श्रेष्ठ कहानियों को दोबारा पढने का मौका मिला । इसमे कोई अतिशयोक्ति नही कि खलील की लेखनी मे आग है । अपनी कथाओं के माधयम से उन्होंने समाज , व्यक्ति , धार्मिक पाखण्ड , वर्ग संघर्ष , प्रेम और कला पर अपनी सारगर्भित लेखनी चलाई है।

खलील के कहानी संग्रह ’स्पिरिटस रिबेलियस ’ ( विद्रोही आत्मायें ) मे उनके विद्रोही स्वर मुखरित हुये थे । सर्वप्रथम यह पुस्तक अरबी भाषा मे छपी थी । बाद मे विशव की अनेक भाषा मे इसका अनुवाद हुआ । उनकी अन्य रचनाओं मे अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित ’ दि मैड मैन ’ , ’ दि फ़ोर रनर’ , ’दि प्राफ़िट’ आदि प्रमुख हैं । खलील की ’स्पिरिटस रिबेलियस ’ ( विद्रोही आत्मायें ) मे जो कथायें संगृहीत थी , उसमे समाज के जीर्ण-शीर्ण और जड हुये स्वरुप पर तीखे प्रहार किये गये थे । चर्च के पुरहोतों ने इस पुस्तक को खतरनाक , क्रान्तिकारी ,और देश के युवको को जहर भरने वाला मानते हुये बेरुत के बाजारों मे सरे आम जलया था ।

kjran  डा महेन्द्र मित्तल द्वारा संग्रहीत इस पुस्तक मे ’स्पिरिटस रिबेलियस ’ ( विद्रोही आत्मायें )  से १४ कहानियाँ ली गयीं है , जैसे ’ आत्मा का उपहार ’ , नई दुलहिन , ’ दोस्त की वापसी ’ , ’ सवेरे की रोशनी ’ , ’ विद्रोही आत्मायें ’ , ’ तूफ़ान ’ , ’ पागल जान ’ , ’ शैतान ’ , ’ गुलामी ’ , कंब्रों का विलाप ’ , ’महाकवि ’ , इन्साफ़ ’ ,  ’ तीन चीटियाँ ’  और ’ पवित्र नगर ’ । ”

 ’ विद्रोही आत्मायें ’ मे कहानी रशीद बेग और गुलबदन की शादी और बाद मे गुलबदन  की बेवफ़ाई पर जाकर टिकती है । रशीद बेग जो बेरुत का समृद्द और धनवान व्यक्ति था , अपने से काफ़ी कम उभ्र की लडकी गुलबदन से निकाह रचाता है , लेकिन नियति को कुछ और ही मन्जूर था , गुलबदन का प्रेम अपने हम उभ्र लडके से हो जाता है जो बहुत ही गरीब था । और तब तक उसे यह सच्चाई समझ आ जाती है कि रशीद बेग उसे सिर्फ़ अपनी भूख मिटाने के लिये इस्तेमाल कर रहा है । लेकिन धर्मशास्त्र उसके आगे राह रोके खडे थे , लेकिन इसके बावजूद भी उसने एक साहसिक निर्णय लिया । आगे एक बानगी देखें , खलील की कलम से ’,

" मै चलता जा रहा था और गुलबदन की आवाज मेरे कानो मे गूंज रही थी ।..........मैने अपने आप से कहा , ’ आजादी के स्वर्ग के सामने से पेड सुंगधित हवा का आंनद ले रहे हैं और सूरज और चांद की किरणों से आनंदित हो रहे हैं । ... इस धरती पर जो चीज है , वह अपनी इच्छा के अनुसार जिंदगी बसर करती है और अपनी आजादी पर फ़ख्र करती है । लेकिन इन्सान अब वैभव से वंचित है , क्योंकि उनकी पाक रुहें दुनिया के तंग विधानों की गुलाम हैं । उनकी रुहों और जिस्मों के लिये एक ही ढाँचे मे ढला कानून बनाया गया है और उनकी इच्छाओं तथा ख्वाहिशों को एक छिपे हुये और तंग कैदखाने मे बंद कर दिया गया है । उनके दिमाग के लिये एक गहरी और अंधेरी कब्र खोदी गई है । अगर कोई उसमे से उठे और उनके समाज और कारनामो से अलग हो जाये तो कहते है कि कि यह आदमी विद्रोही और बदमाश है । यह आदमी बिरादरी से खारिज है और मार डालने लायक है ! लेकिन क्या इंसान को कयामत तक इस सडियल समाज की गुलामी मे जिंदगी बिताते रहना चाहिये या उसे अपनी आत्मा को इन बंधनॊ से मुक्त कर लेना चाहिये ? क्या आदमी को मिट्टी मे पडे रहना चाहिये या अपनी आंखों को सूर्य बना लेना चाहिये , ताकि उसके शरीर की छाया कूडे-करकट पर पडती हुई नजर न आये ? "

’पागल जाँन ’- यह कहानी जाँन  नामक एक सीधे-साधे और भोले ग्रामीण युवक की है जो प्रभु ईशू से बेपनाह प्यार करता है । एक दिन जब वह अपनी बैलों को घास चराने खेतों की तरफ़ ले गया था तो उनमे से एक बैल संत एलिजा मठ के खेतों मे प्रवेश कर गया, प्रभु ईशू की भक्ति मे तल्लीन जान को जरा सा भी इस बात का बोध न हुआ । लेकिन शाम  होते-२ जब वह अपनी बैलों को ढूँढने मे नाकाम रहा तो उसकी नजर संत एलिजा मठ के खेतों मे जाने वाले रास्ते पर पडी । वहाँ खडे एक पादरी से डरते-२ उसने अपनी खोये हुये बैल के बारे मे पूछा , वह पादरी उसे अपने मठ के अन्दर ले गया जहाँ अन्य छोटे बडे कई चोगा धारी पहले से मौजूद थे और बडे गुस्से और हिकारत से उसकी तरफ़ देख रहे थे ।

 उनमे से लाट पादरी ने गुस्से से कहा ,

 "..... तू गरीब है या अमीर , इससे मठ को कुछ  लेना देना नही है । ...अगर तू अपने बैलों को छुडाना चाहता है तो तुझे मठ को तीन दीनार देने होगें । "

जान ने पैसे देने से इन्कार किया और कहा कि एक गरीब चरवाहे पर रहम खाइये ।

लेकिन इस पर लाट पादरी ने कडक कर कहा ,

 " तो फ़िर तुझे अपनी जायदाद का कुछ हिस्सा बेच कर तीन दीनार लाने होगें , क्योंकि संत एलिजा के गुस्से का शिकार बनकर नरक मे जाने की बनिस्बत जमीन जायदाद से महरुम होकर स्वर्ग मे जाना अच्छा है ।"

यहाँ खलील की आग को उसके लेख मे आप स्वत: महसूस कर सकते है । जान के रूप मे खलील जिब्रान तथाकथित धर्मगुरुओं पर जोरदार  निशाना लगाते हैं । चर्च की जगह पर मन्दिर या मस्जिद , पादरी की जगह पर अपने-२ धर्मगुरुओं  को आप रखकर देखें तो यह कहानी आप के अपने-२ समाज के तंग गलियारों मे घूमती हुयी दिखेगी ।

यह सब सुनते ही जान आपे से बाहर हो गया और ललकार कर कहा ,

 " ऐ पाखंडियों ! भगवान ईसा की सिखावन को तुम लोग इसी तरह तोड मरोडते हो ; और इसी तरह अपनी बुराइयों को फ़ैलाने के लिये तुम लोग जिंदगी की पाक परंपराओं को खराब करते हो ... । लानत है तुम पर ! ....धिक्कार है तुम पर , ऐ ईसा के दुशमनों ! तुम अपने  ओंठ प्रार्थना के लिये हिलाते हो लेकिन उसी समय तुम्हारे दिल लालसाओं से भरे होते हैं ।....."

" गर्दिश के मारे हमारे घरों को देखो , जहां बीमार लोग सख्त बिस्तरों पर करहाते रहते हैं ...अपने गुलाम अनुयायियों के बारे मे सोचो तो सही कि उधर वह भूख से तडप रहे हैं और इधर तुम ऐशो-इशरत की जिंदगी बसर कर रहे हो ... उनके बागों के फ़ल खाकर और अंगूरों की शराब पीकर तुम मौज उडा रहे हो ! .....जहरीले नाग के फ़न की तरह तुम अपने हाथ फ़ैलाते हो और नरक का डर दिखा उस बेवा का बचाया हुआ थोडा सा पैसा छीन लेते हो ।....."

जाँन ने गहरी साँस ली और शांति से बोला ,

 " तुम लोग बहुत हो और मै अकेला हूँ । जो भी चाहो , तुम मेरे साथ कर सकते हो । रत के अंधेरे मे भेडिये मेमने को फ़ाडकर खा जाते हैं , मगर उसके खून के धब्बे घाटी के पत्थरों पर दिन निकलने तक बाकी रहते हैं और सूरज सबको उस गुनाह की खबर कर देता है ।"

 ’शैतान ’ कहानी का सार बहुत ही सार्गर्भित और ईशवर और शैतान की परिकल्पना पर रोशनी डालने  वाला है । यह कहानी उत्तरी लेबनान के एक पुरोहित ’पिता इस्मान ’ की है जो गाँव-२ मे घूमते हुये जनसाधारण को धार्मिक उपदेश देने का काम करते थे । एक दिन जब वह चर्च की तरफ़ जा रहे थे तो उन्हें जंगल मे खाई में एक आदमी पडा हुआ दिखा जिसके घावों से खून रिस रहा था । उसकी चीत्कार की आवाज को सुनकर जब पास जा कर पिता इस्मान ने गौर से देखा तो उसकी शक्ल जानी -पहचानी सी मालूम हुयी । इस्मान ने उस आदमी से कहा , ’ लगता है कि मैने कहीं तुमको देखा है ? ’

और उस मरणासन आदमी ने कहा ,

" जरुर देखा होगा । मै शैतान हूँ और पादरियों से मेरा पुराना नाता है ।"

 तब इस्मान को ख्याल आया कि वह तो शैतान है और चर्च मे उसकी तस्वीर लटकी हुई है । उसने अपने हाथ अलग कर लिये और कहा कि वह मर ही जाये ।

वह शैतान जोर से हँसा और उसने कहा ,

" क्या तुम्हें यह पता नहीं है कि अगर मेरा अन्त हो गया तो तुम भी भूखे मर जाओगे ?. ... अगर मेरा नाम ही दुनिया से उठ गया तो तुम्हारी जीवका का क्या होगा ?"

"एक पुजारी होकर क्या तुम नही सोचते कि केवल शैतान के अस्तित्व ने ही उसके शत्रु ’ मंदिर ’का निर्माण किया है ? वह पुरातन विरोध ही एक ऐसा रहस्मय हाथ है , जो कि निष्कपट लोगों की जेब से सोना - चांदी निकाल कर उपदेशकों और मंहतों की तिजोरियों में संचित करता है । "

" तुम गर्व मे चूर हो लेकिन नासमझ हो । मै तुम्हें ’ विशवास ’ का इतिहास सुनाऊगाँ और तुम उसमे सत्य को पाओगे जो हम दोनो के अस्तित्व को संयुक्त करता है और मेरे अस्तित्व को तुम्हारे अन्तकरण से बाँध देता है ।"

" समय के आरम्भ के पहले  प्रहर मे आदमी सूर्य के चेहरे के सामने खडा हो गया और चिल्लाया , ’ आकाश के पीछे एक महान , स्नेहमय और उदार ईशवर वास करता है ।"

" जब आदमी ने उस बडे वृत की की ओर पीठ फ़ेर ली तो उसे अपनी परछाईं पृथ्वी पर दिखाई दी । वह चिल्ला उठा , ’ पृथ्वी की गहराईयों में एक शैतान रहता है जो दृष्टता को प्यार करता है । ’

’ और वह आदमी अपने -आपसे कानाफ़ूसी करते हुये अपनी गुफ़ा की ओर चल दिया , ’ मै दो बलशाली शक्तियों के बीच मे हूँ । एक वह , जिसकी मुझे शरण लेनी चाहिये और दूसरी वह , जिसके विरुद्द मुझे युद्द करना होगा । ’

" और सदियां  जुलूस बना कर निकल गयीं , लेकिन मनुष्य दो शक्तियों के बीच मे डटा रहा - एक वह जिसकी वह अर्चना करता था , क्योंकि इसमे उसकी उन्नति थी और दूसरी वह , जिसकी वह निन्दा करता था , क्योंकि वह उसे भयभीत करती थी । ".............

