गतांक से आगे----
4. डेंगू बुखार:[Dengue fever]-
इसे हडडी तोड बुखार भी कहते हैं। इसका समय काल 3 दिन तक रहता है पर इतने थोडे से समय मे ही समूचे शरीर मे इतना दर्द होता है कि रोगी एकदम कातर हो जाता है। 3-7 दिन के इन्कूबेशन पीरियड के बाद रोग का अचानक आक्र्मण होता है, बुखार 102-106 फ़ा तक चढता है, सभी माँस पेशियों में दर्द ,जी मिचलाना, पित्त का वमन, लसिका ग्रनिथयों (lymphatic glands) का फ़ूलना, शरीर पर खसरा की तरह दाने निकलना इसके प्रमुख लक्षण हैं। एक बार ठीक हो जाने के बाद रोग दोबारा भी हो सकता है। डेंगू से बचाब के लिये मच्छरों पर नियंत्रण बहुत आवशयक है क्योंकि डेंगू बुखार का वाइरस मच्छरों के काटने से रोगी को संक्रमित करता है।
5. इन्फ़्लुएन्जा [Influenza]-
इन्फ़्लुएन्जा संक्रामक तो है ही और साथ मे बहुव्यापक भी है,इसका कारक भी वाइरस है। जाडा लगना,बुखार,आँख से पानी गिरना,तेज जुकाम इस रोग के प्रधान लक्षण है॥ साधारण सर्दी से इसके लक्षण मिलते जुलते हैं। आमतौर से इन्फ़्लुएन्जा का ज्वर 4-5 दिनों से अधिक नहीं रहता ; पर यदि कोई अन्य उपसर्ग साथ मे जुड जाते हैं तो आरोग्य होने मे समय लगता है। वृददों मे यह एक घातक रोग हो सकता है। रोगी अत्यंत कमजोरी की वजह से बलगम निकाल नही पाता और इसी वजह से उसकी मृत्यु हो जाती है।
वाइरल संक्रमण और होम्योपैथी-डॆंगू और इन्फ़लूयून्जा
Thursday 31 August, 2006
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रोग और उनकी औषिधियाँ
शोध कार्यक्रम का उद्घाटन और होम्योपैथी से होगा पेड़ पौधों की बीमारी का भी इलाज
Monday 21 August, 2006
कम से कम इस बार तो होम्योपैथिक अनुसंधान परिषद को इतनी अक्ल आयी कि सरकारी क्षेत्र मे हो रहे अधिकतर अनुसंधान सही तथ्यों पर आधारित नही होते हैं। डा गिरीश गुप्ता जी को यह शोध कार्य का जिम्मा देकर यह एक सही कदम उठाया गया है, डा गिरीश गुप्ता जी की प्रतिभा का सही आंकलन तो उसी समय से शुरू हो गया था जब वह नेशनल होम्योपैथिक कालेज मे थे , मेरा उनका साथ एक जूनियर की तरह से रहा, जब मैने एडमिशन लिया तो उनका शायद अन्तिम वर्ष था, टोबेको मोजेक वाइरस और कई अन्य बैकटरिया और फ़न्जाई पर उनका शोध कार्य सराहनीय रहे , कई साल पहले टोबेको मोजेक वाइरस पर उनका शोध कार्य C.D.R.I. के तत्वधान मे था जो उनकी विलक्षण प्रतिभा का परिचायक था। 19 अगस्त 2006 की दैनिक जागरण की दो खबरें कम से कम होम्योपैथिक से जुडे लोगो को बहुत राहत पहुचाने वाली हैं।
शोध कार्यक्रम का उद्घाटन
लखनऊ, 19 अगस्त (जासं.) । केंद्रीय होम्योपैथिक अनुसंधान परिषद, आयुष विभाग, केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने राजधानी स्थित होम्योपैथिक रिसर्च फाउण्डेशन को प्रोस्टेट ग्रन्थि पर होम्योपैथिक औषधियों का प्रभाव पर शोध के लिए वित्तीय सहायता दी है। तीन वर्ष तक चलने वाले इस शोध कार्यक्रम का उद्घाटन केंद्रीय आयुष विभाग के अनुभाग सेण्ट्रल काउन्सिल फार रिसर्च इन होम्योपैथी के निदेशक प्रो. चतुर्भुज नायक ने किया।
