चेस्टनट–होम्योपैथिक और बैचफ़्लावर पद्दतियों मे उपयोग ( Chestnut–Homeopathic & Bach flower uses )

Sunday 16 October, 2011

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गत सप्ताह नैनीताल भ्रमण के दौरान मुक्तेशवर जाते समय भवाली में फ़लॊ की मार्केट को देखकर रुकने का मोह छोड न पाया । कुछ नये फ़ल मुझे दिखे जो यहाँ मैदानी इलाकों मे कम ही दिखते हैं । इनमें से चेस्ट्नेट और कोका थे । रसीला फ़ल कोका तो मुक्तेशवर पहुँचते-२ समाप्त हो गया लेकिन चेस्ट्नेट काफ़ी संख्या मे बच गये जो  अभी भी लखनऊ आने पर भवाली और मुक्तेशवर की याद दिला रहे हैं ।

चेस्ट्नेट को देखकर भवाली मे मुझे उसके होम्योपैथिक और बैचफ़्लावर दवाओं मे प्रयोगों का स्मरण हो गया । चेस्ट्नेट की कई प्रजातियाँ होम्योपैथिक और बैचफ़्लावर मे इस्तेमाल लाई जाती हैं जिनमें रेड चेस्टनट (Red Chestnut) ,  स्वीट चेस्टनेट (Sweet Chestnut) , व्हाइट चेस्टनट (White Chestnut)  तथा चेस्टनट बड (Chestnut Bud) प्रमुख हैं । इनमे से चेस्टनट बड (Chestnut Bud) या एस्कुलस हिप ( Aesculus Hipp ) बैचफ़्लावर और होम्योपैथी दोनॊ ही मे प्रयोग लाई जाती है लेकिन दवाओं की कार्यप्रणाली दोनॊ ही मे जमीन आसमान का अन्तर है । इन चारों चेस्ट्नट को संक्षेप मे समझने के पहले चेस्टनट पर एक नजर डाल लें ।

Chestnut

साभार : विकीपीडिया

शाहबलूत ( चेस्टनट )  बादाम की प्रजाती का फल है यह अखरोट का ही एक रुप माना जाता है.शाहबलूत भूरे एवं लाल रंग का छोटा सा फल है जिसका उपयोग मेवे के रुप में भी किया जाता है इसका मूल स्थान ग्रीस रहा वहां से यह यूरोप में आया और संपूर्ण विश्व में फैल गया यूरोप ,एशिया और अफ्रीका के देशों में यह प्रतिदिन इस्तेमाल होने वाला भोज्य पदार्थ है. अभी भी चीन, जापान में एक महत्वपूर्ण खाद्य फसल है, और दक्षिणी यूरोप, जहां वे अक्सर ब्रेड बनाने में इस्तेमाल होता है और इतना प्रसिद्ध है की इसे एक प्रकार का उपनाम दिया गया रोटी का पेड़.
शाहबलूत में पौष्टिक तत्व शाहबलूत में बादाम एवं अखरोट के बराबर कैलोरी मौजूद होती है इसमें का विटामिन सी, कार्बोहाइड्रेट, आयरन, वसा, प्रोटीन इत्यादि तत्व मौजूद होते हैं इसमें स्टार्च की अधीकता देखी जा सकती है.
शाहबलूत का उपयोग शाहबलूत को अनेक प्रकार के व्यंजनों में किया जाता है.यह आलू के स्थान पर उपयोग में लाया जा सकता है यूरोप, अफ्रीका मे तो यह आलू के विकल्प के रूप में प्रयोग किया जाता है.इसे छीलकर या ऐसे ही कच्चा भी खाया जाता है ओर इसके अतिरिक्त यह पकाकर, तलकर, उबालकर, जैसे भी चाहें उपयोग कर सकते हैं.इसे बनाने का सबसे अच्छा तरीका बेक करना है बेक करने पर यह आलू जैसा स्वाद देता है यह विधि तुर्की, स्पेन उत्तरी चीन, ग्रीस, फ्रांस, कोरिया और दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में लोकप्रिय है.
शाहबलूत से आटा भी तैयार किया जाता है जो ब्रेड बनाने के लिए तो इस्तेमाल किया जाता है इसके साथ ही इसे केक, पैनकेक्स, पास्ता,इत्यादी में उपयोग होता है इसे सूप,सास तथा रसेदार सब्जियों में डाला जाता है जिससे उनमे गाढा पन आए तथा यह भोजन का एक पौष्टिक रुप है इसके आटे से बनी रोटी ज्यादा समय तक ताजी रहती है.
शाहबलूत के स्वास्थ्य लाभ शाहबलूत स्वास्थ्य के लिए फ़ायदेमंद है यह अनेक रोगों में औषधि रुप में इस्तेमाल होता है खांसी, जुकाम, में इसका सेवन लभदायक होता है श्वास संबंधी समस्याओं मे इस फल को पानी में उबालकर इसका अर्क रोगी को पिलाना चाहिए.शाहबलूत को पीस कर उसमे शहद मिलाकर सेवन करने से काली खांसी में आराम आता है.इस फल के पत्ते से सिरप और टॉंनिक का निर्माण भी किया जाता है.

( साभार : निशामधुलिका.काम )

होम्योपैथिक और बैचफ़्लावर दवाओं मे उपयोग :

एस्कुलस हिप्पोकास्टनम (Aesculus hippocastanum ) होम्यपैथिक उपयोगों मे एस्कुलस की पहचान बवासीर की उपयोगी औषधियों मे से की जाती है विशेषकर बादी बवासीर जहाँ शुष्कता के कारण मल त्याग भारी पीडादायक होता है । इसी शुष्कता के कारण रोगी को किरच सा चुभने का दर्द उत्पन्न होता है जो इस  औषधि की विशेषता है । इस औषधि का एक अन्य महत्वपूर्ण लक्षण sacro ilaic joint का कटिशूल है और यही कारण है कि यह sacroiliitis की एक विशेष औषधि है । रोगी को महसूस होता है कि कमर लगभग टूटने वाली है और कोई भी शारिरिक स्थिति उसका निवारण नही कर पाती है ।

बैच फ़्लावर दवायें  होम्योपैथिक दवाओं से बिल्कुल अलग हैं , डां बैच के अनुसार , “मनुष्य का शारिरक दु:ख मानसिक रोग का संकेत देता है “ यही वजह है कि बैच फ़्लावर दवायें मानसिक रोगों और psychosomatic diseases  में बहुत प्रभावी रोल दिखाती हैं ’ हर बैच फ़्लावर दवाओं की एक मुख्य थीम है  और चिकित्सक को रोगी में उस मुख्य थींम को ढूँढंना पडता है जैसे इन ४ चेस्ट्नट दवाओं के थींम  अलग –२ हैं ’

रेड चेस्टनट (Red Chestnut) :

Botanical: Aesculus Carnea
Family: Hippocastanaceae
Homeopathic remedy: Not used, although members of the Aesculus genus - Aesculus Hippocastanum  and Aesculus Glabra are used.

दूसरॊं के लिये चिन्ता और डर रेड चेस्टनट का स्वभाव है . अगर बच्चा समय पर घर नही पहुँचा तो चिन्ता और अगर भाग कर रोड पार करने लगा तो चिन्ता कि कहीं किसी गाडी के नीचे न आ जाये . व्यर्थ की चिन्ता विशेशकर प्रियजनों की रेड चेस्टनट की मुख्य थीम है ’

स्वीट चेस्टनेट (Sweet Chestnut) :

Botanical: Castanea Sativa 
Family: Fagaceae
Homeopathic remedy:  Castanea Vesca

मनुष्य की ऐसी मानसिक अवस्था जिसमॆ  उसे पूर्ण मायूसी हो  जाये , कोई सहारा न दिखे औए वह अपने को लाचार समझने लगे . स्वीट चेस्ट्नट की मुख्य थीम है , “ बेहद मानसिक पीडा , घोर निराशा , मायूसी , बिल्कुल हौसला छॊड देना ” हाँलाकि ऐसे व्यक्ति सामान्य जिन्दगी मे निडर और बहादुर होते हैं ।

व्हाइट चेस्टनट (White Chestnut) :

Botanical: Aesculus Hippocastanum
Family: Hippocastanaceae
Homeopathic remedy: Aesculus Hippocastanum

मुझे याद नही पडता कि व्हाइट चेस्टनट और क्रैब एपल को छॊडकर बाकी कोई बैचफ़्लावर दवा क्लीनिक मे इतनी अधिक प्रयोग की होगी । Obscessive compulsive Neorosis , schizophrenia और कई तरह के  psychosis मे इसका उपयोग व्यापक है । और होगा  भी क्यूँ नहीं , इसकी थीम ही ऐसी है , “ पुराने और गैरजरुरी  ख्यालों मे खोये रहना , तमाम प्रयत्त्न करने के बावजूद भी जो मन मे आ जाये उसे निकाल न पाना , मन ही मन अपने आप से बाते करना और दलीलें करना’।” डां बैच लिखते हैं कि ग्रामोफ़ोन के रिकार्ड की तरह विचारों की सुई सदा घूमती रहती है ।

डां कृष्णामूर्ति ने “An exploratory study on Dr. Bach flower remedies of England” मे इस दवा के प्रयोगों का वर्णन निम्म प्रकार किया :