 

थोडी देर बाद शैतान चुप हो गया और फ़िर बोला ,

" पृथ्वी पर भविष्यवाणी का जन्म भी मेरे कारण हुआ । ला-विस प्रथम मनुष्य था जिसने मेरी पैशाचिकता को एक व्यवासाय बनाया  । ला-विस की मृत्यु के बाद  यह वृति एक पूर्ण धन्धा बन गया और उन लोगों ने अपनाया जिनके मस्तिष्क मे ज्ञान का भण्डार है तथा जिनकी आत्मायें श्रेष्ठ , ह्र्दय स्वच्छ एवं कल्पनाशक्ति अनन्त है । "

"बेबीलोन ( बाबुल ) मे लोग एक पुजारी की पूजा सात बार झुक कर करते हैं जो मेरे साथ अपने भजनों द्वारा युद्द ठाने हुये हैं ।"

" नाइनेवेह ( नेनवा ) मे वे एक मनुष्य को , जिसका कहना है कि उसने मेरे आन्तरिक रहस्यों को जान लिया है , ईशवर और मेरे बीच एक सुनहरी कडी मानते हैं । "

" तिब्बत में वे एक मनुष्य को , जो मेरे साथ एक बार अपनी श्क्ति आजमा चुका है , सूर्य और चन्द्र्मा के पुत्र के नाम से पुकारते हैं । "

" बाइबल्स में ईफ़ेसस औइर एंटियोक ने अपने बच्चों का जीवन मेरे विरोधी पर बलिदान कर दिया । "

" और यरुशलम तथा रोम मे लोगों ने अपने जीवन को उनके हाथों सौंप दिया , जो मुझसे घृणा करते हैं और अपनी सम्पूर्ण शक्ति द्वारा मुझसे युद्द मे लगे हुये हैं । "

" यदि मै न होता तो मन्दिर न बनाये जाते , मीनारों और विशाल धार्मिक भवनों का निर्माण न हुआ होता । "

" मै वह साहस हूँ , जो मनुष्य मे दृढ निष्ठा पैदा करता है "

" मै वह स्त्रोत हूँ , जो भावनाओं की अपूर्वता को उकसाता है । "

" मै शैतान हूँ , अजर-अमर ! मै शैतान हूँ , जिसके साथ लोग युद्द इसलिये करते हैं कि जीवित रह सकें । यदि वह मुझसे युद्द करना बंद कर दें तो आलस्य उनके मस्तिष्क , ह्र्दय और आत्मा के स्पन्दन को बन्द कर देगा ...।"

" मै एक मूक और क्रुद्द तूफ़ान हूँ , जो पुरुष के मस्तिष्क और नारी के ह्र्दय को झकझोर डालता है । मुझसे भयभीत होकर वे मुझे दण्ड दिलाने मन्दिरों एवं धर्म-मठों को भाग जाते हैं अथवा मेरी प्रसन्नता के लिये, बुरे स्थान पर जाकर मेरी इच्छा के सम्मुख आत्म -समर्पण कर देते हैं ।"

" मै शैतान हूँ अजर-अमर  ! "

" भय की नींव पर खडे धर्म - मठॊ का मै ही निर्माता हूँ । .....यदि मै न रहूँ तो विशव मे भय और आनन्द का अन्त हो जायेगा और इनके लोप हो जाने से मनुष्य के ह्र्दय मे आशाएं एंव आकाक्षाएं भी न रहेगीं । "

" मै अमर शैतान हूँ ! "

" झूठ , अपयश , विशवासघात , एवं विडम्बना के लिये मै प्रोत्साहन हूँ  और यदि इन तत्वों का बहिष्कार कर दिया जाए तो मानव- समाज एक निर्जन क्षेत्र-मात्र रह जायेगा , जिसमें धर्म के कांटॊं के अतिरिक्त कुछ भी न पनप पायेगा । "

" मै अमर शैतान हूँ ! "

 " मैं पाप का ह्र्दय हूँ । क्या तुम यह इच्छा कर सकोगे कि मेरे ह्र्दय के स्पन्दन को थामकर तुम मनुष्य गति को रोक दो ?"

" क्या तुम मूल को नष्ट करके उसके परिणाम को स्वीकार कर पाओगे ? मै ही तो मूल हूँ ।"

" क्या तुम अब भी मुझे इस निर्जन वन मे इसी तरह मरता छोडकर चले जाओगे?"

" क्या तुम आज उसी बन्धन को तोड फ़ेंकना चाहते हो , जो मेरे और तुम्हारे बीच दृढ है ? जबाब दो , ऐ पुजारी ! "

 

पिता इसमान व्याकुल हो उठे और कांपते हुये बोले ,

" मुझे विशवास हो गया है कि यदि तुम्हारी मृत्यु हो गयी तो प्रलोभन का भी अन्त हो जायेगा और इसके अन्त से मृत्यु उस आदर्श शक्ति को नष्ट कर देगी , जो मनुष्य को उन्नत और चौकस बनाती है ! "

"तुम्हें जीवित रहना होगा । यदि तुम मर गये तो लोगों के मन से भय का अन्त हो जायेगा और वे पूजा - अर्चना करना छोड देगें , क्योंकि पाप का अस्तित्व न रहेगा ! "

और अन्त मे  पिता इस्मान ने अपने कुरते की बाहें चढाते हुये शैतान को अपने कंधें पर लादा और अपने घर को चल दिये ।

 

 ’खलील जिब्रान ’ से संबधित साहित्य को आप  यहाँ , यहाँ, और यहाँ से आन लाइन पढ सकते हैं।





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विद्रोही

प्रसूता मे दूध का अभाव और होम्योपैथी ( Lactation failure & Homeopathy)

Thursday 12 July, 2007

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डा जयश्री जोशी एक बाल रोग चिकित्सका हैं और महाराष्ट्र के किसी ग्रामीण इलाके मे प्रैकिटिस करती हैं . एलोपैथिक चिकित्सक होने के बावजूद उनका रुझान होम्योपैथी , आयुर्वेदिक और अन्य भारतीय पद्दतियों की तरफ़ अधिक है . हाल ही मे उन्होने ”Lactation failure ’यानि “प्रसूता में दूध का अभाव ” पर एक पोस्ट लिखी थी , देखे यहाँ . कुछ होम्योपैथिक औषधियों का जिक्र उन्होने उस पोस्ट मे किया था , वह मेरे लिये लगभग नई थी , जिनका उपयोग मैने नही किया है , मै अभी तक Ricinus com Q और Lecithin 3x से काफ़ी अच्छे परिणाम निकाल रहा हूँ, इसलिये शायद किसी और नयी औषधि की तरफ़ देखने का मन न हुआ . डा जोशी ने जिन तीन का जिक्र किया था, वह निम्म हैं :
1. गैलेगा आफ़ (Galega officianlis)
2. एसपेरैगैस रेसीमोसा (Asparagus racemosa)
3. विथिनीया सोमिनीफ़ेरा या अशवगन्धा (Withania somnifera)
गत सप्ताह मुझे गैलेगा की प्रमाणिकता देखने का अवसर मिल ही गया , जुडवाँ बच्चे की एक माँ ने जब मुझसे लैक्टेशन समस्या के लिये सलाह माँगी तो हर बार की तरह मैने अपने पुराने विशवस्तों पर निर्भर रहना उचित समझा लेकिन अब कि कोई परिणाम न देखकर गैलगा देने की ठानी , मात्र ४८ घटों के अन्दर गैलगा ने यह समाधान मानो चुटकी मे कर दिया. डां जोशी , आपका धन्यवाद ! लेकिन गैलेगा को छोडकर मुझे अन्य दोनो औषधियों के क्लिनिकल प्रमाण किसी कोश मे नही मिले , यह हो सकता है कि डा जोशी के यह व्यक्तिगत अनुभव रहे हो जो उन्होने अपने रोगियों मे देकर हासिल किये. एक नजर गैलगा की तरफ़ :
1- गैल्र्गा आफ़ (Galega officianlis)

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गैलगा को होम्योपैथिक मैटेरिया मेडिका मे लाने का श्रेय डा. कैरन डी ला कैरी को जाता है . इस औषधि का उल्लेख भारत की होम्योपैथिक फ़ारमाकोपिया और यूनाईटेड स्टेस्ट्स की होम्योपैथिक फ़ारमाकोपिया में है.
होम्योपैथिक उपयोग:
भीषण कमर दर्द , अत्यन्त कमजोरी महसूस करना, रक्तभाव और पाचन क्रिया अव्यवस्थित रहने मे इसके प्रयोग सार्थक है.
इसके अलावा गैलगा का उपयोग प्रसूता मे दूध बढाने मे भी देखा गया है.
गैलगा मे ऐलकैलोडियज (alkaloids) , सैपोनिन (saponnins), फ़्लावोनोड(flavonoids) और टैनिन (tannins)पाये जाते हैं.
गैलगा का एक और उपयोग बढी हुयी शर्करा (blood sugar) को कम करने मे भी है.
पोटेन्सी : Q/1x
इस औषधि को मधुमेह के रोगियों मे प्रयोग करते समय सावधानी रखें और Q की खुराक को सेट करें.

2- ऐसपैगस रैसीमोसा ( Asparagus racemosa)
asparagus-racemosus1.jpg
3- अशवगन्धा ( Withania somnifera)
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ऐसपैगस रैसीमोसा ( Asparagus racemosa) और अशवगन्धा (Withania somnifera) के लिये यहाँ देखें.

लैकेटेशन से संबधित कम्पलीट रिपर्टरी और सिन्थिसिस रिपर्टरी पर उपलब्ध संकलन को देखने के लिये नीचे दिये चित्र पर किल्क करें . ( pdf आधारित इस फ़ाइल को देखने के लिये एडोब रीडर का प्रयोग करें )
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चन्द लम्हों की ब्लागरिया मुलाकात

Thursday 28 June, 2007

शनिवार को दोपहर मे अचानक क्लीनिक मे जब मोबाइल ने ध्यान भंग किया तो उधर से आवाज आई , "मै बोल रहा हूँ , पहचाने ? " और फ़टाक से बिजली की तरह आवाज को आखिर पहचान ही लिया , यह आवाज अनूप शुक्ल जी यानि फ़ुरसतिया जी की थी . हाँ , कुछ दिन पहले होली पर ही तो इसी अन्दाज मे बात हुई थी . कहने लगे , " अरे मै कल सुबह लखनऊ आऊगाँ और आपसे और पानी के बताशे "अनुराग भाई " से भी मिलने आऊगाँ." मैने सुबह अनूप जी से कहा कि आप पहले मेरे यहाँ आ जायें , फ़िर उसके बाद हम दोनो अनुराग जी के यहाँ चलेगें. लेकिन दोपहर को अनुराग ने फ़ोन पर कहा कि समय बरबाद करने से क्या फ़ायदा , हम लोग एक ही जगह यानि मेरे निवास पर मिलते हैं.
तो इस तरह शुरु हुई यह छोटी सी ब्लागारिया मुलाकात . मेर्री पत्नी ’अनिका ’से दोनो का परिचय हुआ और यह जानकर कि अनिका कानपुर से ही हैं ,अनूप भाई तो कुछ अधिक ही खुश दिखे , इन कानपुरियों के साथ बस यही दिक्कत है , जहाँ कानपुरिये देखे बत्तीसी दिखा दी :lol: :lol: :lol:
लेकिन अनूप भाई की खुशी अधिक देर तक कायम न रह पायी क्योंकि अनुराग ने अनूप जी को कानपुर का होने के नाते भाई का दर्जा दे दिया और अपने को देवर का . अब अनूप जी के सामने परेशानी कि बहन के आयें हैं तो खायें कैसे ? सबसे नीचे देखिये कि बेचारे कितने दुखी दिख रहे हैं . :(
खैर मान मनौवत के बाद उनको खाने को राजी कर ही लिया :idea: . नारद , जीतूभाई , समीर जी , अफ़लातून जी , पंकज और संजय बेगाणी , प्रमेन्द्र , शुएब और हमारे सम्मानित मास्साब के बारे मे खुल कर चर्चा हुई. शाम कैसे आ गयी , मालूम नही पडा , लेकिन मुझे तो क्लीनिक के लिये खिसकना था और इसके बाद यह दोनो अगले दो घटॆं तक सुना है किसी पेड के नीचे बिल्लागिरी करते पाये गये . 8O :roll:

अनूप �ाई, मै और अनुराग �ाई
अनूप भाई , मै और अनुराग जी
अनूप जी और अनुराग
अनूप जी और अनुराग
अनूप जी और मेरी पत्नी ’अनिका’
अनूप जी और मेरी पत्नी ’अनिका’

टेफ़लोन और एलर्जी

Tuesday 26 June, 2007

टेफ़लोन तवे आम तौर से प्रयोग होने वाले टेफ़लोन की पर्त चढे नान स्टिक तवे आजकल गृणियों की पंसद बन चुके हैं. लेकिन अब सावधान हो जायें , क्या यह टेफ़लोन आप के जीवन मे समस्या पैदा कर सकता है ? हाँ , शायद , शोध तो कुछ ऐसा ही इशारा कर रहे हैं.
वैसे तो टेफ़लोन उच्च तपमान को बर्दाशात कर सकता है लेकिन अधिक तापमान पर इसकी पर्त टूट भी सकती है और फ़ल्स्वरुप परफ़्लूरो-औकटोनैक नाम का अम्ल खाने मे मिल सकता है. परफ़्लूरो-औकटोनैक अम्ल के चूहों पर किये गये प्रयोग दिखाते हैं कि इस अम्ल मे दमा के लक्षण उत्पन्न करने की क्षमता है . मौजूदा दौर मे जहाँ लगभग आठ बच्चों मे से एक दमा से पीडित है , यह सर्वेक्षण और शोध दमे के कारणों की ओर महत्वपूर्ण इशारा करते हैं. पूरी जानकारी के लिये देखे डेली मेल की यह रिपोर्ट
इसके पहले सन २००१ मे भी शोधकर्ताओं ने नान -स्टिक तवों से होने वाले नुकसान के बारे मे चेतावनी दी थी. देखे यहाँ

सेंकेंड प्रिसक्पशन और सही पोटेन्सी का चुनाव (Second Prescription & selection of potency)

Sunday 13 May, 2007

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सेंकेंड प्रिसक्पशन और सही पोटेन्सी का चुनाव एक होम्योपैथिक चिकित्सक के लिये हमेशा से सरदर्द रहा है । आज के दौर मे मे वह हैनिमेन या हेरिग के बताये रास्ते पर चले या अपना स्वयं का विवेक लगाये , यह भी एक प्रशन है । संम्पूर्ण होम्योपैथिक फ़िलोसफ़ी मे और पूरे होम्योपैथिक जगत मे कोई भी पोटेन्सी और औषधि के रिपीटीशन पर एकमत नही है। कम से कम मै तो स्वयं कई बार इस परेशानी से दो-चार हो चुका हूँ । अभी दो महीने पहले की ही बात लें , जिस chronic allergic rhinitis के रोगी मे रिपर्टारैज करके मैने सलफ़र 1000 का चुनाव किया था उसने दो दिन बाद से ही अपना असर दिखाना शुरू कर दिया ,लगातार छीकों का दौर जो पिछ्ले 15 सालों से रोगी को परेशान कर रहा था और शायद ही कोई दिन ऐसा रहा हो जब उसको antiallergic जैसे cetrizine लेनी न पडी हो , इस एक हफ़्ते के दौरान कोई भी लेनी न पडी, लेकिन ठीक सातवें दिन लक्षण सब दोबारा आ गये। एक ही हफ़्ते मे सल्फ़र का काम समाप्त ! आशचर्य ! क्या करें दोबारा सल्फ़र दें कि इसको complementary medicine से follow करें। वैसे मेरे पास follow करने के पर्याप्त कारण थे जैसे जिस दिन लक्षण रिपीट हुये उस दिन लखनऊ मे पानी और ओले गिरे थे , एक बार सोचा कि rhus tox , rhodo या dulcamara मे से चयन करें लेकिन अगले दिन तक दूसरी राय ( 2nd opinion ) लेने की सोच ली थी, इन्टरनेट के माध्यम से बने मेरे अभिन्न मित्र डा प्रवीन गोस्वामी जो गया से हैं मुझे आन्लाइन मिल गये और बाद मे प्रवीन की राय से इतफ़ाक रखते हुये सल्फ़र 1000 को दोबारा 7 दिन के अन्दर ही रिपीट किया । दो दिन बाद रोगी की प्रतिक्रिया मे संन्तुष्टि थी लेकिन अब की बार सल्फ़र का काम मात्र मात्र 4 दिन मे ही समाप्त हो गया, पोटेन्सी को बढाया और अब की बार सल्फ़र की 10000 क्रम की पोटेन्सी का चुनाव किया । इस बार सल्फ़र का काम स्थायी रहा और फ़िलहाल इधर एक महीने से लक्षणों मे पुनरावृति नही हुयी हैं लेकिन हकीकत मे पोटेन्सी के चुनाव और सेकन्ड प्रिसक्पशन मे सर्वसम्मति नही दिखती , नीचे कुछ पुराने और नये चिकित्सकों के नजरिये हैं , आइये अवलोकन करें।
हैनिमैन की नजरिये से

HAHNEMANN हैनिमैन

जब तक एक सही चुनी दवा का काम चल रहा हो तब तक चिकित्सक जल्दबाजी मे औषधि के बीच मे न तो किसी और औषधि के रुप मे अडंगा लगायें और न तो औषधि को बीच मे रीपीट करें।


आर्गेनान आफ़ मेडिसिन (Organon of medicine) मे हैनिमैन ने पृष्ठ संख्या 209-213 मे इस बात को साफ़ तौर पर लिख दिया है। बतौर उनके जब तक एक सही चुनी दवा का काम चल रहा हो तब तक चिकित्सक जल्दबाजी मे औषधि के बीच मे न तो किसी और औषधि के रुप मे अडंगा लगायें और न तो औषधि को बीच मे रीपीट करें। आगे देखें:

Organon of medicine पृष्ठ संख्या 209-213
“The third leading mistake that the Homoeopathic physician cannot too carefully or steadfastly avoid is in hastily and thoughtlessly giving some other medicine ... but if once a medicine ... is acting well and usefully, which is seen by the eight or tenth day, then an hour or even half a day may come when a modern homoeopathic aggravation again takes place. The good results may not appear in their best light before the twenty-fourth or thirtieth day. The dose will probably have then exhausted its favorable action about the fortieth or fiftieth day, and before that time it would be injudicious and an obstruction to the progress of the cure to give any other medicine. Experience teaches that a cure cannot be accomplished more quickly and surely than by allowing the suitable antipsoric to continue its action so long as improvement continues ... Whoever can restrain his impatience as to this point will reach his object the more surely and the more certainly ... periods of aggravation will occur, but so long as only the original ailments are renewed and no new, severe symptoms present themselves, they show a continuing improvement, being homoeopathic aggravations which do not hinder but advance the cure. The physician must; therefore, in chronic diseases, allow all antipsoric remedies to act thirty, forty or even fifty and more days by themselves, so long as they continue to improve the diseased state perceptibly to the acute observer, even though gradually; for so long the good effects continue with the indicated doses and these must not be disturbed and checked by any new remedy.”


और आगे पृष्ठ संख्या 212 मे चिकित्सकों को सावधान करते हुये कहा कि जो ऐसा नहीं करगें वह उन जटिल रोगों को मंझदार मे ही छोड कर जायेगें।

In footnote, page 212, we find: “But he who will not allow himself to be convinced of this and imitate what I now teach, he who is not willing to imitate it exactly, can leave the most important chronic diseases uncured.”


केन्ट का नजरिया:
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केन्ट ने हैनिमैन की अवधारणा को बढाते हुये एक चयन की गई औषधि के देने के बाद 12 अवलोकनो (observations)उ को संज्ञान मे लेने के निर्देश दिये, जो बाद मे Kent’s Lectures on Homoeopathic Philosophy मे संग्रहित किये गये। आज के दौर मे अधिकतर होम्योपैथिक चिकित्सक केन्ट के इन अवलोकनो (observations) को पालन करने की कोशिश करते दिख जाते हैं।

संक्षेप में-
1-रोग के लक्षण बढें और साथ ही मे रोगी की स्वास्थ क्षीण होता जाये।
2-रोग के लक्षण बहुत अधिक बढ जाये और रोगी को धीरे-2 लाभ दिखना शुरू हो।
3-किसी भी औषधि को देने के बाद अगर रोग के लक्षण तुरन्त अल्प काल के लिये बढ जायें और उसके कुछ ही दिन के बाद रोगी को लाभ दिखने लगे।
4- किसी भी औषधि को देने के बाद अगर रोग के लक्षण मे बढोतरी न दिखे और रोगी को तुरन्त लाभ पहुंचे ।
5-रोगी को लाभ पहले दिखे और कुछ ही समय के बाद लक्षण बढ जायें।
6-बहुत ही कम समय के लिये लक्षणों मे कमी दिखे।
7-रोग के लक्षणों मे तो कमी दिखे लेकिन रोगी का स्वास्थ क्षीण होता जाये।
8- औषधि के स्वयं के लक्षण रोगी मे दिखने लगे।
10-औषधि देने के बाद नये लक्षण दिखने लगे।
11-रोगी के ऐसे रोग जो पहले हो चुके हों , दोबारा दिखने लगें।
12 -रोग आरोग्य होते समय लक्षण हेरिगं नियम के विपरीत चले।


केन्ट के अनुसार:
1- a prolonged aggravation and final decline of the patient
2- long aggravation, but final and slow improvement.
3- the aggravation is quick, short and strong with rapid improvement of the patient.
4- no aggravation, with recovery of patient.
5- The amelioration comes first and the aggravation comes after .
6- too short relief of symptoms.
7- full time amelioration of the symptoms, yet no special relief of the patient
8- Some patients prove every remedy they get
9- action of the medicine upon provers (
Similar agg after every dose, no matter
which potency)
10- new symptoms appearing after the remedy
11- old symptoms are observed to reappear
12- symptoms take the wrong direction



इन 12 अवलोकनों के निष्कर्षों को पूर्णतया जानने और समझने के लिये यहाँ और यहाँ देखें।
[slideshare id=105891&doc=homeopathic-case-management723&w=425]
लुक डी शेफ़र ( Luc De Schepper's)

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लुक डी फ़िशर ने अपनी पुस्तक "Achieving and Maintaining the Similimum" मे हैनिमैन की अवधारणा को आसान शब्दों मे रखा और उसके बाद का काम बेल्जियम के मार्क वान विजिक (Marc Van Wijk) ने एक power point presentation के जरिये किया । यह एक interactive power point prsentation है और विशेष कर B.H.M.S. के छात्रों के लिये तो अमूल्य ही है । इसको डाऊनलोड करने के लिये नीचे दिये चित्र पर किल्क करें।
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हाल ही मे लुक डी फ़ेशर ने अपने चिट्ठे के जरिये पोटेन्सी और repetition पर अपने विचार रखे। वह क्या कहते हैं , इसको देखने के लिये यहाँ किल्क करें।



The Potency of the Remedy (How Strong?) and the Repetition of the Dose (How often?)