गौरांग क्लीनिक एवं होम्योपैथिक अनुसंधान केंद्र में आयोजित कार्यक्रम में पूर्व महापौर डा. एससी राय एवं निदेशक होम्योपैथी डा. बीएन सिंह उपस्थित थे। सरकार द्वारा दिये गये अनुदान से शोध के लिए पंजीकृत पुरुषों का नि:शुल्क परीक्षण जिनमें अल्ट्रासाउण्ड, रक्त, मूत्र परीक्षण एवं शल्य चिकित्सक की राय शामिल है, एवं दवा की सुविधा दी जायेगी। परियोजना का कार्यस्थल गौरांग क्लीनिक एवं होम्योपैथिक अनुसंधान केंद्र, बी-1/41 सेक्टर ए, निकट राजश्री सिनेमा कपूरथला अलीगंज है। इसके लिए एक शोध दल का गठन किया गया है जिसमें मुख्य परामर्श चिकित्सक डा. गिरीश गुप्ता, शोध अधिकारी डा. जेपी सिंह, यूरोलाजिस्ट डा. सलिल टंडन तथा वरिष्ठ शोध अधिकारी डा. मोहन सिंह हैं। 50 वर्ष इससे अधिक आयु के पुरुष जो प्रोस्टेट की बीमारी से पीडि़त हैं अपना पंजीकरण सुबह दस से दोपहर दो बजे के बीच करा सकते हैं।
एक दूसरी खबर 'होम्योपैथी से होगा पेड़ पौधों की बीमारी का भी इलाज ' जागरण मे छपी है, टोबेको मोजेक वाइरस पर कई साल पहले हुआ अनुसंधान मुझे याद देता है कि हम इस क्षेत्र मे बहुत कुछ कर सकते थे लेकिन सरकारी उपेक्षा का शिकार होम्योपैथी हमेशा से रही है, अब यह सही समय है कि होम्योपैथी का सही आंकलन किया जाय ।
होम्योपैथी से होगा पेड़ पौधों की बीमारी का भी इलाज
जागरण संवाददाता
लखनऊ, 19 अगस्त। केन्द्रीय आयुष विभाग के अनुभाग सेण्ट्रल काउन्सिल फार रिसर्च इन होम्योपैथी के निदेशक प्रो. चतुर्भुज नायक का कहना है कि पेड़ पौधों की बीमारी में भी होम्योपैथी लाभकारी है। इस दिशा में और अधिक शोध करने के लिए केन्द्रीय औषधि एवं सगंध पौधा अनुसंधान संस्थान (सीमैप) एवं सहारा एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट से सहयोग लिया जा रहा है। प्रो. नायक आज एक कार्यक्रम के सिलसिले में राजधानी में उपस्थित थे।
प्रो. नायक ने बताया कि अभी तक पेड़ पौधों के इलाज के लिए कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है। जानकारी के अभाव में किसान निर्धारित मात्रा से काफी अधिक कीटनाशक का प्रयोग करते हैं जिससे कई दुष्प्रभाव समाने आते हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए होम्योपैथिक दवाओं से पेड़ पौधे में लगने वाले रोगों को दूर करने की दिशा में शोध किया जायेगा। प्रो. नायक ने बताया कि नेशनल होम्योपैथिक कालेज में स्थित होम्योपैथिक ड्रग रिसर्च इंस्टीट्यूट में कई बीमारियों पर शोध हो रहा है। यहां पर सफेद दाग, किडनी में स्टोन, बच्चों में होने वाला डायरिया और प्रोस्टेट सम्बन्धी बीमारियों पर शोध किया जा रहा है। यहां पर आने वाले मरीजों से किसी ्रप्रकार का शुल्क नहीं लिया जाता है।
शोध कार्यक्रम का उद्घाटन
लखनऊ, 19 अगस्त (जासं.) । केंद्रीय होम्योपैथिक अनुसंधान परिषद, आयुष विभाग, केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने राजधानी स्थित होम्योपैथिक रिसर्च फाउण्डेशन को प्रोस्टेट ग्रन्थि पर होम्योपैथिक औषधियों का प्रभाव पर शोध के लिए वित्तीय सहायता दी है। तीन वर्ष तक चलने वाले इस शोध कार्यक्रम का उद्घाटन केंद्रीय आयुष विभाग के अनुभाग सेण्ट्रल काउन्सिल फार रिसर्च इन होम्योपैथी के निदेशक प्रो. चतुर्भुज नायक ने किया।