१. मरिज का अपने आप से बातें करना या एक ही बात या क्रिया को बार-२ दोहराना

२. मन में नापसन्द विचारों का चक्कर लगना ।

३. गिनती गिना, बार-२ दरवाजा बन्द है या नही इसको चेक करना ।

४. बडे हिसाब से प्लान बनाना और फ़िर उस पर अमल न करना ।

५. वहम( delusions ), , भ्लावा ( illusions ), छाया ( hallucinations ) , भूत –प्रेत देखना या उनकी आवाज सुनना ।

 

चेस्टनट बड (Chestnut Bud) :

Botanical: Aesculus  indica

Family: N.O. Sapindaceae

चेस्ट्नट बड की मुख्य थींम मे वह व्यक्ति जिसमे ध्यान का अभाव हो , एक ही गलती को बार-२ करे और टालामटोल की भावना से ग्रस्त हो . स्वभावत : कुछ वच्चे इससे  ग्रसित रहते हैं , पढने लिखने मे ध्यान नही लगाते और हर चीज को सीखने मे आना कानी करते हैं ।

तो अगली बार जब आप चेस्टनट खायें तो होम्योपैथिक और बैचफ़्लावर उपयोगों को न भूलें ।

Treating Acute infections in Homeopathy – एक्यूट संक्रमणॊं का होम्योपैथी मे उपचार

Monday 26 September, 2011

जुलाई से लेकर सितम्बर तक के ज्वरों मे लगभग एक तरह की  समानता देखी जाती है । ज्वर की प्रवृति मे तेज बुखार, ठंड लगने के साथ, तेज सरदर्द ,वमन , बदन का टूटना आदि प्रमुख्ता से रहते हैं . लेकिन कुछ विशेष अन्तर भी रहते हैं जिनके आधार पर इनकी पहचान की जा सकती है , विशेषकर उन इलाकों मे जहाँ महँगे जाँच करवाना संभव नही होता .

क्रं. मलेरिया डेगूं चिकिनगुनिया
1. ठँड से काँपना, जिसकी पहचान डाइगोनिस्टिक किट और ब्लड स्मीर से की जाती है . डॆगूं मे अधिकतर रक्त से संबधित समस्यायें होती हैं जैसे त्वचा पर छॊटॆ लाल दाग जो WBC और platelet की कमी से होते हैं . चिकिनगुनिया में जोडॊं ( संधिस्थलों ) मे दर्द और सूजन अधिक रहती है .
2.   डॆगूं का बढना जो WBC और PLatelet ( < 100000/L ) की संख्या मे कमी से लगाया जाता है . चिकनगुनिया में WBC और platelet की संख्या मे विशेष फ़र्क नही पडता.
3.   Positive Torniquet Test : Blood pressure cuff को पांच मिनटॊं तक systolic और diastolic blood pressure के बीच के अंक पर फ़ुलाये रखें . यदि प्रति स्कैवेर इंच मे दस से अधिक छॊटॆ लाल चकत्ते दिखाई दें तो जाँच का परिणाम निशिचित रुप से positive है .  

लेकिन अगर इस बार देखें तो ज्वर की प्रकृति अलग सी देखी गई है । गत वर्ष जहाँ  डॆगूं और चिकिनगुनिया का संक्रमण अधिक था वहीं इस बार मलेरिया के केस बहुतायात मे पाये गये । आम तौर से यह समझा जाता है कि होम्योपैथी चिकित्सा पद्दति सिर्फ़ लक्ष्णॊं पर आधारित चिकित्सा पद्द्ति है और उसमे डाइगोनिसस का विशेष स्थान नही है । लेकिन यह सच नही है , विशेषकर एक्यूट रोगों मे डाइगोसिस आधारित चिकित्सा दवा के सेलेकशन मे मदद करती है और व्यर्थ  का कनफ़्यूजन  नही खडा करती । एक्यूट रोगों मे सेलेक्शन के विकल्प कई हैं ( नीचे देखें ) , इनमें क्लासिकल होम्योपैथी भी है , काम्बीनेशन  भी , मदर टिन्चर भी , क्या सही या या क्या गलत यह पूर्ण्तया चिकित्सक के विवेक पर निर्भर है , लेकिन अगर लक्षण स्पष्ट हों तो क्लासिकल को पहली पंसद बनायें नही तो और तरीके तो हैं ही :)

एक्यूट रोगों में सेलेकशन के विकल्प :

१. disease specific औषधियाँ:

specifics का रोल न होते हुये भी इस सच को नजरांदाज करना असंभव है कि कई एक्यूट रोगों मे इलाज disease specific ही होता है जैसे टाइफ़ायड मे baptisia , Echinacea , infective hepatitis में chelidonium , kalmegh  , Dengue  मे eup perf  , acute diarrhoea मे alstonia , cyanodon , आम वाइरल बुखार में Euclayptus  ,Canchalgua ,  मलेरिया के लिये  विभिन्न एर्टेमिसिआ (कोम्पोसिटी) प्रजातियां जैसे कि एर्टेमिसिआ एब्रोटनुम (एब्रोटनुम), एक मारिटिमा (सिना), एक एब्सिनठिअम (एब्सिनठिअम) , chinum sulph, china , china ars आदि ।

२. सम्पूर्ण लक्षण के आधार पर: (Totality of symptoms )

अक्सर होमियोपैथी चिकित्सा नीचे लिखे गए लक्षणो को ध्यान में रखकर दी जाती है –

  • ठंड और बुखार के प्रकट होने का समय
  • शरीर का वह भाग, जहां से ठंड की शुरूआत हुई और बढी।
  • ठंड या बुखार की अवधि
  • ठंड, गर्म और पसीना आने के चरणों की क्रमानुसार वृद्धि
  • प्यास/ प्यास लगना/ प्यास की मात्रा/ अधिकतम परेशानी का समय
  • सिरदर्द का प्रकार और उसका स्थान
  • यह जानना कि लक्षणों के साथ साथ जी मतलाना/ उल्टी आना/ या दस्त जुडा हुआ है या नहीं।

३. NWS ( Never well since ) :

अगर रोग का कारण specific हो जैसे रोगी का बारिश के पानी मे भीगना ( Rhus tox ) , दिन गर्म लेकिन रातें ठंडी ( Dulcamara ), ठंडी हवा लगने से (aconite ), अपच खाना खाने से ( antim crud , pulsatilla आदि )

४. रोगी की गतिविधि ( Activity ) , ठंडक और गर्मी से सहिषुण्ता/असहिषुणता ( Thermal  ), प्यास (Thirst )और मानसिक लक्षण में  बदलाव ( changes in mental attitude of the patient ) ;

डां प्रफ़ुल्ल विजयरकर का यह वर्गीकरण एक्यूट रोगों में संभवत: दवा सेलेकशन का सबसे अधिक कारगर तरीका है । लेकिन यह सिर्फ़ एक्यूट इन्फ़ेशन के लिये ही है , जैसा नीचे दिये चार्ट १ से स्पष्ट है कि यह indispositions और Acute Exacerbations of Chronic diseases  मे इसका कोई रोल नही है । प्रफ़ुल्ल के सूत्र आसान है , गणित की गणनाओं की तरह , रोग के दौरान रोगी की गतिविधि ( decreased , increased or no change ) , ठंडक और गर्मी से सहिषुण्ता/असहिषुणता ( Thermal : chilly / hot ) ,  प्यास (Thirst ( increased or decreased )  और मानसिक लक्षण में  बदलाव ( changes in mental attitude of the patient : diligent or non diligent ) पर गौर करें , और यह तब संभव है जब मैटेरिया मैडिका पर पकद मजबूत हो । उदाहारणत: एक रोगी जो तेज बुखार की हालत में सुस्त और ठंडक को सहन नही कर पा रहा है , प्यास बिल्कुल भी नही है और आस पास के वातावरण मे उसका intrest बिल्कुल् भी  नही है , उसका सूत्र  DCTL   (Axis : Dull +Chilly+thirstless ) होगा । इस ग्रुप में Sepia ,Gels ,Ac. Phos ,Ignatia ,Staph ,Ipecac ,Nat-Carb ,China  प्रमुख औषधियाँ हैं , चूँकि स्वभावत: वह किसी भी कार्य को करने मे अरुचि दिखा रहा है इस ग्रेड मे सीपिया प्रमुख औषधि होगी । जो चिकित्सक प्रफ़ुल्ल का अनुकरण करते हैं वह अच्छी तरह से जानते हैं कि उनके सूत्र कितने प्रभावी हैं ।

DCTL   (Axis : Dull +Chilly+thirstless )
4)Sepia 5)Gels 6)Ac. Phos 7)Ignatia 8)Staph 9)Ipecac 10)Nat-Carb 11)China

DCT (Axis : Dull+chilly+thirsty)
12)Nux-vom 13)Eup-per 14)Phos 15)Calc-c 16)Bell 17)China 18)Silicea 19)Hyos

DHTL (Axis : Dull+hot+thirstless)
20)Puls 21)Bry 22)Apis 23)Lach 24)Sulph 25)Lyc 26)Thuja 27)Opium 28)Carbo-v

DHT ( Axis : Dull+hot+thirsty)
29)Bry 30)Nat. Mur 31)Sulph 32)Lyc 33)    Merc. S. 34)Apis   

विस्तार से यहाँ बताना संभव नही है लेकिन अधिक जानकारी के लिये यहाँ और यहाँ देखें ।

vjayakar-expert1

                           चित्र १ : Dr Praful Vijayakar’s Acute system :

            साभार : http://www.hompath.com/VFeatures.html

 

 