Part One: The Potency Selection (how strong?), the greatest confusion among homeopaths
When it comes to potency selection of the remedy, the homeopathic society never agreed much about this issue, not in the past and certainly not now! There always has been a division between two camps: the high and low potency prescribers. Both parties indeed can demonstrate success but there has to be some kind of middle path, a clear guideline for homeopath and patient alike to bring harmony in this world of madness. I intend to bring enough clarity to unite homeopaths and at the same time to give enough clarity to the patient who deserves the right information……………..
Treatment for Acute diseases
The potency choice for acute diseases (less than 3-4 months old) is simple: use at least a potency from 30C upwards to 200C and 1,000C. Always use the watery method by putting two pellets of your chosen remedy and potency in an 8 oz bottle (Remedy Solution Bottle or RSB), stir well and take one tsp directly from the RSB. Do not repeat earlier than two hours after first dose. When you see a similar aggravation in the first hour (in other words an aggravation of your symptoms during the first hour) this first dose will cure and no further dose will be needed (A157-A158). If symptoms are not entirely gone after two hours, you can repeat the same procedure every two hours after succussing each successive dose (hitting RSB against your palm) 8 times. ……

Chronic Disease treatment
The treatment of chronic diseases (>than 3-4 months existing) is very different. The potency selection (how strong?) will depend on the reactivity of the patient (the reactivity of the Vital Force, Qi in Chinese medicine and to some extent the immune system in allopathy). If the reactivity is good, a stronger potency can be applied. Here are some general guidelines.

ALWAYS Low potencies (starting with 6C and not higher than 30C) are indicated and a must in the following conditions (these three conditions supersede any other indications following further!):
· The patient is a hypersensitive patient: such patient reacts to perfumes, environmental factors like carpets, bleach, newspaper, etc.) or people who react strongly to regular doses of medication and vitamins as well as those that reacted strongly to anesthesia
· The patient has strong pathology: this usually means, he already has received a medical diagnosis and there is extensive pathology involved like destruction of tissues (Multiple sclerosis, Parkinson,etc.) , formation of tumors, deficiency of factors like in diabetes, hyperthyroidy or Basedow disease, autoimmune disorders with destruction, asthma, etc. Also in chronic diseases affecting the heart, brain, eyes, pancreas, lungs
· The patient has a chronic skin disease, especially when treated in past with cortisone: chronic eczema from young age on and psoriasis, just to name two common diseases. Often the symptoms were controlled by cortisone intake/creams and in this case the dose should be minimal (drops instead of tsp) and definitely not higher than 6C potency to start
· Elderly patients: rather start with low potency

Higher Potencies (starting with 30C, then 200C, 1000C, etc.) are indicated in the following conditions:
· In young children (babies included) as long as the three previous conditions are not present; the choice of high potency includes ASD, ADHD, ADD, OCD, etc.
· Adults with functional diseases (no pathology has been shown) like vertigo, gastrointestinal problems, hypertension with no pathology yet, inflammatory processes like Bell's palsy, etc. or adults with only mental/emotional problems such as depression, grief, lack of self confidence, lack of motivation in life, timidity, loss of meaning of life, etc.
· Patients under stress (worries at work, home, in relationships, etc.)

Part Two: the repetition of the Dose (How often), in chronic diseases

The most important thing to remember is that the repetition of a dose is determined on an individual basis. This is quite different than when we take allopathic drugs where your physician tells you to take the drug at a certain time (3 times a day, every evening, etc.), usually based on weight and age of patient……….




……आगे देखने के लिये लुक डी फ़िशर के ब्लाग पर जायें।

मै समझता हूँ कि हमारे देश मे अधिकतर होम्योपैथिक चिकित्सक लुक के तथ्यों से अलग हट के चलते हैं।
लेकिन फ़िशर अपने चिट्ठे मे जाते- 2 एक बहुत महत्वपूर्ण बात कह गये ।

जो रोगी ऐलोपैथिक चिकित्सा करा के होम्योपैथिक चिकित्सा के लिये आ रहे हैं उनके साथ चिकित्सा का रुख क्या हो। त्वचा के रोग, साँस संबधी रोगों आदि मे हम अक्सर देखते हैं कि cortisone के अंधाधुध प्रयोग से रोगी प्राय: इन औषधियों पर निर्भर हो जाता है , यही स्थिति लगभग मानसिक रोगों मे भी देखी जा सकती है जहाँ antidepressants और tranqulisers के चलते रोगी को इन औषधियों को चाहते हुये भी छोडना संभव नहीं होता ।

जो रोगी ऐलोपैथिक चिकित्सा करा के होम्योपैथिक चिकित्सा के लिये आ रहे हैं उनके साथ चिकित्सा का रुख क्या हो। त्वचा के रोग, साँस संबधी रोगों आदि मे हम अक्सर देखते हैं कि cortisone के अंधाधुध प्रयोग से रोगी प्राय: इन औषधियों पर निर्भर हो जाता है , यही स्थिति लगभग मानसिक रोगों मे भी देखी जा सकती है जहाँ antidepressants और tranqulisers के चलते रोगी को इन औषधियों को चाहते हुये भी छोडना संभव नहीं होता । यह स्थिति कमोबक्श उन pseudo mental cases की भी है जहाँ मानसिक रोग न होते भी sedatives जैसे alprozalam आदि का का सहारा लिया गया। वहाँ क्या करें। लुक कहते हैं:



NEVER stop your allopathic medication when starting homeopathic treatment with your chronic patient. Cooperation with your allopathic physician is a must!



दोनों चिकित्सा पद्दति भले ही सिद्दातों मे अलग दिखें लेकिन clinically एक दूसरे की पूरक हैं , अकसर बहुत से रोगों मे जहाँ चिकित्सा की सीमा जटिल परिस्थितियों (chronic stage )पर जा कर ऐलोपैथिक मे फ़ँसती है वहाँ होम्योपैथी उन परिस्थितियों मे बखूबी काम करती है और यही बात होम्योपैथी मे भी है कि पुराने रोगों की acute stage से उबरने मे ऐलोपैथिक चिकित्सा की आवशयकता पड सकती है।



100% खरी बात ! अगर cortisone या antidepressants को आप एकदम से हटा रहे हैं तो इसके परिणाम भी भुगतने को तैयार रहें। जाहिर है कि इन ऐलोपैथिक औषधियों को हटाने की प्रकिया धीरे -2 करनी चाहिये । और इसके लिये आप को अपने ऐलोपैथिक चिकित्सकों से सहयोग लेने मे हिचकना नही चाहिये। इस बात को हमेशा ध्यान रखें कि दोनों चिकित्सा पद्दति भले ही सिद्दातों मे अलग दिखें लेकिन clinically एक दूसरे की पूरक हैं , अकसर बहुत से रोगों मे जहाँ चिकित्सा की सीमा chronic stage पर जा कर ऐलोपैथिक मे फ़ँसती है वहाँ होम्योपैथी उन परिस्थितियों मे बखूबी काम करती है और यही बात होम्योपैथी मे भी है कि पुराने रोगों की acute stage से उबरने मे ऐलोपैथिक चिकित्सा की आवशयकता पड सकती है।

डा राजन शंकरन का नजरिया:
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डा राजन शंकरन का नजरिया एकदम हट कर है जहां अन्य होम्योपैथिक चिकित्सक पुराने ढर्रे पर चलना पंसद करते हैं , वहीं राजन नई सोच को चिकित्सकों के समक्ष रखते हैं।


लेकिन डा राजब शंकरन बिल्कुल ही हट के बात करते हैं और बात भी बहुत वजनी !
कुछ वर्ष पूर्व होमयोपैथिक लिंक्स मे एक पत्र डा गेर्हर्डस लैंग का डा राजन शंकरन के नाम छपा था । डा राजन के विचार आज की परिस्थितयों को देखते हुये बहुत ही महत्वपूर्ण हैं।
मुझे ध्यान पडता है कि ऊ प्र मे गोरखपुर से दिवगंत वयोवृद्द चिकित्सक डा हेमन्त बैनर्जी का औषधि देने का तरीका भी कुछ ऐसा ही था । repetition की परिभाषा को डा शंकरन ने बडे आसान से शब्दों मे रख दिया, " Repetition is giving a reminder (an awareness) and is needed as fast as the person forgets the previous lesson. "
संक्षेप मे डा राजन शंकरन का नजरिया:
क- जटिल और पुराने रोग जैसे hypertension ( उच्च रक्त्चाप),vitiligo(सफ़ेद दाग),osteoarthritis ( गठिया) आदि , जहाँ रोग की चाल धीमी हो वहाँ औषधि का repetition औषधि के कार्यकाल को पूरा हुये बगैर भी कर देना चाहिये।
ख- पुराने और जटिल रोगों में जहाँ कारक ( excitng factor ) मौजूद हो वहाँ भी औषधि का repetition जल्दी होना चाहिये। कारक या excitng factor वह हैं जो आम स्वस्थ मनुष्य में प्रभाव नहीं छोडते लेकिन एक रोगी मनुष्य में समस्या पैदा करते हैं।

बाकी आगे आप स्वयं देखें:

डा लैंग ने डा राजन से जो सवाल पूछे वह कुछ इस तरह से थे:



Gerhardus Lang, M.D., Klinge 10,
D- 7325 Boll

Dear Rajan Sankaran, How often can we repeat a dose? You wrote in your book The Spirit of Homoeopathy that we have to repeat when the dose is exhausted. In chapt. 25 you describe a case of Aurum met. and you gave him Aur.m.200 and 1 M over a period of a year in weekly doses. I should like to know if Aurum was always exhausted after a week and if you did really observe the patient to be sure if the dose was exhausted.




डा राजन शंकरन का उत्तर:




Rajan Sankaran,Mumbai
I have, in the past ten years of practice, in some chronic cases of definite structural pathology, repeated the dose of the indicated remedy despite amelioration. I did this because I found that sometimes by not repeating the dose of the medicine progress comes to a standstill and despite the patient feeling better the pathology remains the same. Further, I found that such repetition did not seem to create any kind of trouble. I must also state that in some cases I found even chronic structural pathology reversing with a single dose. I therefore started thinking in which case a repetition is needed and in which case it is not needed. My conclusions are as follows:
One of the cases I would definitely repeat regularly would be osteoarthritis that requires a remedy like Calc.fluor. A similar example would be a case like hypertension which is chronic and persistent. A third example would be a case of vitiligo. These kind of cases which share a common feature, namely they are chronic and slow in progression. I found in such cases that even though a single dose acts, its action seems to stop after some days or weeks and another dose takes it one step forward, its action lasting for another few weeks and so forth. Gradually I started experimenting with repeating doses even when the person was improving as if anticipating that the dose would exhaust its action. I found this kept the progress uninterrupted. It seemed to depend upon the onset of pathology. If the onset was slow and gradual, repetition was needed in days or weeks. If the onset was sudden and the exciting factor was not there, then repetition was not needed, e.g. sprain or an injury or a fright etc. If the exciting factor was present e.g. certain severe infective pathology as in severe tonsillitis, severe pneumonia, typhoid etc. then repetition would be called for every few hours. The same happens in chronic cases especially in cases where the exciting factor is found in the life of a person, these cases require definite repetition. One must remember that an exciting factor is one that excites a sick person - the same factor may not excite healthy people.
Another factor that influences repetition is excitability of the root within. If the root is strong, the dose exhausts its action quite soon. The excitability of the root can be judged by how sensitive the person is to the exciting factor. Taking all these above factors into consideration, when we look at the case of Aur. given in my book we find
1) Very excitable Aurum root as shown in the fact that increased responsibility excited in him a intense state of Aurum.
2) Such a responsibility was still present (felt by him) as a continuous exciting factor.
3) The pathology was slow and gradual showing the need of repetition. Pathology in the form of IHD (Ischaemic Heart Disease) HT (Hypertension) and diabetes and also peripheral vascular disease - all slow progressive pathology which I feel cannot be reversed by a single dose.
In such cases I can anticipate that the dose will be exhausted very soon. I judge how long to wait by seeing how long the first dose lasts. When its action is over I repeat the dose at the same interval each time, even before the improvement stops. If I know that the first dose lasted two weeks I would repeat the remedy once in 12 days in anticipation.
From experience I found that if other things are constant, i.e. there is no new addition or subtraction of exciting factors, the dose acts for almost the same amount of time. There comes a point, after a few days, months or years, where the dose stops acting or acts for a much shorter time. This is the time to raise the potency. Each time the potency is raised it is advisable to again wait and watch for how long the dose of the new potency works and to repeat at this interval.
The logic of repetition.
What I have stated is from clinical experience of innumerable cases. I have thought about this phenomenon and explain it thus:
1) What is repetition?
Repetition is giving a reminder (an awareness) and is needed as fast as the person forgets the previous lesson. Who is likely to forget and need a reminder? The one who has fallen into such a pattern that just telling him once doesn't make enough impression. There is a tendency to fall into the same pattern again and again and we see this in a chronic or acute case which has a strong exciting factor.
For example, a person coming for an interview is nervous for 3 days before. You give an awareness and his nervousness recedes until he is faced with the interview. His nervousness returns and he needs to be reminded again. As the period of interview comes closer and closer he needs repeated doses of awareness. So, in such a case you might have to repeat Gelsemium again and again.
Where is repetition not required?
An acute where the exciting factor which is not repeated, can easily be dealt with in one dose. Even a chronic case which began with one exciting factor which is no longer there needs very little repetition, I have seen this with Carcinosin. E.g. Carc. is a situation of a child where the parents are asking for perfection and the child fits into this pattern, but if in adulthood this exciting factors no longer exists a single awareness is enough. Here the exciting factor doesn't exist in the present, and little or no repetition is necessary. If you see a case of Calc.fluor where the fellow is struggling about money, with an excitable root from the past plus exciting factors from present, it is impossible to cure with a single dose and the dose will exhaust its action very soon. Even when there is no pathology, but there is only a prominent state, repetition may be needed if the state has come from a very excitable root and there are continual exciting factors around e.g. we see a very strong Bar- carb child coming from a very strong Bar-carb mother. This child is slow dull, laughed at, criticised which makes him even more vulnerable to criticism. People start laughing at him, his family itself considers him an idiot, this child surely requires repetition of Bar-carb very often to get out of this state. The same child in the family which is encouraging and doesn't laugh at him will require less repetition of Bar-carb. Similarly if the child's state has resulted from a strong state of the mother during pregnancy this child is likely to require repetition. If the child's present state resulted from some incident in the child's own past, one isolated incident like fright, this child is not likely to require repetition.
"It is impractical to repeat the same unchanged dose of a remedy once, not to mention its frequent repetition (and at short intervals in order not to delay the cure). The vital principle does not accept such unchanged doses without resistance, that is, without other symptoms of the medicine to manifest themselves than those similar to the disease to be cured, because the former dose has already accomplished the expected change in the vital principle and a second dynamically wholly similar, unchanged dose of the same medicine no longer finds, therefore, the same conditions of the vital force. The patient may indeed be made sick in another way by receiving other such unchanged doses, even sicker than he was, for now only those symptoms of the given remedy remain active which were not homoeopathic to the original disease, hence no step towards cure can follow, only a true aggravation of the condition of the patient. But if the succeeding dose is changed slightly every time, namely potentised somewhat higher then the vital principle may be altered without difficulty by the same medicine (the sensation of the natural disease diminishing) and thus the cure brought nearer" - said Hahnemann in the Organon. This goes against not only my experience, but that of many homoeopaths. As far as I know no homoeopath has refrained from repeating the same dose and so not only Hahnemann's explanation goes beyond logic but goes beyond experience also.



प्रो. जार्ज विथेलीकोस ( Prof. George Vithoulkas)
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अप्रैल 2007 की hpathy e magazine मे जार्ज विथेलीकोस का फ़ास्फ़ोरस पर एक केस प्रकाशित हुआ था । यह एक लाइव डिसक्शन है जिसमे कई होम्योपैथिक चिकित्सकों ने जार्ज के साथ वार्ता-विमर्श किया था। कुछ सवाल अत्यन्त ही महत्वपूर्ण थे जो उस कान्फ़्रेन्स मे उठाये गये । पूरा लेख पढने के लिये यहाँ जायें
संक्षेप मे :


………..The danger comes from the kind of homoeopathy which is
given, say, in the morning Mag-C. 200; at noon, Calc-c.1m; and in the evening, Graph.1m. And in the morning we have another course where Ant-c. 200m. is given, then Gels. 10m; and then Phos. 200m. On the third day we have another scheme and then we repeat it again. We start from the first day. Who knows what is happening? If that person continues to take all these remedies for six months or a year, you have a person who is proving. God knows what!




जार्ज कहते हैं कि जिस तरह कि होम्योपैथी आज हो रही है जहाँ कई सारी औषधियों का समावेश या पर्याक्रम से एक दूसरे को देने का चलन बढा है वह रोगी के लिये बहुत ही घातक है। आगे आप स्वयं ही अन्दजा लगा सकते हैं कि जब यह औषधियाँ मानव शरीर पर अपनी proving करेगीं ।


………..You have to remember that the more clear the case is, the higher you can go, and the more immediate will be the effects. Even in organisms which are exhausted and which are weak.
If you read all the literature, you will see that all the good homoeopaths who were living around the 19th century and the beginning of the 20th were very good and they gave very high potencies. If we had given in that case 200, before we reached 50m, where the child needed action, it would have taken us 3,4 or 5 days. If we give that with little effect, then you have to wait for the return of the symptoms, repeat 200, then 1m, then 10m and then 20m.




आपका यह भी मानना कि जितने लक्षण साफ़ दिखें उतना ही पोटेन्सी को उच्च क्रमांक मे दें ताकि औषधि की क्रिया तुरन्त दिखे। जार्ज इस संदर्भ मे उन पुराने होम्योपैथिक चिकित्सकों की उच्च क्रम की पोटेन्सी के चुनाव की याद दिलाते हैं ।


……..This is a general rule. When a remedy has acted. Do not give up the potency immediately. Try it once. If there is a relapse, go one step higher.
……..When you have started with one remedy and it has an effect, do not discontinue it immediately and jump to another. When you have given a remedy and it has acted beautifully in one potency, try it again in the same potency before you jump to the higher potency. This is a general rule for acute and chronic cases.
……..
Anyhow, you cannot avoid losing sometimes, especially with chronic cases. Because there are no clear indications which will tell you to repeat the same remedy, the same potency, or go one step higher. There are no such indications which I can give you to work with where you will avoid repeating the first potency. A good strategy is to go up. You have given one remedy in a chronic case in a potency. Then he comes in after six months and says, " I have relapsed." You may go to 50m. If that does not work, then go back to 10m. Usually that 50m will cover the case and will work. So you can avoid the one step. You have 10m here. Then there is a relapse and you give 10m. Then there is another relapse and you use 50m.
If you go from 10m to 50m immediately, you have nothing to lose. Sometimes, but seldom, you will have to come back to 10m. But there are other old master homoeopaths who would say, "Never change your potency as long as it is working even a little." They say, "Even if it works for one month or twenty days, do not give it up. Then you can go higher."




जार्ज का मानना है कि पुराने और जटिल रोगों मे अगर रोगी कुछ महीने या दिन के बाद लक्षणों की पुनरावर्ती की बात कह रहा है तो आप बिना औषधि को बदले इसी औषधि को एक क्रम ऊपर दे अगर लग रहा है कि वह औषधि उन परिस्थिति मे काम नही कर रही है तो आप नीचे भी आ सकते हैं।



जार्ज का मानना है कि पुराने और जटिल रोगों मे अगर रोगी कुछ महीने या दिन के बाद लक्षणों की पुनरावर्ती की बात कह रहा है तो आप बिना औषधि को बदले इसी औषधि को एक क्रम ऊपर दे अगर लग रहा है कि वह औषधि उन परिस्थिति मे काम नही कर रही है तो आप नीचे भी आ सकते हैं। लेकिन सबसे विशेष बात याद रखें कि कि एक चयनित औषधि अगर अपना कार्य सुचारू रूप से कर रही हो तो उसको बदले नही।
और चलते -2 जार्ज केन्ट की भी बात को याद दिला देते हैं :



Kent was talking about that same thing, about doctors who would prescribe high potencies haphazardly, and too many at the same time. There can be real trouble! There can be no trouble in giving one remedy and waiting for one month to see in a chronic case.




उच्च क्रम की पोटेन्सी के साथ अंधाधुध खिलवाड कदापि न करें , यही आपके और रोगी दोनों के लिये ही बेहतर रहेगा।

होम्योपैथी पोसोलोजी प्रो (Homeopathy posology pro ) -आनलाइन साफ़्टवेएर
poslogy-pro-beta.jpg
होम्योपैथिक औषधि की पोटेन्सी और रिपीटिशन की समस्या को सुलझाने हेतु कुछ नये आनलाइन साफ़्टवेएर भी हैं । इनमे हाल ही मे जारी किया गया होम्योपैथी पोसोलोजी प्रो (Homeopathy posology pro ) नाम का साफ़्टवेर भी चर्चा मे है। इससे संबधित पूरी जानकारी के लिये यहाँ , यहाँ , और यहाँ देखें। होम्योपैथी पोसोलोजी प्रो (Homeopathy posology pro ) साफ़्टवेएर के तीन प्रमुख खंड हैं :
1- Case Management Module
2- Potency Selection Module
3- Sensitivity Meter

फ़िलहाल इसका प्रयोग मैने अभी नहीं किया है , आगे कभी बाद मे इस पर चर्चा करेगें।

मेरी डायरी से - 1- फ़ास्फ़ोरस ( phosphorous)

Monday 9 April, 2007

कभी-2 कुछ रोगी हमेशा एक समस्या बन जाते हैं और कभी-2 होम्योपैथिक औषधियों के परिणाम तो उससे भी अधिक आशचर्यचकित करने वाले होते हैं। अब श्रीमान ब्रीजेश को ही लें , पिछले कई सालों से अस्थमा ( bronchial asthma) से पीडित हैं और उम्र भी कुछ अधिक नहीं , मात्र 25 साल । अक्टुबर 2006 मे आप मेरे पास आये और चाहते हैं कि inhaler और bronchodilators से पूर्ण्तया छुट्कारा मिले ; जो वह कई सालों से ले रहे हैं। होम्योपैथिक तरीके से रोगी के लक्ष्णो को लिया गया जो निम्म थे :
Kent ] [Respiration]Difficult:Lying:Amel:
[Kent ] [Respiration]Difficult:Exertion:After:
[Kent ] [Respiration]Difficult:Walking:Agg:
[Complete ] [Generalities]Food and drinks:Sweets:Desires:
[Complete ] [Generalities]Food and drinks:Spices, condiments, piquant, highly seasoned food:Desires:
[Complete ] [Stomach]Heartburn:

रोगी के लक्षणों मे जो विशेष बात थी कि साँस फ़ूलने मे लेटने से आराम मिल रहा था और चलने -फ़िरने मे तकलीफ़ बहुत अधिक बढ जाती थी। इसके अलावा सीने मे जलन , खाने -पीने मे चटपटी चीजों का शौक भी था। एक बात और कि उस मौसम मे जब लखनऊ मे कोई विशेष ठंडक नही होती , वह कुछ अधिक कपडे पहने था।
रोगी जहाँ रह रहा था वह जगह स्वास्थ के लिहाज से कोई विशेष उपयुक्त नही थी, धूप का घर मे अभाव था और घर मे सीलन काफ़ी थी (hydrogenoid constitution ) ।खैर लक्षणो को रिपरटार्जेशन के लिये डाला गया और कम्पलीट रिपर्ट्री और केन्ट रिपर्ट्री की मदद ली गयी। Drug Filters को apply किया और जैसा उम्मीद थी कि Psorinum औषधि के विकल्प मे आयी । तो prescription कुछ इस तरह बना:
29-10-06 = psorinum 200 1*3 { 15 दिन मे एक बार }
nat sulph 6x 4 TDS { रोगी के hydrogenoid constitution को ध्यान रखते हुये दी गयी }

18-11-06= कोई विशेष आराम नही, औषधि बदली गई।
Nux vom 30 TDS
Nat sulph 6x
Blatta Q 10 बूंद तीन बार, आवशय्कता पडने पर { Blatta Q को palliation के लिये दिया गया ।}
22-12-06 = आराम और वह भी जब तक Blatta Q का असर रहे , जाहिर है कि यह सिर्फ़ अभी तक palliation ही था।