गौरांग क्लीनिक एवं होम्योपैथिक अनुसंधान केंद्र में आयोजित कार्यक्रम में पूर्व महापौर डा. एससी राय एवं निदेशक होम्योपैथी डा. बीएन सिंह उपस्थित थे। सरकार द्वारा दिये गये अनुदान से शोध के लिए पंजीकृत पुरुषों का नि:शुल्क परीक्षण जिनमें अल्ट्रासाउण्ड, रक्त, मूत्र परीक्षण एवं शल्य चिकित्सक की राय शामिल है, एवं दवा की सुविधा दी जायेगी। परियोजना का कार्यस्थल गौरांग क्लीनिक एवं होम्योपैथिक अनुसंधान केंद्र, बी-1/41 सेक्टर ए, निकट राजश्री सिनेमा कपूरथला अलीगंज है। इसके लिए एक शोध दल का गठन किया गया है जिसमें मुख्य परामर्श चिकित्सक डा. गिरीश गुप्ता, शोध अधिकारी डा. जेपी सिंह, यूरोलाजिस्ट डा. सलिल टंडन तथा वरिष्ठ शोध अधिकारी डा. मोहन सिंह हैं। 50 वर्ष इससे अधिक आयु के पुरुष जो प्रोस्टेट की बीमारी से पीडि़त हैं अपना पंजीकरण सुबह दस से दोपहर दो बजे के बीच करा सकते हैं।
एक दूसरी खबर 'होम्योपैथी से होगा पेड़ पौधों की बीमारी का भी इलाज ' जागरण मे छपी है, टोबेको मोजेक वाइरस पर कई साल पहले हुआ अनुसंधान मुझे याद देता है कि हम इस क्षेत्र मे बहुत कुछ कर सकते थे लेकिन सरकारी उपेक्षा का शिकार होम्योपैथी हमेशा से रही है, अब यह सही समय है कि होम्योपैथी का सही आंकलन किया जाय ।
होम्योपैथी से होगा पेड़ पौधों की बीमारी का भी इलाज
जागरण संवाददाता
लखनऊ, 19 अगस्त। केन्द्रीय आयुष विभाग के अनुभाग सेण्ट्रल काउन्सिल फार रिसर्च इन होम्योपैथी के निदेशक प्रो. चतुर्भुज नायक का कहना है कि पेड़ पौधों की बीमारी में भी होम्योपैथी लाभकारी है। इस दिशा में और अधिक शोध करने के लिए केन्द्रीय औषधि एवं सगंध पौधा अनुसंधान संस्थान (सीमैप) एवं सहारा एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट से सहयोग लिया जा रहा है। प्रो. नायक आज एक कार्यक्रम के सिलसिले में राजधानी में उपस्थित थे।
प्रो. नायक ने बताया कि अभी तक पेड़ पौधों के इलाज के लिए कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है। जानकारी के अभाव में किसान निर्धारित मात्रा से काफी अधिक कीटनाशक का प्रयोग करते हैं जिससे कई दुष्प्रभाव समाने आते हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए होम्योपैथिक दवाओं से पेड़ पौधे में लगने वाले रोगों को दूर करने की दिशा में शोध किया जायेगा। प्रो. नायक ने बताया कि नेशनल होम्योपैथिक कालेज में स्थित होम्योपैथिक ड्रग रिसर्च इंस्टीट्यूट में कई बीमारियों पर शोध हो रहा है। यहां पर सफेद दाग, किडनी में स्टोन, बच्चों में होने वाला डायरिया और प्रोस्टेट सम्बन्धी बीमारियों पर शोध किया जा रहा है। यहां पर आने वाले मरीजों से किसी ्रप्रकार का शुल्क नहीं लिया जाता है।
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होम्योपैथिक समाचार
वाइरल संक्रमण और होम्योपैथी-खसरा,छॊटी माता और कर्ण-मूल
Wednesday 16 August, 2006
बदलता हुआ मौसम , बारिश के पानी मे भीगना, रिमझिम फ़ुआरों का आनन्द किसे नही डोल देता, लेकिन उसके साथ लेकर आता है तमाम तरह के वाइरल संक्रमण । फ़िर उसके साथ हमारे नगर निगमों की मेहरबानी जो नल के पानी के साथ प्रदूषित पानी देना अपना फ़र्ज समझते है, वह भी् विभन्न तरह के वाइरल और बैक्टीरियल संक्रमणों के जिम्मेदार होते है। वाइरल संक्रमण कोई आवशयक नही कि बारिश के मौसम की ही मार हो, होली के आसपास और अन्य महीनो मे खसरा[measles], छोटी माता[chicken pox], कर्णमूल[mumps], इनफ़लूनजा[influenza], डेंगू बुखार[dengue fever] का हो जोर या फ़िर प्रदूषित पानी की वजह से पीलिया [hepatitis-jaundice], मियादी बुखार[typhoid] जो कि मूलभूत बैक्टीरियल संक्रमण है आम इन्सान की जिन्दगी को तंग करते रहते हैं।