S. No Acute Infection  Indisposition Acute Exacerbations of Chronic disease
1 Viral  fevers, Influenza, tonsilitis ,Sore Throat, Typhoid,  Pneumonia, Pneumonitis, Lung Abscess , Septicaemia, Food poisoning,Infective diarrhoea, Dysentry,Urinary tract colics,  Pleurisy. Treatment not required

constitutional
required

 

 

                 ्चित्र २

flow chart of acute cases

                                                  चित्र३ ( Flow chart of Acutes by Dr Praful Vijarkar )

vijayakar-expert2  

                                      चित्र ४ साभार : http://www.hompath.com/VFeatures.html

     

किसी भी एक्यूट केस और विशेषकर संक्रमण रोगों मे हैनिमैन द्वारा प्रतिपादित आर्गेनान के तीन सूत्र  १०० -१०२ को पढने  से हैनिमैन की विचारधारा का स्पष्ट मूलाकंन किया जा सकता है । यह भी अजीब इत्फ़ाक है कि जिस आर्गेनान को डिग्री लेने के लिये सिर्फ़ पढा जाता हो उसका सही मूल्याकंन प्रैक्टिस के दौरान अधिक बेहतर तरीके से किया जा सकता है । :)

हैनिमैन लिखते है :

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सूत्र १०० - महामारी और संक्रामक रोगों का उपचार -

महामारी और बडे पैमाने पर फ़ैलने वाले संक्रामक रोगों की चिकित्सा करने के सिलसिले मे चिकित्सक को इस जाँच पडताल के चक्कर मे नहीं पडना चाहिये कि उस नाम की या उस प्रकार की बीमारी का प्रकोप पहले हो चुका है या नही । इस प्रकार की जिज्ञासा व्यर्थ है क्योंकि उस जानकारी को आधार बना कर वर्तमान महामारी या रोग की चिकित्सा करना जरुरी नही । चिकित्सक को तो उसे एक नया रोग मान लेना चाहिये और यही मानकर उसे रोग का सम्पूर्ण चित्र अपने मस्तिष्क मे बैठाने का प्रयास करना चाहिये । इसी प्रकार किसी भी औषधि  का  वैज्ञानिक आधार करने के लिये यह जरुरी है कि वह उस औषधि को जाने और भली भाँति परीक्षण कर ले । चिकित्सक को अपने मन मे यह धारण कभी भी न बन्ननी चाहिये कि रोग बहुत कुछ पिछ्ले रोग से मिलता हुआ है तथा रोगी मे लगभग वही लक्षण विधमान है जो पहले किसी रोग मे हो चुके हों । यदि चिकित्सक सावधानी से रोगी का परीक्षण करेगे तो यह पायेगे कि कि यह नई माहमारी पिछली माहमारी से सर्वथा भिन्न्न है और लोगों ने भ्रम वश उसे एक ही नाम दिया है । यह भिन्नता संक्रामक रोगों के अतिरिक्त बडे पैमाने पर होने वाले अन्य रोगों मे भी पायी जाती है । परन्तु खसरा , चेचक आदि संक्रामक रोगों पर यह नियम नही लागू होता ।

§ 100

In investigating the totality of the symptoms of epidemic and sporadic diseases it is quite immaterial whether or not something similar has ever appeared in the world before under the same or any other name. The novelty or peculiarity of a disease of that kind makes no difference either in the mode of examining or of treating it, as the physician must any way regard to pure picture of every prevailing disease as if it were something new and unknown, and investigate it thoroughly for itself, if he desire to practice medicine in a real and radical manner, never substituting conjecture for actual observation, never taking for granted that the case of disease before him is already wholly or partially known, but always carefully examining it in all its phases; and this mode of procedure is all the more requisite in such cases, as a careful examination will show that every prevailing disease is in many respects a phenomenon of a unique character, differing vastly from all previous epidemics, to which certain names have been falsely applied - with the exception of those epidemics resulting from a contagious principle that always remains the same, such as smallpox, measles, etc.

सूत्र १०१- महामारी का निदान

बहुधा ऐसा होता है कि चिकित्सक किसी संक्रामक रोग से पीडित व्यक्ति  को पहली बार देखने पर समझ न पाये । लेकिन उसी प्रकार के कई रोगियों को देखने के बाद चिकित्सक को रोग के सभी लक्षण और चिन्ह याद हो जायेगें । यदि चिकित्सक  तीक्ष्ण निरीक्षण वाला है तो एक या दो रोगी को देखने के बाद ही रोग के लक्षण उसके मन मे अंकित हो जायेगें और अपनी इस  जानकारी के आधार पर वह सामान लक्षण वाली दवा का चुनाव कर सकेगा ।

§ 101

It may easily happen that in the first case of an epidemic disease that presents itself to the physician's notice he does not at once obtain a knowledge of its complete picture, as it is only by a close observation of several cases of every such collective disease that he can become conversant with the totality of its signs and symptoms. The carefully observing physician can, however, from the examination of even the first and second patients, often arrive so nearly at a knowledge of the true state as to have in his mind a characteristic portrait of it, and even to succeed in finding a suitable, homoeopathically adapted remedy for it.

सूत्र १०२ - माहामारियों के ल्क्षण

महामारियों से पीडित रोगियों के लक्षण  लिखते-२ चिकित्सकों के मस्तिष्क मे रोग का चित्र और भी अधिक स्पष्टता से उभर आता है । इस प्रकार लिखे गये विवरण से रोग की और ही विशेषतायें उभर कर आ जाती हैं परन्तु इसके साथ ही कुछ लक्षण ऐसे भी प्रकाश मे आते हैं जो केवल कुछ रोगियों मे प्रकट होते हैं और सभी रोगियों मे नही पाये जाते । अत: विभिन्न प्रकृति के अनेक रोगियों को देख कर रोग की यथार्थ जानकरी प्राप्त की जा सकती है ।

§ 102

In the course of writing down the symptoms of several cases of this kind the sketch of the disease picture becomes ever more and more complete, not more spun out and verbose, but more significant (more characteristic), and including more of the peculiarities of this collective disease; on the one hand, the general symptoms (e.g., loss of appetite, sleeplessness, etc.) become precisely defined as to their peculiarities; and on the other, the more marked and special symptoms which are peculiar to but few diseases and of rarer occurrence, at least in the same combination, become prominent and constitute what is characteristic of this malady.1 All those affected with the disease prevailing at a given time have certainly contracted it from one and the same source and hence are suffering from the same disease; but the whole extent of such an epidemic disease and the totality of its symptoms (the knowledge whereof, which is essential for enabling us to choose the most suitable homoeopathic remedy for this array of symptoms, is obtained by a complete survey of the morbid picture) cannot be learned from one single patient, but is only to be perfectly deduced (abstracted) and ascertained from the sufferings of several patients of different constitutions.

आर्गेनान के इन तीन सूत्रॊं को पढने के बाद हैनिमैन के "Genus Epidemics ' की परीभाषा को आसानी से समझा जा सकता है । संक्रामक रोगों मे एक ही सत्र मे चुनी गई औषधि जो कई रोगियों मे व्याप्त लक्षणॊं को कवर करती है  , जीनस इपीडिमिकस कहलाती है । यही कारण था कि पिछ्ले कई महामरियों मे होम्योपैथिक दवाओं ने अपना सर्वष्रेष्ठ असर दिखलाया ।

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मेरी डायरी - ईथूजा साइनाएपियम (Aethusa Cyanapium )

Saturday 3 September, 2011

क्या  एक रोगी की केस हिस्ट्री  एक कन्सलटेशन मे पूरी हो जाती है ?  बहुधा यह संभव नही हो पाता । पहली बार आया हुआ नया रोगी बहुधा उन लक्षणॊं को तरजीह  नही देता जिसको उसको लगता है कि उनकी महत्ता कम है । लेकिन २-३ कन्सलटेशन और रोगी के परिवार जनों के साथ वार्तालाप के बाद कै नये लक्षण प्रकाश मे आते हैं जिनसे आगे के केस को संभालना आसान हो जाता  है । हाँ , अलबत्ता उन रोगियों या उनके परिवार के लोगों मे जहाँ होम्योपैथिक की समझ होती है वहाँ परेशानी नही आती । यह चर्चा मै इस लिये कर रहा हूँ क्योंकि कई बार मुझे नये रोगियों के साथ इस तकलीफ़ से गुजरना पडा है । कुछ इसी तरह ६ वर्षीय सानिया के साथ हुआ । epileptic convulsions  या आक्षेपॊं  से पीडित सानिया का इलाज फ़रवरी २०१० से सितंबर २०१० के मध्य चला और इस के दौरान कई बार केस हिस्ट्री के आधार पर सही सिमिलमम को बदलना पडा और आखिरकार कुछ अप्रत्याशित से आक्षेपों मे कम इस्तेमाल होने वाली औषधि ईथूजा साइनाएपियम से वह पूरी तरह से स्वस्थ हुयी ।

aethusa

सम्पूर्ण केस को रखने  के पहले ईथूजा साइनाएपियम को स्मरण करना एक बार उचित होगा ।  यूरोप मे पायी जानी वाली एक साधारण सी घास  फ़ूल्स पार्सली ( fools parsley ) से यह औषधि तैयार की जाती है । नन्हें-२  बच्चॊ की यह सच्ची मित्र है क्योंकि यह उनकी बहुत सी समस्याओं से छुट्कारा दिलाती है विशेषकर दूध की उल्टी करने वाले शिशुऒं मे । शिशु जैसे ही दूध पीता है वह या तो वमन से भारी मात्रा मे निकल जाता है और अगर कुछ देर के लिये वह पॆट मे ठहर गया तो वमन जैसे जमे हुये दही के रुप मे होती है । प्यास न के बराबर और निद्रा का आवेश बहुत अधिक इसके प्रधान लक्षण हैं ।