इस बार drug filters को apply नही करते हुये सामान्य रिपरटार्जेशन का सहारा लिया गया और दोनो रिपर्ट्री केन्ट और कम्पलीट को एक साथ प्रयोग किया गया , जिसकी आकृति नीचे है:
1
Ars, sulp,puls, phos मे से अब की बार phos देने का मन बनाया , क्योकि इसकी वजह नीचे दी गयी आकृति से स्पष्ट है :
2

25-12-06= Phosphorous 1000 {15 दिन मे एक बार }
Nat sulp 6x 4 TDS
10-1-2007= अब की बार रोगी सन्तुष्ट दिखा, इन 5 दिन के दौरान उसे न तो उसे inhalers का प्रयोग करना पडा और न तो blatta Q को लेना पडा। Wheezing न के बराबर थी और उसकी जगह crepitations ने ले ली थी।
15-1-2007= Phosphorous 1000 1*3
Nat Sulph 6x 4 TDS
22-2-2007 = Phosphorous 1000 1*3
Nat Sulph 6x 4 TDS
16-3-2007 =Phosphorous 1000 1*3
Nat Sulph 6x 4 TDS

Phosphorous 1000 ने जैसा कि अब तक लग रहा है कि फ़िलहाल रोगी को अब तक अस्थमा की समस्या से छुटकारा देने मे उपयुक्त औषधि है। अभी यह रोगी इन औषधियों का नियम से सेवन कर रहा है ।
लेकिन यह रोगी होम्योपैथिक दृष्टिकोण से मेरे लिये कई प्रशन खडे कर गया जिसका जबाब मै ढूँढ रहा हूँ ।
प्रशन 1- होम्योपैथिक मैटेरिया मेडिका मे यह कही भी वर्णित नही है कि फ़ाफ़्फ़ोरस मे साँस फ़ूलने मे लेटने से आराम मिलता है (dyspnoea > lying down )नीचे देखें। हाँ , Generalities मे अवशय लक्षण लेटने से और वह भी दायीं करवट लेटने से आराम दिलाते हैं (> Lying on right side ) और बायीं करवट से तकलीफ़ बढती है।
3
ऊपर आकृति न 2 मे केन्ट रिपर्ट्री इस लक्षण को कवर नही कर रहा है बल्कि कम्पलीट रिपर्ट्री मे यह आराम दिखा रहा है, यह कैसे हुआ। क्या यह clinical verification मे आया है । इसका जबाब मेरे पास नही है। लेकिन यह भी सच है कि रोगी को कम्पलीट रिपर्ट्री के भले ही clinical verification के जरिये से ही सही; रोग मे पूर्णतया आराम मिला है। इस लक्षण को मैने ग्रीस (Greece)के डा जार्ज विथेलीकोस (Dr George Vitholuks) से जबाब जानने के लिये एक हफ़्ते पहले मेल किया था और उनके जबाब की मुझे प्रतीक्षा है । इसके अलावा जो होम्योपैथिक चिकित्सक इस ब्लाग से गुजर रहे हो , वह भी मुझे बताये कि क्या वजह रही कि लक्षण मेटेरिया मेडिका मे न हiने के बावजूद रोगी को आराम दे गया। आपके उत्तर की प्रतीक्षा रहेगी।

नये रोगों(Acute Diseases) मे मदर टिन्चर के प्रयोग और कई महत्वपूर्ण डाऊनलोड लिंक

Monday 26 March, 2007

नये रोगों मे सही सिमिलिमम का चयन करना होम्योपैथिक चिकित्सकों के लिये और विशेष नये चिकित्सक के लिये हमेशा एक सरदर्द सा रहता है । पुराने रोगों (Chronic Diseases)मे सिमिलिमम को रिपरटारिज करके चयन के लिये पर्याप्त समय होता है लेकिन नये रोगों मे एक चिकित्सक के पास इतना समय नही होता कि वह सही सिमिलिमम का चयन करे और उसका नतीजा कि आरम्भ मे ही रोगी का विशवास अपने चिकित्सक से ऊठ सा जाता है। बहुत से होम्योपैथिक चिकित्सक मदर टिन्चर का प्रयोग करके अपनी इस मुसीबत से काफ़ी हद तक छुटकारा पा रहे हैं। मदर टिन्चर यानी औषधि का मूल रूप का प्रयोग , हाँलाकि होम्योपैथी के सिद्दातों से बहुत हद तक इसकी पटरी नही खाती लेकिन फ़िर भी इनके निष्कर्ष जल्दी आते हैं। और सबसे बडी बात यह कि इनमे एक रोगी के लक्षणों को औषधि के लक्षणों से मिलाने की कोई बहुत अधिक आव्शय्कता नही पडती ।
मदर टिन्चर के प्रयोगों पर कोई बहुत अधिक संग्रह पुस्तकों का नही दिखता , Anshutz की New , Old & Forgotten Remedies ( प्रकाशक-Indian Books & Periodicals Syndicate ) , डा घोष की Drugs Of Hindustaan , Erlie Jones और यदुवीर सिन्हा की मदर टिन्चर पर पुस्तक थोडी बहुत जानकारी अवशय देती है, लेकिन Anshutz की New , Old & Forgotten Remedies और डा घोष की Drugs Of Hindustaan को छोडकर बाकी पुस्तकें जानकारी के मामले मे अपर्याप्त ही है ।
फ़ेल्टर की कम्पलीट मैटेरिया मेडिका टिन्चर प्रेमियों के लिये एक वरदान सी है। कल पाकिस्तान के डा मन्सूर अहमद ने यह महत्वपूर्ण लिंक भेजा है। सम्पूर्ण पुस्तक यहाँ से डाऊनलोड करें और पुस्तक को आनलाइन यहाँ पर देखें.

Arizona South West School Of Botanical Medicine के माइकल मूर ने फ़रवरी 1-2007 को साईट को अपडेट किया है, कई महत्वपूर्ण लिंक इस पेज पर है जो होम्योपैथिक चिकित्सकों के काफ़ी काम आ सकते हैं।

इसके अलावा शिकागो के Ellingwood की थेरापियूटिक्स और मैटेरिया मेडिका को भी Acrobat .pdf files मे यहां से डाऊनलोड कर सकते हैं और अगर इसको html मे देखना चाहें तो यहाँ देख सकते हैं।
ईलिगवूड की थेरापियूटिक्स के महत्वपूर्ण ग्रुप नीचे दिये हैं:



the.gif
Group I - Agents Acting on the Nervous System - 205 pages - 432K
1-1-Antipyretics.pdf
1-2-Analgesics.pdf
1-3-Sedatives.pdf
1-5-Minor nerve tonics.pdf
1-7-Reproductive Sedatives.pdf
2-1-Nerve Stimulants.pdf
2-2-Alcohol-antimalarials.pdf
2-3-Circulatory Stimulants.pdf
3-1-Tonic Stimulants.pdf
3-2-Sedative Stimulants.pdf
Antipyretics chart.pdf - 20k

Group II - Agents Acting Upon the Heart - 40 pages - 92K
1-Heart Agents.pdf
2-Heart Agents.pdf
Heart Remedy Chart.pdf

Group III - Agents Acting Upon the Respiratory Tract - 53 pages - 120K
1-Nauseating Expectorants.pdf
2-Mucosa Stimulants.pdf
3-Mucosa Stimulants.pdf
4-Sedatives and Tonics.pdf
5-Sedatives and Tonics.pdf

Group IV - Agents Acting upon the Stomach - 57 pages - 128K
1-Stomachics.pdf
2-Minor Stomach Tonics.pdf
3-GI Sedatives.pdf
4-Anti-emetics.pdf
5-Emetics.pdf
7-Digestives.pdf

Group V - Agents Acting upon the Intestinal Glandular Organs and the Canal - 84 pages - 188K
1-Laxatives-Cathartics.pdf
2-Liver Stimulants.pdf
3-Mild Liver Stimulants.pdf
4-Hydragogue Cathartics.pdf
6-Intestinal Astringents.pdf
7-Astringent Tonics.pdf
8-Hemostatic Astringents.pdf
Liver Herb Chart.pdf

Group VI - Agents Influencing the Character of the Blood - 90 pages - 204K
1-Antiseptic Alteratives.pdf
2-Glandular Alteratives.pdf
3-Special Glandulars.pdf
4-Antiseptic Alteratives.pdf
5-Special Alteratives.pdf
6-Antirheumatic Alteratives.pdf

Group VII - Agents Acting Upon the Genitourinary Organs - 62 pages - 140K
1-Renal Stimulants.pdf
2-Renal Stimulants.pdf
3-Stimulant-Sedatives.pdf
4-Sedatives-Correctives.pdf
5-Renal Correctives.pdf
6-Renal Correctives.pdf
7-Special remedies.pdf

Group VIII - Agents Used for Their Influence Upon the Skin - 19 pages - 56K

Group IX - Agents Acting upon the Female Reproductive Organs - 22 pages - 60K
Reproductive Herb Chart.pdf

Group X - Agents Acting upon Intestinal Parasites-Anthelmintics - 10 pages - 32K

कम्पयूटर को जल्दी खोलने और जल्दी बन्द करने का उपाय

Monday 19 March, 2007

कुछ दिन पूर्व सागर भाई ने कम्पयूटर को जल्दी बन्द करने और रिस्टार्ट करने का जुगाड बताया था। इधर मै अपनी क्लीनिक और घर दोनो ही के कम्पयूटर मे यह जुगाड चला रहा था। लेकिन कम्पयूटर की विन्डोज को खुलने और लोड लेने मे शुरू मे काफ़ी समय लग जाता था और इसका अभी तक मेरे पास कोई भी समाधान नही था। कल मेरे मित्र मोहित ने इस समस्या का निदान चुटकी मे कर दिया । आप भी कर सकते है अगर आप के कम्पयूटर की विन्डोज ( XP) खुलने मे समय ले रही हो।
1- सबसे पहले तो यह सुनिशिचित कर ले कि आप के कम्पयूटर की रैम कम से कम 256 हो।
2- डेस्कटाप पर rt click करें--properties पर जायें--screensaver पर किल्क करें--नीचे देखें power का विकल्प दिख रहा है--
2
3-power पर किल्क करें---power options properties पर जायें----hibernate पर किल्क करें---enable hibernate बाक्स को चेक कर दें----apply करे और ok कर दें।
3

3- Power options properties को दोबारा किल्क करें ----advanced पर जायें----when I press the power button on my compuer मे विकल्प मे hibernate पर किल्क करें----apply और ok कर दें।
4
4- अब आपका कम्पयूटर hibernation के लिये बिल्कुल तैयार है।
5- अपने कम्पयूटर को शट डाउन करते समय hibernate के विकल्प को देखते गुये किल्क करें।
1
6- कम्पयूटर को दोबारा स्टार्ट करें , और अब देखें कि आपका पी सी कितनी द्रुत गति से खुल रहा है।

होम्योपैथी मे MD करने के विकल्प

Friday 16 March, 2007

कुछ दिन पूर्व मुम्बई से जूही जो B.H.M.S. अन्तिम वर्ष की छात्रा हैं ,पूछा था कि B.H.M.S करने के बाद होम्योपैथी मे MD psychiatry करने के लिये क्या-2 विकल्प हैं।
जूही
hello sir..actually m a final year BHMS student..i'm intersted in doin sumthing in pschiatry after dis..cud plz guide me a little bout it n wether there's MD psychiatry after BHMS?