सबसे पहले लेते हैं वाइरल संक्रमण और देखते हैं कि होम्योपैथी इसमे कितनी मदद कर सकती है। जहां तक तुलनात्मक प्रशन है,एलोपैथी जहां वाइरल में अपने को असहाय पाती है वही होम्योपैथी बैक्टीरियल की तुलना मे वाइरल संक्रमणो में अधिक सक्षम और कारगर रहती है।
1:-खसरा[Measles]:-
खसरा संक्रामक रोग है ,जिसके लक्षण होते हैं-तीव्र जुकाम,आखों से पानी आना,खांसी, सर्दी लगना,बुखार और चकत्ते पडना।जैसे ही चकत्ते पडते हैं, आखों से पानी जाने और रोशनी असह्य लगने के साथ बुखार 105० फ़ा तक बढने की संभावना रहती है। रोग के लक्षण 5-8 दिन तक रहते है। अगर उचित ढंग से इलाज न किया जाय तो न्यूमोनिया होने का खतरा बना रहता है। खसरा संक्रामक रोग है और अधिकांश बच्चे ही इसके शिकार होते हैं लेकिन बडे भी इससे संक्रमित हो सकते हैं। अकसर जाडे समाप्त होने के बाद जब मौसम में बदलाव होता है तब खसरे के मरीज बढ जाते हैं।
2- छोटी माता [chicken pox]
यह भी संक्रमित रोग है, बच्चे और बडे दोनो ही समान रूप से इससे संक्रमित हो सकते है। प्रारम्भिक लक्षणो मे शारीरिक थकावट,हल्का बुखार,और शरीर पर फ़फ़ोलों का उत्पन होना, जो छोटी माता की पहचान भी होती है। इसका समय काल लगभग 10 दिन रहता है।
3- कर्णमूल या कनफ़डे [mumps]
कर्णमूल भी संक्रामक रोग है जिसकी पहचान एक या एक से अधिक गलक्षत (parotid gland) की सूजन,साथ मे हल्का बुखार, मुँह खोलने मे परेशानी और दर्द के रूप मे जानी जाती है। रोग की समय सीमा लगभग 10-15 दिन होती है। अगर उचित ढंग से इलाज न किया जाय तो पुरुषों मे अंड कोष और औरतों मे स्तन की सूजन होने का खतरा बना रहता है।
आगे जारी.....
सबसे पहले लेते हैं वाइरल संक्रमण और देखते हैं कि होम्योपैथी इसमे कितनी मदद कर सकती है। जहां तक तुलनात्मक प्रशन है,एलोपैथी जहां वाइरल में अपने को असहाय पाती है वही होम्योपैथी बैक्टीरियल की तुलना मे वाइरल संक्रमणो में अधिक सक्षम और कारगर रहती है।
1:-खसरा[Measles]:-
खसरा संक्रामक रोग है ,जिसके लक्षण होते हैं-तीव्र जुकाम,आखों से पानी आना,खांसी, सर्दी लगना,बुखार और चकत्ते पडना।जैसे ही चकत्ते पडते हैं, आखों से पानी जाने और रोशनी असह्य लगने के साथ बुखार 105० फ़ा तक बढने की संभावना रहती है। रोग के लक्षण 5-8 दिन तक रहते है। अगर उचित ढंग से इलाज न किया जाय तो न्यूमोनिया होने का खतरा बना रहता है। खसरा संक्रामक रोग है और अधिकांश बच्चे ही इसके शिकार होते हैं लेकिन बडे भी इससे संक्रमित हो सकते हैं। अकसर जाडे समाप्त होने के बाद जब मौसम में बदलाव होता है तब खसरे के मरीज बढ जाते हैं।
2- छोटी माता [chicken pox]
यह भी संक्रमित रोग है, बच्चे और बडे दोनो ही समान रूप से इससे संक्रमित हो सकते है। प्रारम्भिक लक्षणो मे शारीरिक थकावट,हल्का बुखार,और शरीर पर फ़फ़ोलों का उत्पन होना, जो छोटी माता की पहचान भी होती है। इसका समय काल लगभग 10 दिन रहता है।
3- कर्णमूल या कनफ़डे [mumps]
कर्णमूल भी संक्रामक रोग है जिसकी पहचान एक या एक से अधिक गलक्षत (parotid gland) की सूजन,साथ मे हल्का बुखार, मुँह खोलने मे परेशानी और दर्द के रूप मे जानी जाती है। रोग की समय सीमा लगभग 10-15 दिन होती है। अगर उचित ढंग से इलाज न किया जाय तो पुरुषों मे अंड कोष और औरतों मे स्तन की सूजन होने का खतरा बना रहता है।
आगे जारी.....
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