aethusa intolerance of milk

इसके अलावा ईथूजा  ऐसे आक्षेपों मे भी उपयोगी रहती है निनमे अगूंठॆ भिंच जाते हैं और आँखे नीचे झुक जाती हैं । रोगी का हाव भाव एक खास पहचान लिये होता है । उसकी आखॆं धँसी होती हैं तथा नथूनॊ से मुख के कोणॊं तक खिंची दो स्पष्ट रेखाओं और ऊपरी ओंठ से घरे भाग मे मोती जैसी सफ़ेदी रहती है । इसे नासिका रेखायें  कहते हैं ।

 aethusa dullness during examination ईथूजा का प्रयोग ध्यान केंद्रित करने की शक्ति के अभाव मे भी रहता है और यही कारण है कि यह औषधि अकसर उन शिक्षार्थियों मे भी प्रयोग की जाती है जहाँ अवससन्नता , ध्यान केद्रितं करने का अभाव और एक खास तरह की गमगीनता रहती है ।

 love for animals लेकिन एक और लक्षण  भी है जिसकी नजर मेरी इस केस को लेते और repertorise करते हुये पडी । और वह है जानवरॊं से अथाह प्रेम । और यही इस रोगी कॊ ठीक करने प्रधान लक्षण साबित हुआ |

सानिया को जब उसके पिता दिखाने के लिये  पहली बार लाये तो वह अन्य बच्चॊ से अलग सी दिखी । अगस्त २००९ मे पहला आक्षेप पडा और उसके बाद यह सिलसिला लगातार ३-४ दिनों के अन्तराल पर चलता रहा । इस दौरान ऐलोपैथिक इलाज का सहारा लिया लेकिन आक्षेपों मे कमी न आयी । अन्तर अवशय बढ गया लेकिन इसके बावजूद आक्षेप  पडते रहे । ५ भाई बहनॊ मे ४ नम्बर मे यह लडकी का चेहरा और  स्वभाव कुछ अजीब सा दिखा । चेहरा तमतमाया हुआ जैसे लडने मे मूड मे हो , सन्तुष्ट किसी से भी नही , अकेले रहना पसन्द और अन्य भाई बहनों से पटरी बिल्कुल भी नही । ऐसा भी नही था कि परिवार मे उसके साथ कोई भेद भाव रखा जाता रहा हो । उसके पिता के अनुसार रोज नई –२ तरह की डिमांड , कभी नये मोजों की फ़रमाईश और कभी मुर्गी के बच्चॊ की । एक डिमाडं पूरी की जाती तो नयॊ डिमाडं खडी हो जाती । लडाई झगडा पडॊसियों के बच्चॊ से तो था ही लेकिन अपने भाई बहनों से भी पटरी नही खाती थी । घर मे किसी का समझाना तो मानो आफ़त सी खडी कर देता । और कम से कम मेरे किसी भी सवाल का जबाब उसने कभी भी ठीक से नही दिया ।

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रिपर्टर्जेशन के आधार पर Chamomilla ,  Staphysagria , Sepia , Carcinocin और Cina मे से कैमोमिला सबसे उपयुक्त औषधि के रुप मे ऊभरी । अत: पहला प्रिसक्र्पशन कैमोमिला २०० और pl  से किया गया । लेकिन १० दिन की समाप्ति पर न तो मानसिक लक्षणॊं मे और न ही आक्षेपों मे अपेक्षित परिणाम दिखाई दिये । आक्षेप पूर्वत: की तरह ४ दिन पर पडॆ । दूसरे सप्ताह की समाप्ति पर कैमोमिला के साथ Oenanthus crocata  Q और Artemesia vulgaris Q को जोडा गया । इस बार आक्षेप पहले की तुलना मे कम रहे लेकिन मानसिक लक्षण वैसे ही रहे |  इस १५ दिन के दौरान आक्षेप घट कर २ बार पर आ गये । यह क्रम अप्रैल मध्य तक चला , कभी आक्षेप कम और कभी अधिक ।

अप्रेल के महीने के अंत मे मुझे अचानक उसके घर पर उसकी माँ को देखने जाना पडा . जब मै उसकी माँ को देख कर कमरे से बाहर निकल रहा था तो मेरी नजर उस लडकी पर पडी . दरवाजे  के पास बैठी वह  दो बिल्ली के बच्चों को अपनी गोदी मे लेकर  सुलाने की कोशिश कर रही थी । मै एक क्षण  के लिये रुका और  एक  पल उसको  देखता रहा . कम से कम इतनी अवधि मे उसके चेहरे पर इतना भोलापन और सौम्यता कभी न देखी । वह बिल्कुल अबोध बच्चॊ की तरह शांत नजर आ रही थी । मुझे देखकर वह मुस्कराई और धीरे से मुझे सलाम किया । मै अपलक उसको देखता रहा और  वापस पल्टा और उसकी माँ से उसके इस व्यवहार के बारे मे पूछ्ने लगा । ’यही इसका स्वभाव है ,  कबूतरॊं , बिल्ली और अन्य जानवरों  के बच्चॊ को छॊडकर इसकी निभती किसी से नही  है ’, उसकी माँ बोली

मैं क्लीनिक वापस आया और सिन्थीसस रिपर्ट्री मे love for animals रुब्रिक को तलाशने लगा ।

MIND - ANIMALS - love for animals
aeth. ambr. bar-c. bufo calc. calc-p. carc. caust. lac-del. lac-f. lac-leo. limest-b. med. nat-m. nuph. phos. psor. puls. sulph. tarent.
MIND - ANIMALS - love for animals - talking to animals
aeth.

ईथूजा हर लक्षण को तो नही लेकिन  प्रमुखता से दिखने वाले rare, striking  और  characteristic लक्षणॊं को कवर कर रही थी  , वह आक्षेपों और विशेष मानसिक लक्षण love for animals को कवर कर रही थी लेकिन क्या ईथूजा वाकई मे उसकी दवा थी , थोडी सी और तलाश मे ईथूजा के मानसिक लक्षणॊं पर वृहद लेख Alexander Gothe and Julia Drinnenberg की Homeopathic Remedy Pictures में मिला । एक नजर :

    • patients requiring Aehusa are often loners who live a withdrawnlife , together with one or several animals.
    • This reclusion into solitude develops slowly, fuelled by personal dissapontments and a feeling of not being able to understand the society with its manifold ideas , opinions and trends . They feel different.
    • they find it hard to build up contacts and relationship with other people , to communicate with or show an intrest in others.
    • These patients have their own intense thoughts and feelings, but they timidily keep them to themselves because they think that no one understands them or wants to know.

    • Thus their  emotions are bottled up; they are unable to express them, and this unconscious conflict results in these people withdrawing further and further.
    • Eventually they avoid people . they become outsiders, compensate by acquiring many animals and dedicate their whole life to them.

    • In this way they construct a substitute world in which the company and affection of the animals render any need for contact with human beings superfluous.

    • Through their sensitive communication with the animals , these patients release their pent up emotions and achieve the kind of pleasure which they were not able to find with humans.
    • If they do not suceed in building this kind of community in order to relax emotionally , their emotional affections begin to emerge in the form of soliloquies or illnesses.

अप्रेल २०१० के मध्य मे चल रहे औषधियों को हटा कर ईथूजा १००० और pl दी गई और परिणाम अविस्मर्णीय रहे । मई तक आते –२ आक्षेप लगभग  बन्द हो गये और मुख्य बात कि रोगी के व्यवहार मे असाधारण परिवर्तन दिखाई दिया , अब तो न वह आक्रामक थी , न ही उसकी कोई अनावशयक  डिमाडं थी । अक्टूबर २०१० तक ईथूजा १००० को २ बार रिपीट करना पडा । सानिया आज पूर्ण्तया स्वस्थ है । अक्टुबर मे उसका इलाज बन्द कर दिया और उसके पिता को खासकर ताकीद दी कि अगर कोई व्यवहार मे कोई  परिवर्तन दिखे तो फ़िर तुरन्त मिले ।

मानसिक लक्षणॊं का आधार होम्योपैथिक प्रेसक्राइबिग  का प्रमुख घटक है ।

[slideshow id=504403158293269505&w=426&h=320]

आर्गेर्नान आफ़ मेडिसेन मे हैनिमैन ने लिखते  हैं :

§ 5

HAHNEMANN Useful to the physician in assisting him to cure are the particulars of the most probable exciting cause of the acute disease, as also the most significant points in the whole history of the chronic disease, to enable him to discover its fundamental cause, which is generally due to a chronic miasm. In these investigations, the ascertainable physical constitution of the patient (especially when the disease is chronic), his moral and intellectual character, his occupation, mode of living and habits, his social and domestic relations, his age, sexual function, etc., are to be taken into consideration.