जूही की तरह और भी होम्योपैथिक छात्र और कई चिकित्सक संभवत: उत्सुक होगें कि होम्योपैथी मे MD किन -2 विषयों मे और किन होम्योपैथिक मेडिकल कालेज से कर सकते हैं ।
MD ( होम्योपैथी ) 3 वर्षीय कोर्स है जो B.H.M.S करने के बाद इनमे से किसी 1 विषय मे कर सकते है
Materia Medica
Organon of Medicine
Repertory
Pharmacy
Practice of Medicine
Psychiatry
Pediatrics
MD (होम्यो) करने के लिये संबन्धित होम्योपैथिक कालेजों की लिस्ट नीचे दी गयी है । इनमे से central council ने 5 सरकरी कालेजों और 12 प्राइवेट कालेजों को अधिकृत किया है ।
सरकारी कालेज ( Govt. Colleges) :-

1-J. S. P. S. Govt. Homoeopathic Medical College, Ramanathapur, Hyderabad- University of Health Sciences, Vijaywada, Andhra Pradesh.
2-Govt. Homoeopathic Medical College, Irnamuttam, P.O. Manacaud, Thiruvananthapuram- I, - Kerala University, Thiruvananthapuram, Kerala
3-Govt. Homoeopathic Medical College, Karaparamba, Calicut, (Kozhikode)- Calicut University, Calicut, Kerala
4-Dr. Abhin Chandra Govt. Homoeopathic Medical College and Hospital, Unit- III, Kharvela Nagar, Bhubaneshwar, Distt. Puri, Utkal University, Bhubaneswar,Orissa.
5. National Institute of Homoeopathy, Block- GE, Sector- III, Salt Lake, Calcutta, Govt. of India.

प्राइवेट कालेज:
1-Bakson Homoeopathic Medical College & Hospital, (Dr. Kirpal Singh Bakshi Memorial Trust) D-6, Sector-10, NOIDA, UP- Rajasthan Vidyapeeth (Deemed University)
2-Jahangir Memorial Charitable Hospital Society Shri Sai Nath P. G. Institute of Homoeopathy, 109/4, Jawaharlal, Nehru Road, George Town, Allahabad, UP.
3-Dr. Madan Pratap Khuteta Rajasthan Homoeopathic Medical College, Vanasthali Marg, Station Road, Jaipur, Rajasthan- Rajasthan University, Jaipur.
4-Dr. M. L. Dhawale Memorial Trust, 40 Parekh Street, St. Girgaum, Mumbai- 400001, Maharasthra
5-Sonajirao Kshirsagar Homoeopathic Medical College, Vidhya Nagar, College Road (W), Beed-431122- Maharashtra University of Health Sciences, Nashik.
6. Shri Bhagwan Homeopathic Medical College and Indira Gandhi Memorial Hospital, CIDCO N- Aurangabad- 431003- Maharashtra University of Health Sciences, Nashik.
7. Kaka Saheb Mhaske Homoeopathic Medical College, Nagapur, Ahmednagar- 414111, Distt-Pune- Maharashtra University of Health Sciences, Nashik.
8. Bhartesh Homoeopathic Medical College, Dharwar Road, Belgaum- 590016, Karnataka-Rajiv Gandhi University of Health Sciences, Bangalore.
9. A. M. Shaikh Homoeopathic Medical College, Nehru Nagar, Belgaum, Karnataka- Rajiv Gandhi University of Health Sciences, Bangalore.
10-Fr. Muller’s Homoeopathic Medical College, Kankanady, Mangalore- 575002, Karnataka, Rajiv Gandhi University of Health Sciences, Bangalore.
11. Homoeopathic Medical College and Hospital, Medical College Campus, Gulbarga-585105, Karnataka – Rajiv Gandhi University of Health Sciences, Bangalore.
12. Dr. V. H. Dave Homoeopathic Medical College and Smt. S. I. Patel(Ipcowala) Homoeopathic Hospital, Hahnemann House, Amul Dairy Road, Anand- 388001, Dist- Kheda, Gujarat- Sardar Ballabh Bhai Patel University, Ballabh Vidhya Nagar

चलते-२ ताजा खबर :
दैनिक जागरण दिनाकं ९-६ -२००७

अब ऊत्तर प्रदेश मे भी पी जी के लिये रास्ता साफ़ ;देखें खबर , "26 साल बाद याद आये होम्यो कालेज "

लखनऊ, 8 जून (जागरण ब्यूरो) : प्रांतीयकरण के छब्बीस साल बाद अंतत: सरकार ने बदहाल होम्योपैथिक कालेजों की सुध ली। सात राजकीय कालेजों में केंद्रीय होम्योपैथी परिषद (सीसीएच) के मानकों के अनुरूप शिक्षकों के 194 तथा शिक्षणेत्तर स्टाफ के 404 नये पद सृजित किये गये हैं।
शिक्षकों के अभाव में इन कालेजों की बीएचएमएस डिग्रियों की मान्यता पर हमेशा सीसीएच की तलवार लटकी रहती थी। बहरहाल, पर्याप्त पद सृजन के बाद लखनऊ, कानपुर और इलाहाबाद होम्योपैथिक कालेजों में पीजी पाठ्यक्रम शुरू होने का भी मार्ग प्रशस्त हो गया है। प्रदेश में सात राजकीय होम्योपैथिक कालेज लखनऊ, कानपुर, इलाहाबाद, मुरादाबाद, फैजाबाद, गाजीपुर और आजमगढ़ में हैं। प्रदेश सरकार ने 1981 में इन कालेजों का निजी क्षेत्र से प्रांतीयकरण किया था लेकिन मानकों के अनुरूप शिक्षकों व गैर शिक्षकों के पद सृजित नहीं किये। केंद्रीय होम्योपैथी के मानकों के हिसाब से प्रत्येक कालेज में तेरह प्रोफेसर तथा पंद्रह-पंद्रह रीडर व लेक्चरर के हिसाब से 43 शिक्षक होने चाहिये। जाहिर है कि सात कालेजों में 91 प्रोफेसर, 105 रीडर तथा 105 लेक्चरर सहित कुल 301 शिक्षक होने चाहिए। इसके विपरीत इन कालेजों में सिर्फ 146 पद स्वीकृत थे। इनमें प्रोफेसर और रीडर के सिर्फ दस-दस पद थे यद्यपि लेक्चरर के मानक से कहीं अधिक 126 पद स्वीकृत थे। यह अलग बात है कि इस समय सिर्फ दो प्रोफेसर, तीन रीडर तथा 75 लेक्चरर ही कार्यरत हैं। जाहिर है कि 301 के मानक के विपरीत सिर्फ 80 शिक्षक कार्यरत हैं। कमोबेश ऐसे हालात पिछले छब्बीस सालों से जारी थे। इन हालात में केंद्रीय होम्योपैथिक परिषद पिछले कई सालों से मानकों के अनुरूप पद सृजित करने के लिए दबाव डाल रही थी। मौजूदा कार्यवाही सीसीएच के दबाव का ही नतीजा है। सरकार ने प्रोफेसर के 81 तथा रीडर के 95 नये पदों के अलावा लखनऊ, कानपुर व इलाहाबाद कालेजों में परास्नातक पाठ्यक्रम शुरू करने के मानकों की पूर्ति करते हुए प्रोफेसर व रीडर के नौ-नौ अन्य पद सृजित किये हैं। प्रदेश के किसी भी राजकीय कालेज में फिलहाल पीजी पाठ्यक्रम नहीं चल रहे हैं। इसी के साथ सरकार ने इन कालेजों से सम्बद्ध अस्पतालों के संचालन के लिए चिकित्साधिकारियों, पैरा मेडिकल कर्मचारियों तथा गैर चिकित्सीय स्टाफ के भी 404 पद सृजित किये हैं। क्लीनिकल प्रशिक्षण की दृष्टि से सम्बद्ध अस्पताल किसी भी मेडिकल कालेज का अपरिहार्य अंग होते हैं।
वास्तव में अस्पताल की स्थापना बगैर कालेज संचालन की अनुमति ही नहीं मिलती लेकिन प्रदेश के किसी भी राजकीय होम्योपैथिक कालेज में इनडोर विभाग नहीं थे। बहरहाल, अब सूरत-ए-हाल बदलने की उम्मीद जगी है।

updated 11-6-2007

Relationship of Homeopathic Medicines

Saturday 10 March, 2007

अक्सर मैने क्लीनिकल प्रकैटिस मे कई रोगियों पर डा नैश और डा केन्ट के सुझायी गयी तिकडी को कामयाबी के साथ प्रयोग किया है.
डा नैश ने इस तिकडी को regional trios कहा और इसी तरह डा केन्ट ने भी तीन दवाओं की तिकडी के ११ ग्रुप बनाये जिनको अगर औषधि को रोग से मिलते हुये लक्षणों के समतुल्य दिया जाये तो इनके परिणाम आशचर्यजनक निकलते हैं.
डा नैश की तिकडी (trios)

डा केन्ट की तिकडी
Aco, puls, sil
Coloc, caust, staph
Caust, colocy; staph
Merc ; hep ; sil
Puls ; sil ; kali s
Sulp ; calc ; lyco
Sulp ; saras ; sepia
Arn ; rhus tox ; calc
Aco ; hep ; spong
Sulph ; ars ; sulph
Puls ; sil ; acid

फ़ंसना फ़साना सीरीज - वह ५ प्रश्न

Sunday 4 March, 2007

यह श्रीश ने भी मुझे कहाँ फ़ँसा दिया , आप तो टैग लगा के महोदय खिसक गये और तो और दो दिन पहले चैट रुम मे याद भी दिला गये कि भाई लिखना जरुरी है और खिसकना गुनाह ! खैर जब इतने एहतराम से बाँध ही दिया तो जबाब देने मे भलाई है। हाँ , कल समीर जी भी कुछ अलग तरह के टैग के बारे मे कह रह थे। अब यह टैग श्रीश के टैग से अलग है यह मुझे समझ मे नहीं आया, हो सकता है पिछली किसी पोस्ट मे जिक्र किया हो लेकिन इधर कुछ दिनों से नारद पर जाने का बहुत मौका नहीं मिला, एक तो मेरे पुत्र के सी बी एस सी बोर्ड के परीक्षायें होने के कारण घर पर नेट कनेक्शन कटवा के यहाँ क्लीनिक मे लगवाया लेकिन यहाँ काम मे व्यस्तता के कारण इतनी नेट की गतिविधियाँ संभव नही होती। हाँ , अलबत्ता आज मौका होली की छुट्टी के कारण अवशय लगा है और जाहिर है इसका सदुपयोग पूरा का पूरा कर रहा हूँ। कल रात क्लीनिक से निकलने के पहले पोर्टेबल फ़ायर फ़ाक्स की स्क्राप बुक मे आज के लिये कई दिन पुराने चिट्ठों को पढने के लिए सुरक्षित किया ।
वैसे कल छोटी होली के दिन मूड सुबह से ही घर पर नेट कनेक्शन न होने से बहुत खिन्न था, लेकिन जब दोपहर को अनूप जी का फ़ोन आया तो बहुत ही अच्छा लगा, हिन्दी चिट्ठाकारिता मे यही एक खास बात है कि प्रेम रूपी धागे से हिन्दी चिट्ठाकारी के वरिष्ठ सदस्य जीतू भाई , सृजन जी , अनूप जी , उन्मुक्त जी और समीर जी ने अपने कनिष्ट सदस्यों को बाँधा है इसकी मिसाल मुझे अंग्रेजी चिट्ठाकारी मे नहीं मिलती । आप सब चिट्ठाकारों को होली की बहुत-2 बधाई और अब देखूं कि श्रीश क्या फ़रमा रहे हैं :
१. कम्प्यूटर पर हिन्दी टाइपिंग के बारे में सबसे पहले आपने कब सुना और कैसे, अपने कम्प्यूटर में हिन्दी में सबसे पहले किस सॉफ्टवेयर में/द्वारा टाइप किया और कब, आपको उसके बारे में पता कैसे चला ?
मुझे हिन्दी टाइपिंग के आसान औजारों के बारे मे कुछ भी नहीं मालूम था , कई साफ़्टवेएर आजमाये, सबसे पहले तो पुराने रेमिंटन तरीके से टाइप करने की सोची लेकिन वह तरीका बहुत ही उबाऊ लगा। याहू पर हिन्दी फ़ोरम का सदस्य तो बना और वहाँ साफ़्ट्वेएर का जो लिंक दिया गया उसमे भी मजा न आया। शुएब और जीतू भाई को मेल कर के आसान औजार पूछे लेकिन तब तक मै गूगल पर दोबारा सर्च करने पर श्री देवन्द्र पारख जी का हिन्दी राइटर पा चुका था , अब इसको चलाने कि समस्या थी तो एक दिन जीतू भाई ने याहू मेसेन्जर पर इसको चलाने कि विधि बतायी और तब जा कर तलाश पूरी हुई । जीतू भाई के साथ यह वार्तालाप मैने याहू 360 पर धरोहर के रुप मे रखी है , मुझ जैसे अनाडी की हिदी सीखने की कवायद देखें और मजा लें।