सूत्र ५-रोग के मूल कारण की खोज

रोग नया हो या पुराना चिकित्सक को बीमारी के मूल कारणॊं की खोज करना नितान्त आवशयक  है । नये रोगों मे रोग उत्पन्न करने और रोग को उत्तेजना देने वाले कारणॊं पर तथा पुरानी बीमारियों मे रोग के इतिहास पर चिकित्सकों को बहुत अधीरता और सावधानी से विचार करना चाहिये क्योंकि ऐसा करने पर ही रोग के मूल कारण का पता लग सकता है । वस्तुत: चिकित्सक को रोगी की शरीर रचना और प्रकृति – गठन , शक्ति , स्वभाव , आचरण , च्यवसाय , रहन सहन , आदतें , समाजिक तथा परिवारिक संबन्ध , आयु, ज्ञान्निद्र्यों के व्यवाहार पर पूरी तरह से विचार कर लेना चाहिये ।

    § 213

    We shall, therefore, never be able to cure conformably to nature – that is to say, homoeopathically – if we do not, in every case of disease, even in such as are acute, observe, along with the other symptoms, those relating to the changes in the state of the mind and disposition, and if we do not select, for the patient’s relief, from among the medicines a disease-force which, in addition to the similarity of its other symptoms to those of the disease, is also capable of producing a similar state of the disposition and mind.1

    1 Thus aconite will seldom or never effect a rapid or permanent cure in a patient of a quiet, calm, equable disposition; and just as little will nux vomica be serviceable where the disposition is mild and phlegmatic, pulsatilla where it is happy, gay and obstinate, or ignatia where it is imperturbable and disposed neither to be frightened nor vexed.

सूत्र २१३ – रोग के इलाज के लिये मानसिक दशा का ज्ञान अविवार्य

इस तरह , यह बात स्पष्ट है कि हम किसी भी रोग का प्राकृतिक ढंग से सफ़ल इलाज उस समय तक नही कर सकते जब तक कि हम प्रत्येक रोग , यहां तक नये रोगों मे भी  , अन्य लक्षणॊं कॆ अलावा रोगी के स्वभाव और मानसिक दशा मे होने वाले परिवर्तन पर पूरी नजर नही रखते । यादि हम रोगी को आराम पहुंचाने के लिये ऐसी दवा नही चुनते जो रोग के सभी लक्षण  के साथ उसकी मानसिक अवस्था या स्वभाव पैदा करनेच मे समर्थ है तो रोग को नष्ट करने मे सफ़ल नही हो सकते ।

सूत्र २१३ का नोट कहता है :

ऐसा रोगी जो धीर और शांत स्वभाव का है उसमे ऐकोनाईट और नक्स कामयाब नही हो सकती , इसी तरह एक खुशमिजाज नारी मे पल्साटिला या धैर्यवान नारी मे इग्नेशिया  का रोल नगणय ही  रहता है क्योंकि यह रोग और औषधि की स्वभाव से मेल नही खाते ।

pkt 2

Blog Author ( ब्लाग रचयिता ) : डा. प्रभात टन्डन
जन्म भूंमि और कर्म भूमि लखनऊ !! वर्ष १९८६ में नेशनल होम्योपैथिक कालेज , लखनऊ से G.H.M.S. किया , और सन १९८६ से ही इन्टर्नशिप के दौरान से ही प्रैक्टिस मे संलग्न .. वर्ष १९९४ मे P.H.M.S. join करते-२ मन बदला और तब से प्राइवेट प्रैक्टिस मे ………. आगे देखें

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Homeopathy Promo in Africa

Thursday 25 August, 2011

[youtube=http://youtu.be/LXiHnsEzrdo]

Homeopathy Promo in Africa :
must watch this interesting video clip from the movie -DAWA -The story of Jeremy Sherr, the man how's gonna save Africa with homeopathic medicine
Music-Rayms B
Directors: shahar Galnoor and Shani Ratzabi
photography : Daniel Kedem

Complete Freund's Adjuvant (CFA) द्वारा गठिया से पीडित किये गये चूहों पर होम्योपैथिक औषधि रस टाक्स के परीक्षण ( Modulation of arthritis in rats by Toxicodendron pubescens and its homeopathic dilutions.)

Tuesday 9 August, 2011

rats

Source : pubmed & Indian Journal of Research in Homeopathy

पशुऒं पर होम्योपैथिक दवाओं के परीक्षण अधिक देखे नही जाते हैं लेकिन इधर हाल के दिनों मे इन परीक्षणॊं की संख्या बढी है , हाँलाकि यह होम्योपैथिक सिद्दातों का पूर्ण रुप से पालन नही करते इसके बावजूद इनकी महत्ता से इन्कार नही किया जा सकता है । होम्योपैथिक पद्दति मे निशिचित सिद्दांत हैं और उनके लिये लक्षणॊं का लेना और उनके ऊपर प्रेसक्राब करना एक अनिवार्य शर्त है ।

हाँलाकि हाल ही मे The Faculty of Homeopathy २०११जर्नल मे प्रकाशित एक लेख जो पबमेड पर प्रकाशित हुआ कम चर्चा का विषय रहा । पटेल इन्सटिटुयूट आफ़ फ़ारमासियुटिकल रिसर्च के सी.आर. पाटिल , आर.बी.जाधव आदि का लेख रस टाक्स की anti inflammatory property पर था ।

सर्वप्रथम Complete Freund's Adjuvant (CFA) द्वारा चूहों को गठिया से पीडित किया गया और उसके बाद सिलसिलेवार शुरु हुये  प्रयोगशाला परीक्षण । रस टाक्स के 3cH, 6cH, 30cH, 200cH पोटेन्सी को सफ़लतापूर्वक प्रयोग  कर के उनके परिणामों को होम्योपैथिक मैटैरिया मेडिका आदि मे वर्णित लेखों  के आधार को  सही पाया गया । यह रिसर्च अभी जारी है ।

Modulation of arthritis in rats by Toxicodendron pubescens and its homeopathic dilutions.

Patil CR, Rambhade AD, Jadhav RB, Patil KR, Dubey VK, Sonara BM, Toshniwal SS.

Source

R. C. Patel Institute of Pharmaceutical Education and Research, Karvand Naka, Shirpur 425 405, Dhule, Maharashtra, India.

Abstract
BACKGROUND:

Toxicodendron pubescens P. Mill (Anacardiaceae) known in homeopathy as Rhus toxicodendron (Rhus tox) is used as an anti-inflammatory medicine in homeopathic practice. In this study, Rhus tox in its crude form and homeopathic dilutions (3cH, 6cH, 30cH, 200cH) was evaluated for effects on Complete Freund's Adjuvant (CFA) induced arthritis in rats.

METHOD:

We assessed the severity of arthritis through observations including inflammatory lesions, body and organ weight and hematological parameters including C-reactive protein (CRP). Blinded radiological analysis of the affected joints and pain intensity determination was also carried out.

RESULTS:

Rhus tox protected rats from CFA-induced inflammatory lesions, body weight changes and hematological alterations. Rhus tox protected against radiological joint alterations due to arthritis. Arthritic pain scores were also favorably affected by Rhus tox. All the dilutions of Rhus tox including crude form showed anti-arthritic activity. The maximum protective effect was evident in the crude form at 10mg/kg/day, by mouth.

CONCLUSION:

This study supports claims in the homeopathic literature on the role of Rhus tox and its ultra dilutions in the treatment of arthritis and associated pain. Further study is needed to explain this anti-arthritic effect of Rhus tox.

pkt 2

Blog Author ( ब्लाग रचयिता ) : डा. प्रभात टन्डन
जन्म भूंमि और कर्म भूमि लखनऊ !! वर्ष १९८६ में नेशनल होम्योपैथिक कालेज , लखनऊ से G.H.M.S. किया , और सन १९८६ से ही इन्टर्नशिप के दौरान से ही प्रैक्टिस मे संलग्न .. वर्ष १९९४ मे P.H.M.S. join करते-२ मन बदला और तब से प्राइवेट प्रैक्टिस मे ………. आगे देखें

सेन्टिसमल स्केल से LM स्केल तक का सफ़र

Sunday 7 August, 2011

lm

पिछ्ले ३ महीनों मे जो महत्वपूर्ण परिवर्तन क्लीनिकल प्रैक्टिस  मे किये उसमे आर्गेनान के ६वें संस्करण का अनुकरण करते  हुये LM पोटेन्सी को अपनाना था । हाँलाकि इसका मन तो पिछ्ले साल ही बना लिया था  लेकिन लखनऊ मे LM दवाओं की उपलब्धता न के बराबर है , इस साल २ आर्डर SBL Limited  को भेजे लेकिन उनमे से एक काफ़ी लम्बे अर्से बाद प्राप्त हुआ । गत एक महीने में LM पोटेन्सी से मिल रहे परिणाम मुझे आशचर्यचकित करते रहे हैं । बिल्कुल साफ़ शब्दों मे कहना चाहूगाँ कि यह परिणाम सेन्टिसमल स्केल से अलग , त्वरित और बगैर किसी रोग मे बढोतरी ( Homeopathic aggravation ) किये थे । हाँलाकि शुरुआत इतनी सहज न थी , इतने लम्बे समय से सेन्टिसमल का साथ छोड्ना भी आसान न था । रोगियों के डेटाबेस को एक बार फ़िर से खंगालना पडा और  आर्गेनान आफ़ मेडिसन के छ्वाँ संस्करण को भी एक बार फ़िर से पढने की आवशयकता  पड गई  । हाँलाकि आज से २५ साल पहले तो आर्गेनान सिर्फ़ पास होने के लिये ही  पढी थी Smile। उन जटिल रोगियों मे जहाँ सेन्टिसमल पोटेन्सी की दवायें सही चुनाव होने के बावजूद काम नही कर रही थी या काम करने के बाद उनका action रुक सा गया था , उनमे बगैर दवा बदले LM को प्रयोग  किया , और  आजकल  जब इन महीनों मे वाइरल इन्फ़ेकशन आदि एक्यूट रोग बढ जाते हैं उनमें भी  आरम्भ मे करीब ३०% रोगियों और अब इधर ३ सप्ताह के बाद लगभग ६०% रोगियों में    LM   का प्रयोग कर रहा हूँ  और परिणाम आशचर्य़ चकित करने वाले रहे । जटिल रोगों ( chronic cases ) मे रुकी हुई progress को दोबारा और बगैर लक्षणॊं मे बढोतरी हुये देखा और वहीं एक्यूट रोगों मे इतनी त्वरित  प्रक्रिया  पहले कभी न देखी ।   फ़िलहाल मै ०/३ से ०/५ तक की पोटेन्सी प्रयोग कर रहा हूँ । आगे आने वाली कई पोस्ट LM  से मिल रहे परिणामों से संबधित रहेगीं ।