एक दोपहर जितेन्द् चैाधरी के साथ
Jitendra Chaudhary: namaskar ji
prabhat tandon: jitendra ji namaste apke blogs ka avlokan kar ajeeb si sukhad anubhuti hoti hai
Jitendra Chaudhary: dhanyavad
prabhat tandon: mujhe ise bhi khushee tab hoti jab main yeh mail hindi me likh raha hota
Jitendra Chaudhary: to likhiya na
Jitendra Chaudhary: aap yahoo par hai na
prabhat tandon: ha hoon
Jitendra Chaudhary: तो फिर
Jitendra Chaudhary: हिन्दी मे क्यों नही लिख़ पा रहे?
prabhat tandon: kaise likhoon type karne se eng type hota hai
Jitendra Chaudhary: ye leejiye
Jitendra Chaudhary: http://devendraparakh.port5.com/
Jitendra Chaudhary: yahan se download kariye
prabhat tandon: waiise maine abhi hindi writer download kar ke install kiya hai usme help ki kloi file nahin hai kaise use karoon
Jitendra Chaudhary: usme jaise hi aap run karoge
Jitendra Chaudhary: neeche "अ" लिख़ा हुआ आयेग
Jitendra Chaudhary: आयेगा
Jitendra Chaudhary: उसको क्लिक करियेगा
prabhat tandon: hai ayea
Jitendra Chaudhary: तो Show Keyboard map
Jitendra Chaudhary: aayega
prabhat tandon: hai hai
Jitendra Chaudhary: उसको देख़ियेprabhat tandon: ab kya karoon
Jitendra Chaudhary: बस लिख़िये
Jitendra Chaudhary: मजे से
Jitendra Chaudhary: yahoo par sirf yahi chalta hai
Jitendra Chaudhary: ek aur option hai
Jitendra Chaudhary: BARAHA
prabhat tandon: baraha kya
Jitendra Chaudhary: www.baraha.com
Jitendra Chaudhary: is se aap kai bhashaon mein likh sakte hain
Jitendra Chaudhary: lekin ye yahoo par nahi chalta
Jitendra Chaudhary: isme help file kaafi achhi hai
Jitendra Chaudhary: http://baraha.com/html_help/sdk_docs/devtrans_eng.htm
prabhat tandon: key board map se kaise likhoon usme bhi to eng type hota hai
Jitendra Chaudhary: matlab
prabhat tandon: map ke hisab se likh kar kya trnslator ko press karoon
Jitendra Chaudhary: nahi bhai
Jitendra Chaudhary: aap seedhi seedhi likhna shuru kariye
Jitendra Chaudhary: Yahoo messenger ke ander
Jitendra Chaudhary: dekhiye
Jitendra Chaudhary: neeche "अ" kaa rang kaun sa hai?
prabhat tandon: ग्रेएन
Jitendra Chaudhary: theek hai
Jitendra Chaudhary: bas likhna shuru kariye
Jitendra Chaudhary: aa to gaya na
prabhat tandon: अरे येह हिन्दि मे त्य्पे कैसे हो गय
Jitendra Chaudhary: yahi to kamaal hai
Jitendra Chaudhary: bas thora samay lagega
prabhat tandon: अप्ने कैसे किय
Jitendra Chaudhary: maine kahan kiya
Jitendra Chaudhary: aapne kiya sab
prabhat tandon: green se matlab kya
Jitendra Chaudhary: agar green hai to Hindi mein likhega
Jitendra Chaudhary: agar RED hai to English mein
prabhat tandon: oh yeh baat hai phir se try karta hoon
Jitendra Chaudhary: usme Toggle Transilator hai
Jitendra Chaudhary: usko click karne se Hindi/Englsh par switch kar sakte hain
Jitendra Chaudhary: SHIFT+PAUSE is the toggle key
prabhat tandon: toggle translator matlab
Jitendra Chaudhary: hindi 2 english and englsh 2 hindi switching
prabhat tandon: ाब संम्झ आया
Jitendra Chaudhary: ab is se aap kanhi bhi likh sakte ho
prabhat tandon: Thank u jitendra ji hum phir milenge abki correct hindi ke saath namaste
Jitendra Chaudhary: namskar


२. आपका हिन्दी चिट्ठाजगत में आगमन कैसे हुआ, इसके बारे में कैसे पता लगा, पहला हिन्दी चिट्ठा/पोस्ट कौन सा पढ़ा/पढ़ी ? अपना चिट्ठा शुरु करने की कैसे सूझी ?

हिन्दी लिखने का ही मुझे शौक था, चिट्ठाकारी का तो बिल्कुल नहीं , मैने तो हिन्दी मे कभी निबंध तक नहीं लिखे , हाई स्कूल और इन्टर बोर्ड की परीक्षाओं मे कुछ महत्वपूर्ण निंबध रट के जाता था। लेकिन जब जीतू भाई ने मुझे चिट्ठा लिखने को प्रेरित किया तो मै बडी दुविधा मे पडा कि मै क्या लिखूं , फ़िर मेरी फ़ील्ड होम्योपैथी को देखते हुये उन्होने ही राय दी कि इसी से ही पोस्ट शुरु करें। और जाहिर है कि जीतू भाई और शुएब से मैने हिन्दी चिट्ठा पढने की शुरुआत की । शुएब के चिट्ठों से मै बहुत प्रभावित था और शायद इसका कारण यह भी रहा कि मेरे धर्म संबधी अपने विचार शुएब के विचारों से मेल खाते प्रतीत होते थे। यह बात अलग कि मै हिन्दू धर्म की कुरीतियों से खिन्न था और शुएब अपने धर्म की । लेकिन वक्त गुजरने के साथ मुझे यह पक्का यकीन हो गया है कि धर्म ही मानवता का सबसे बडा दुशमन है।

३. चिट्ठा लिखना सिर्फ छपास पीडा शांत करना है क्या ? आप अपने सुख के लिये लिखते हैं कि दूसरों के (दुख के लिये ;-) क्या इससे आप के व्यक्तित्व में कोई परिवर्तन या निखार आया ? टिप्पणी का आपके जीवन में क्या और कितना महत्त्व है ?

दूसरों के दु:ख के लिये तो बिल्कुल ही नहीं , हाल की कई पोस्टों को मुझे हटाना पडा क्योंकि उनको पढने के बाद मुझे बाद मे लगा कि मुझे नहीं लिखना चाहिये या किसी का नाम नहीं खसीटना चाहिये । चिट्ठा लिखना भले ही अपनी छपास पीडा को शांत करना भी हो तब भी श्रीश आप स्वंय देखो कि आप तकनीकी क्लास लगा के हम सब को बिना माँगे सब कुछ दे रहे हो जो हम घंटो नेट पर सिर खपाने के बावजूद नहीं ढूंढ पाते । इसी तरह रवि जी, उन्मुक्त जी और भी अन्य चिठ्ठाकार जो आज दे रहे हैं, वह शायद कल की नींव ही बनेगा। होम्योपैथी से संबधित चिट्ठे से होम्योपैथिक कालेज से निकलने वाले नये चिकित्सकों को मै बहुत कुछ दे सकता हूँ जो उन्हें पुस्तकों मे नहीं मिलेगा , हो सकता है कि आज इसकी उपयोगिता वह न समझें लेकिन आने वाला कल इससे लाभान्वित होगा ऐसा मुझे विशवास है।
रही बात टिप्पणी की, बिल्कुल जरुरी है क्योंकि टिप्पणी के बगैर तो ब्लाग बिल्कुल सूना-2 लगता है।



४. अपने जीवन की कोई उल्लेखनीय, खुशनुमा या धमाकेदार घटना(एं) बताएं, यदि न सूझे तो बचपन की कोई खास बात जो याद हो बता दें।
बहुत सी , लेकिन प्रैकिट्स जब मैने 1986 मे शुरु की तब मेरी इन्टर्नशिप चल रही थी और विधिवत मुझे डिग्री नहीं मिली थी । प्रैकिटिस तो बिल्कुल शुरुआती दौर मे थी और कोई खास भी नहीं । इतवार को उस वक्त मै क्लीनिक खोलता था जबकि अधिकतर चिकित्सक छुट्टी रखते थे । एक इतवार की ही शाम को एक दम्पति अपने एक महीने के बच्चे को दिखाने के लिये लाये , उसकी हालत बहुत ही नाजुक थी और संभवत: वाइरल निमोनिया से पीडित था । कई ऐलोपैथिक चिकित्सकों का इलाज चल चुका था और दो दिन से वह किसी प्राइवेट नर्सिगं होम मे था । एटींबायोटिक , ब्रान्कोडाइलेटर और नेबुलाइजर के लगने के बावजूद भी उसकी हालत मे सुधार नही हो पा रहा था। मै वह केस लेना नही चाहता था, इसका एक खास कारण होम्योपैथी का नये रोगों मे कोई ट्रैक रिकार्ड बहुत अच्छा नही था और दूसरा कि मेरी इन्टर्न्शिप चल रही थी। बावजूद इस बात को समझाने के वह दम्पति जाने को टस से मस न हुये , उस रात शायद मैने लाइकोपोडियम 30 और आयोडियम दी थी। अगली सुबह जब मै देर से क्लीनिक आया तो बाहर बहुत भीड लगी थी, मेरी तो हवा निकल गयी, मन ही मन अपने आप को कोसा। अन्दर क्लीनिक मे आया और डरते-2 पूछा कि क्या हुआ । जब उसके परिवारजनो ने बताया कि बच्चा बिल्कुल स्वस्थ है और वह दवा को लेने आये हैं तो शायद उस क्षण को भुला पाना मेरे लिये आज तक नामुनिकन है।

५. यदि भगवान आपको भारतवर्ष की एक बात बदल देने का वरदान दें, तो आप क्या बदलना चाहेंगे/चाहेंगी ।

हर धर्म को चारदीवारी तक रखा जाये । धर्म इन्सान की व्यक्तिगत पूँजी है, वह किस मत को माननेवाला है , इससे फ़र्क नहीं पडता लेकिन धर्म को छूट देनी बिल्कुल रोक देनी चाहिये । भारत के नियम कानून भारतवासियों के लिये होने चाहिये न कि किसी धर्म विशेष के लिये।
बस इतना ही ।

अब मै किसको फ़ाँसू, हाँ, जीतू भाई
और शुएब
ही ठीक रहेगें । तो चन्द प्रश्न इनसे :
1- चिट्ठाकारी मे आप कैसे फ़ँसे ?
2- जब आप चिट्ठाकारी मे आये होगें तब हिन्दी लिखने के इतने औजार भी नहीं थे, तब उस वक्त किन साफ़्ट्वेएरों का प्रयोग करते थे?
3- आप दोनों बाहर दूर देश मे हैं , वहाँ के व्यक्तिगत अनुभव क्या रहे हैं?
4- और कोई भी रोचक संस्मरण बतायें?

हकीकत बयान करते यह हाथ के नाखून

Tuesday 13 February, 2007

gabrielletraub.jpg nailsकैलीफ़ोर्निया की डा गैब्रैली ट्रायूब (Dr. Gabrielle Traub) द्वारा रचित यह लेख जनवरी 2007 की Homeopathy 4 Everyone मे प्रकाशित हुआ था। यह लेख और उसका संकलन वैसे तो एक आम चिकित्सक के किये कोई विशेष नहीं था लेकिन इसकी विशेषता एक होम्योपैथिक चिकित्सक के लिये नाखून की बनावट और रंग के आधार पर औषधि के चयन मे अवशय है। इस लेख को यहाँ देख सकते हैं और इसका Power Point Presentation यहाँ से डाउनलोड कर सकते है ।
[slideshare id=105892&doc=fingernails-and-what-they-reveal-1170&w=425]