आखिर LM पोटेन्सी ही क्यूँ :

इसके लिये आर्गेनान के ५ वें  और ६ वे संस्करण को देखना पडेगा । हैनिमैन ने अपने जीवन काल मे होम्योपैथी चिकित्सा पद्दित मे निरंतर बदलाव किये , उनमे से एक महत्वपूर्ण बदलाव उनके जीवन के अंतिम दस वर्षॊं  मे था जिसमे उन्होंने होम्योपैथिक दवाऒं की मात्रा को और अधिक तनु और डायनामायिज किया और उसके परिणाम उनको बिल्कुल अलग दिखे । हैनिमैन इस बात से अनभिज्ञ नही थे कि अनेक संवेदनशील  रोगियों मे होम्योपैथिक औषधियाँ रोग के लक्षणॊं को बढा देती है । और उसके बाद शुरु होती है एक अंतहीन इंतजार की प्रक्रिया । भले ही होम्योपैथिक aggravation को होम्योपैथ दवा की क्रिया का एक हिस्सा मानें लेकिन कष्ट मे घिरा रोगी चिकित्सक के कहे अनुसार कम बल्कि  अधिकतर केस मे वह ऐलोपैथिक दवा लेकर होम्योपैथी मे वापस न आने की कसम खा लेता है ।

४ और ५ वें संस्करण  को अपनाने का सबसे अधिक नुकसान होम्योपैथिक प्रैक्टिस मे आये नौसिखियों और शौकिया लोगों ने किया और इन शैकिया होम्योपैथिक करने वालों को मुझे याद है कि नेशनल होम्योपैथिक कालेज ,  लखनऊ  के भूतपूर्व प्राचार्य प्रो. डां जी. चौधरी ने  बौक्सोपैथ ’ Boxopath ‘ की संज्ञा दे डाली   Secret telling smile  । अंधाधुन पोटेन्सी के साथ खिलवाड एक आम बात सी हो गई है ।   केन्ट “ Lesser Writings “ मे लिखते हैं

“ I should rather be in a room with a dozen people slashing with razors than in the hands of an ignorant prescriber of high potencies . They are means of tremendous harm , as well as of tremendous good . “ Kent -Lesser writings

सेन्टिसमल स्केल मे जहाँ दवा का अनुपात १:१०० का रहता है वहीं LM मे १: ५०००० का और हर step  पर succussions   १०० । ( सेन्टीसमल मे १० succussions ) नीचे दिये चार्ट से समझें ) औषधि को इस लेवल तक तनु किये जाने से जहाँ औषधि की पावर कई गुना बढ जाती है वहीं succussions की वजह से दवा से रोग की बढॊतरी की संभावना न के बराबर रह जाती है ।

LM पोटॆन्सी की उपलब्धता ०/१ से ०/३० तक  रहती है वहीं सेन्टीसमल मे पोटेन्सी  की  उपलब्धता  ३०-२००-१०००-१००००-५०००००-CM मे रहती है ।

Homeopathic Pharmacy Terminology

Courtesy : Valerie Sadovsky

Mother tincture

Alcohol extract of a soluble substance not potentized. Usually stored in 87% to 100% alcohol

Liquid stock bottle

Potentized remedy in solution (i.e. Sulphur 12c) preserved with 87% - 100% alcohol

Remedy solution bottle

1 pellet (#10) poppy seed size, of a lm potency or c potency is put in 4oz. of water + 2 to 3 teaspoons of 90-95% ethyl alcohol (Everclear). Succuss this bottle 8-10 times before taking out each dose (1-3 teaspoons) to put in the dosage cup

Dosage cup

A 4oz. cup of distilled water with 1-3 teaspoons from the remedy solution bottle. Stir vigorously, take 1 teaspoon as 1 dose

Succussion

To hit against a resilient object such as a leather bound book or the palm of your hand

Triturate

Grind in a mortar and pestle

Potency Symbols

LM
1:50,000 (50 millesimal scale); also written as LM/1, LM/2, 0/1, 0/2, or Q1, Q2, etc.
X
1:10 (decimal scale); also written as D in Europe
C
1:100 (centesimal scale); also written as CH in Europe
1M
1,000 C (centesimal scale)
10M
10,000 C (centesimal scale)
50M
50,000 C (centesimal scale)
CM
100,000 C (centesimal scale)
How to Make a 3C Trituration

1. 1 grain of plant, mineral, metal, etc., + 100 grains of milk sugar and triturated for 1 hour = 1C potency (trituration is done in three stages of twenty minutes each; see The Organon, paragraph 270 and footnote #150)

2. 1 grain of 1C + 100 grains of milk sugar + triturated for 1 hour = 2C potency

3. 1 grain of 2C + 100 grains of milk sugar + triturated for 1 hour = 3C potency

How to Make an LM Potency from a 3C Trituration

1. 1 grain of 3C potency diluted in 500 drops (100 drops alcohol and 400 drops water) = LM/0 (see The Organon, paragraph 270)

2. 1 drop of LM/0 + 100 drops of alcohol + 100 succussions = LM/1 potency

1 drop of LM/1 is put on 500 granules of milk sugar (#10 pellets)

3. 1 granule of LM/1 dissoved in one drop of water + 100 drops of alcohol + 100 succussions = LM/2 potency

  1 drop of LM/2 is put on 500 granules of milk sugar (#10 pellets)

4. 1 granule of LM/2 dissolved in one drop of water + 100 drops of alcohol + 100 succussions = LM/3 potency (continue this process up to the LM/30 potency)

"Mass Production" Method

Supplies:
Poppy seed size pellets of sac lac.
Distilled water.
Everclear.
"Wet" measurement vial (W-MV) : 1 dram vial with 1 drop of water and 100 drops of Everclear.
"Dry" measurement vial (D-MV): 1 dram vial with 500 poppy seed size pellets of sac lac.
Unbleached coffee filter.
Pipette.
Empty clear 1 dram vial.
Empty amber 1 dram vial.
Sticky labels.
Method:
1. Put 1 pellet of LMn in a clear 1 dram vial. Using the pipette, add 1 drop of water and let it dissolve.
2. Place this vial side to side to the W-MV and fill it in with Everclear to the level of W-MV.
3. Succuss 100 times.
4. Place an empty clear 1 dram vial side to side to the D-MV, fill it in with sac lac pellets to the level of D-MV.
5. Spread the pellets on the coffee filter and pour the prepared solution over them. Let dry for 1 day.
Put into an amber vial, cork and label as LMn+1
To Dispense to a Patient:
Mix 4 oz of distilled water with 3 tea spoons of Everclear. Fill 2/3 of 6 oz amber bottle with this mixture. Add 1 pellet of LM.
Before each dose, the patient should succuss the bottle, put 1 tea spoon in
4 oz. of pure water, stir and take one tea spoon out of it.

फ़िर क्या कारण हैं  कि LM के प्रयोगकर्ता कम दिखाई पडते हैं :

LM पोटेन्सी आर्गेनान के ६ वें संस्करण मे आई जिसको हैनिमैन ने १८४२ मे अपनी मृत्यु से पहले के  दस वर्ष के दौरान  पूरा किया । कई होम्योपैथ मानते हैं कि आर्गेनान के ५ और ६ वें संस्करण मे कुछ खास फ़र्क नही है , लेकिन वह गलत हैं । आर्गेनान का यह अन्तिम संस्करण हैनिमैन की बदलती और उच्च सोच का माध्यम रहा । इस संस्करण मे ६० नये aphorisms डाले गये,  ४९ आंशिक एडीशंस किये गये और ५ वें संस्करण के ४० aphorisms को हटा दिया गया । लेकिन अफ़सोस हैनिमैन प्रकाशक से मनमुटाव के कारण   उसको उस वर्ष प्रकाशित न कर सके और  अगले ही वर्ष उनका देहांत हो गया । हैनिमैन के दूसरी पत्नी मैलेनी ने तमाम वादों के बाद भी इस छ वे संस्करण को प्रकाशित होने न दिया । विस्तृत मे देखें यहाँ । वह एक मोटी रकम चाहती थी और कोई प्रकाशक उनको देने को तैयार न हुआ और आर्गेनान का यह संस्करण उनके जीते जी भी प्रकाशित न हो पाया । औरॊ की तरह  हैनिमैन के पौत्र सुस हैनिमैन ने भी “ छ  वें संस्करण “ को प्रकाशित करवाना चाहा लेकिन मेलेनी ने उनको ऐसा न करने के लिये आगाह किया ।

“I beg to inform you that the exclusive rights to publish the 6th edition belongs solely to me and I possess th 6th edition of the Organon written by my late husband’s hand .Dr Suss’swork can have no claim whatever to be genunine . “

सन १८७८ मे मेलेनी की मृत्यु के बाद  यह हस्तलिपि जर्मनी मे सुरक्षित रही और सन १९२० मे यह पहली बार  डां विलियम बोरिक के अथक प्रयास से प्रकाशित हुई । सन १९२१ मे डा विलियम बोरिक ने ही  इसका अंग्रेजी अनुवाद भी  प्रकाशित किया । लेकिन तब तक होम्योपैथी चिकित्सा पद्दित कई देशॊं मे अपनी अच्छी पैठ बना चुकी थी और इस दौरान के चिकित्सक   ४  संस्करण के “ wait and watch “ तरीकों पर चलना शुरु हो चुके थे ।

छ्वे संस्करण के दिशानिर्देश को पूरी तरह से १९५० मे फ़्रांस के डां चार्लस फ़ौहद ने जारी किया | सन १९५७ में जेनेवा के  डा पियेर शिडिमिड ने एक पुस्तक प्रकाशित की , ’ Hidden Treasures of the 6th Edition of the Organon ’ । भारत मे LM को लाने का श्रेय सन १९५७ मे डां चौधरी के परिवार को रहा और आज भी विशव मे सबसे अधिक LM प्रयोगकर्ता भारत मे ही हैं । लेकिन इसके बावजूद  केन्ट के तरीकॊं पर चलने वालों की संख्या अपने देश मे कही अधिक है क्योंकि अधिकतर होम्योपैथी चिकित्सा संस्थानों  की ओ.पी.डी. मे आज भी पुराने संस्करण के तरीकों को ही  अपनाया जाता है ।

दूसरा एक और सबसे बडा कारण होम्योपैथिक दवा निर्माताओं का  होम्योपैथिक के मूल स्वरुप को बढावा न देना रहा । व्यवासायिक दौर मे प्रवेश कर  रही  होम्योपैथी  मे सबसे बडी  दिक्कत पेटेन्ट और काम्बीनेशन को बढावा देना भी है । बेतुके काम्बीनेशन से लैस अधिकतर निर्माता अपने पेटेन्ट प्रोडक्ट पर तो ध्यान देते हैं लेकिन मूल स्वरुप को नही । आखिर उनकी कमाई तो पेटेन्ट से ही होती है Angry smile

लक्षणॊं मे बढोतरी ( Aggravations ) और आर्गेनान के छ वें संस्करण मे  हैनिमैन का  नजरिया  :

लेकिन छ वाँ संस्करण कई मायने मे अलग था ।  ५ वें संस्करण को अतीत मानते हुये  हैनिमैन ने aphorism 246 के foot note मे लिखा :

footnote 132 of § 246 Sixth Edition

HAHNEMANN

What I said in the fifth edition of the organon, in a long note to this paragraph in order to prevent these undesirable reactions of the vital energy, was all the experience I then had justified. But during the last four or five years, however, all these difficulties are wholly solved by my new altered but perfected method. The same carefully selected medicine may now be given daily and for months, if necessary in this way, namely, after the lower degree of potency has been used for one or two weeks in the treatment of chronic disease, advance is made in the same way to higher degrees, (beginning according to the new dynamization method, taught herewith with the use of the lowest degrees).

footnote 156 § 270 Sixth Edition

HAHNEMANN

…..by means of this method of dynamization (the preparations thus produced, I have found after many laborious experiments and counter-experiments, to be the most powerful and at the same time mildest in action, i.e., as the most perfected) the material part of the medicine is lessened with each degree of dynamization 50,000 times yet incredibly increased in power…..

डेसीमल और सेन्टिसमल पोटेन्सी के साथ LM पोटेन्सी  किसी भी होम्योपैथिक चिकित्सक की प्रैक्टिस का उपयोगी हिस्सा हो सकती  है । आवशयकता है समयानुसार उनको विभिन्न रोगों मे प्रयोग करने का और परिणाम निकालने का ….

संबधित पोस्ट :

pkt 2

Blog Author ( ब्लाग रचयिता ) : डा. प्रभात टन्डन
जन्म भूंमि और कर्म भूमि लखनऊ !! वर्ष १९८६ में नेशनल होम्योपैथिक कालेज , लखनऊ से G.H.M.S. किया , और सन १९८६ से ही इन्टर्नशिप के दौरान से ही प्रैक्टिस मे संलग्न .. वर्ष १९९४ मे P.H.M.S. join करते-२ मन बदला और तब से प्राइवेट प्रैक्टिस मे ………. आगे देखें

Clinic : Meo Lodge , Ramadhin Singh Road , Daligunj , Lucknow
E mail : drprabhatlkw@gmail.com
Landline No : 0522-2740211. 0522-6544031
Mobile no : xxxxxxxxx

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व्यक्तित्व विकास, शारीरिक भाषा और होम्योपैथी – एक अभिनव अवधारणा ( Constitutional Prescribing ,Body Language and Homeopathy )

Friday 17 June, 2011

होम्योपैथिक प्रिसक्राबिंग मे विवधिता अकसर देखी जा सकती है । लगभग हर चिकित्सक का औषधि सेलेकशन अन्य से भिन्न ही दिखता है । एक उचित सिमिलमम को सर्च करने के लिये कई  चिकित्सक सम्पूर्ण लक्षण ( totality of symptoms ) लेने पर यकीन करते है , कई मियाज्म (miasm ) आधारित प्रिसक्र्पशन पर पर , कुछ उन अनोखे लक्षण  को  तलाशते हैं ( rare , uncommon & striking symptoms ) जो रोग के सामान्य लक्षण से अलग दिखता है ; कई डां सहगल के तरीकों का अनुकरण करते हुये सिर्फ़  मानसिक लक्षण पर  प्रिसक्राइब करते हैं और कई डां प्रफ़ुल्ल विजयकर  का अनुकरण करते हैं जिनमें  रोगी की गतिविधि, ठंडक और गर्मी से सहिषुण्ता/असहिषुणता ( thermal ), प्यास और शारीरिक या मानसिक लक्षण में  बदलाव औषधि सेलकशन के लिये पर्याप्त मापदंड रहता है ।

  इनमे से वह भी हैं जो शरीर की भाषा ( Body language )  और Constitution को आधार मानकर प्रिसक्राबिग  करते हैं । शारिरिक भाषा हमारे चारों तरफ है. यह एक दिलचस्प विषय है और एक है रोमांचकारी अनुभव भी । शारिरिक भाषा मौखिक संचार में तो एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती ही है लेकिन  एक होम्योपैथ के लिये तो रोगी की शारिरिक भाषा को समझना और भी आवशयक हो जाता है । भले ही रोजमर्रा की जिदंगी मे इसकी कोई अहमियत न हो लेकिन अगर हम नैदानिक(clinical) बिदुं से अगर हम उसका उपयोग करे तो उसके प्रयोग सार्थक सिद्ध होते है ।

pt in clinic

रोगी का परमार्श कक्ष मे प्रवेश करना , उसका उठना/बैठना , वार्तालाप करते समय उसके चेहरे के हाव भाव आदि एक उचित सिमिलिमम की आवशयकताओं को पूरा करते हैं ।  इसकी उपयोगिता सिर्फ़ किताबी ज्ञान तक ही सीमित नही है बल्कि यह अन्य क्षेत्रों भी उपयोगी है जैसे :

  • एक तरफ़ा रोगों मे जहाँ लक्षण न के बराबर दिखाई पड्ते हों ।
  • मनश्चिकित्सीय रोगियो में
  • बाल रोगों मे
  • विरोधाभासी लक्षणॊं मे
  • बहरे, गूंगे और मन्द बुद्दि रोगियों मे
  • समृद्ध और जटिल मेटेरिया मेडिका और रेपर्टिरी के अध्यन्न को सरल बनाने मे ।
  • शरीर की भाषा की मदद से रुब्रिक्स को समझने मे ।
  • और सबसे मुख्य बात कि यह बहुत बहूमूल्य  समय बचाता है ।

इसी तरह Constituitional  प्रेसक्राइबिग की भी होम्योपैथिक औषधि चुनाव  मे एक महत्वपूर्ण भूमिका है ।   होम्योपैथिक आधारित constituition का तात्पर्य एक इन्सान के मानसिक और शारिरिक व्यक्तित्व  को परिभाषित करना है । लेकिन यह भी एक सत्य है कि इसकी बुनियाद हैनिमैन ने नही रखी । गैलन (130-200 ई.पू.) और हिप्पोक्रेट्स (400 ई.पू.)  ने मनुष्य के व्यक्तित्व को समझने का प्रयास किया । जहाँ हिप्पोक्रेट्स (400 ई.पू.) का मानना था कि शरीर चार humors अर्थात रक्त,कफ, पीला पित्त और काला पित्त से बना है. Humors का असंतुलन, सभी रोगों का कारण है . वही गैलन Galen (130-200 ई.) ने इस शब्द  का इस्तेमाल  शारीरिक स्वभाव के लिये किया , जो यह निर्धारित करता है  कि शरीर  रोग के प्रति किस हद तक संवेदन्शील है । हिप्पोक्रेट के  Humour शब्द का तात्पर्य शरीर मे प्रवाहित हो रहे तरल पद्दार्थ से था हाँलाकि यह तकनीकी रुप से यह प्रचलित भावनाओं से जुडा था जैसे :

  • प्रसन्नता या खुशी का रक्त से संबध - सैन्गूयूनि टेम्परामेन्ट (Sanguine Temperament)
  • कफ़ का चिंता और मननशीलता से संबध - फ़ेलेगमेटेक ( phlegmatic Temperament)
  • पीले पित्त का क्रोध से संबध - कोरिक (Choleric Temperament)
  • उदासी का काले पित्त से - मेलोन्कोलिक (Melancholic Temperament)

hippocratic temperament

4 humours in respective order: choleric, melancholic, phlegmatic, and sanguine

इन चार स्वभावों को हम एक सक्षिप्त  उदाहरंण से  आसानी से समझ सकते हैं । एक होटल मे चार मित्र  सूप पीने जाते है । लेकिन अचानक चारों की नजर सूप मे तैरते बाल की तरफ़ पड जाती है  पहला  मित्र देखते ही आग बबूला हो उठा , गुस्से से उसने सूप का प्याला वेटर के मुँह पर दे मारा ( Choleric ) , दूसरे ने मुँह बनाया  अपने कोट को झाडा और सीटी बजाता हुआ निकल गया (Sanguine) , और तीसरा रुँआसा सा हो गया और बोला कि यह सब उसी की जिदंगी मे अक्सर क्यूं होता रहता है (Melancholic ) और चौथा मित्र तो बडे दिमाग वाला निकला , सूप मे से बाल को किनारे किया ;सूप पिया और वेटर से नुकसान हुये सूप के बदले दूसरे सूप की फ़रमाईश भी कर डाली ( phlegmatic)

इन चार स्वभावों को देखने  से यह लगता है कि अमुक स्वभाव अच्छा या बुरा होता है , लेकिन  ऐसा नही है , प्रत्येक स्वभावों के धन पक्ष भी है और ॠण पक्ष भी । हाँ उचित सिमिलिमन से हम उन कमजोरियों को कम अवशय कर सकते हैं या यो कहें कि  ॠण पक्ष  को धन पक्ष मे बदल सकते हैं ।

एक नजर देखते हैं इन चार स्वभावों मे धन पक्ष और ॠण पक्ष की :

सैन्गूयूनि टेम्परामेन्ट (Sanguine Temperament):

धन पक्ष : हमेशा प्रसन्न रहने वाले, आत्मविशवास से भरपूर , आशावादी , बहिर्मुखी और जीवन को जीने वाले ।

ॠण पक्ष :आत्मसंतोष की कमी , संवेदन्शील, अल्पज्ञता, अस्थिरता, बाहरी दिखावा करने वाले और ईर्ष्या को झुकाव ।

फ़ेलेगमेटेक टेम्परामेन्ट ( phlegmatic Temperament) :

धन पक्ष :   अच्छी तरह से संतुलित,  जीवन के साथ संगत, भरोसेमंद, रचनात्मक और विचारशील, संतुष्ट

ॠण पक्ष : आलसी, अकर्मण्य . अपने  कर्तव्य की उपेक्षा ,  दुविधाग्रस्त, अपने कर्तवों  को टालने वाले , महत्वाकांक्षा विहीन ,  दूसरों को भी प्रेरित न कर पाना

कोरिक टेम्परामेन्ट (Choleric Temperament) :

धन पक्ष : मजबूल इच्छाशक्ति वाले , दुनिया को अपने तरीके से चलाने वाले , आत्मविशवास से भरपूर

ॠण पक्ष : प्रचंड गुस्सा , अपने को श्रेष्ठ समझना , विरोधों को सहन न कर पाना , सहानभूति का अभाव , जीवन मे छ्ल , कपट और पाखंड का सहारा लेना

मेलोन्कोलिक टेम्परामेन्ट (Melancholic Temperament) :

धन पक्ष : प्रतिभाशाली, बेहद रचनात्मक , संवेदनशील, सपने देखने वाले , अतंर्मुखी, विचारशील,  आत्म त्याग की भावना से भरपूर , जिम्मेदार, विश्वसनीय

ॠण पक्ष : चिंता और अवसाद ग्रस्त , अपनी प्रतिभा का कम उपयोग करने वाले , मुखरता की कमी , आसानी से किसी को माफ़ न कर पाना , बेहद संवेदनशील



मन और शरिरिक गठन की गहरी जडॆं
पाइथागोरस से जुडी हैं
उदर हिप्पोक्रेट्स से
शाखायें पेरासेलसस में
और फ़ल वास्तव मे हैनिमैन से जुडॆ हैं ।

हैनिमैन की प्रशंसा करनी होगी कि उन्होने Hippocratic temperaments और humors को मैटेरिया  मेडिका मे एकीकृत कर के हमे यह दिखाया  कि हम किसका इलाज कर रहे हैं और वह किस से पीडित है ।
आर्गेनान आफ़ मेडिसन मे हैनिमैन लिखते हैं :
HAHNEMANN

Aphor .211

This is true to such an extent, that the state of patient’s Mind and Temperament (Gemuethszustand) is often of most decisive importance in the Homoeopathic selection of a remedy, since it is a sign possessing a distinct peculiarity, that should least of all escape the accurate observation of the physician.

यह बात किसी सीमा तक सही और सत्य है कि रोगी की मानसिक दशा रोग के लिये उपयुक्त औषधि चुनने मे बहुत सहायक होती है । जो चिकित्सक सावधानी के साथ इस निर्णायक मानसिक लक्षण पर दृष्टि रखतेहैं उनकी तीक्ष्ण नजर से रोगी के रोग का कोई भी लक्षण छिपा नही रह सकता |

क्लीनिकल प्रकैटिस मे Constituitional prescribing की भूमिका :

रोगी को देखते हुये मूल स्वभाव को तो हम देखते ही हैं लेकिन रोग ग्रस्त मनुष्य में जब वह स्वभाव मूल  से भिन्न दिखाई पडता है तो उसकी भूमिका और भी अधिक बढ जाती है । जैसे  एक कैल्कैरिया कार्ब का रोगी जो phlegmatic स्वभाव का है किसी कारण वश बहुत उग्र हो जाता है ( Choleric)  तो उसका यह भिन्न स्वभाव दवा का  सेलेक्शन मे भिन्न्ता ला सकता है । इसी तरह मृदु भाढी पल्साटिला नारी तनाव को झेलने मे अपने को असहज  पाती है तो उसमे होने वाले स्वभावों मे अन्तर दवा के चुनाव मे फ़र्क डाल सकते हैं ।

लुक डि फ़िशर ने Hahnemann Revisited पुस्तक  मे एक उदाहरण के जरिये सचित्र इसको समझाया है ।

एक फ़ास्फ़ोर्स व्यक्त्तित्व का इन्सान जो अपनी यात्रा अपने ही व्यक्तित्व मे न कर पाया । कारण समय-२ उसके जीवन  चक्र मे आने वाले परिवर्तन ।  चित्र पर किल्क करें और देखें ।

रोगी मे आने वाले स्वभावों मे अन्तर मानसिक लक्षणॊं की श्रेणी मे आते हैं । और दवा चुनाव मे वह अपनी वरियता सबसे ऊपर रखते हैं । नये रोगों ( acute diseases ) मे इनकी भूमिका भले ही बहुत न हो लेकिन जटिल और पुराने रोगों मे यह दवा चुनाव मे महत्वपूर्ण आधार बनते हैं ।

§ 5

HAHNEMANN Useful to the physician in assisting him to cure are the particulars of the most probable exciting cause of the acute disease, as also the most significant points in the whole history of the chronic disease, to enable him to discover its fundamental cause, which is generally due to a chronic miasm. In these investigations, the ascertainable physical constitution of the patient (especially when the disease is chronic), his moral and intellectual character, his occupation, mode of living and habits, his social and domestic relations, his age, sexual function, etc., are to be taken into consideration.

सूत्र ५-रोग के मूल कारण की खोज

रोग नया हो या पुराना चिकित्सक को बीमारी के मूल कारणॊं की खोज करना नितान्त आवशयक  है । नये रोगों मे रोग उत्पन्न करने और रोग को उत्तेजना देने वाले कारणॊं पर तथा पुरानी बीमारियों मे रोग के इतिहास पर चिकित्सकों को बहुत अधीरता और सावधानी से विचार करना चाहिये क्योंकि ऐसा करने पर ही रोग के मूल कारण का पता लग सकता है । वस्तुत: चिकित्सक को रोगी की शरीर रचना और प्रकृति – गठन , शक्ति , स्वभाव , आचरण , च्यवसाय , रहन सहन , आदतें , समाजिक तथा परिवारिक संबन्ध , आयु, ज्ञान्निद्र्यों के व्यवाहार पर पूरी तरह से विचार कर लेना चाहिये ।

    § 213

    We shall, therefore, never be able to cure conformably to nature – that is to say, homoeopathically – if we do not, in every case of disease, even in such as are acute, observe, along with the other symptoms, those relating to the changes in the state of the mind and disposition, and if we do not select, for the patient’s relief, from among the medicines a disease-force which, in addition to the similarity of its other symptoms to those of the disease, is also capable of producing a similar state of the disposition and mind.1

    1 Thus aconite will seldom or never effect a rapid or permanent cure in a patient of a quiet, calm, equable disposition; and just as little will nux vomica be serviceable where the disposition is mild and phlegmatic, pulsatilla where it is happy, gay and obstinate, or ignatia where it is imperturbable and disposed neither to be frightened nor vexed.

सूत्र २१३ – रोग के इलाज के लिये मानसिक दशा का ज्ञान अविवार्य

इस तरह , यह बात स्पष्ट है कि हम किसी भी रोग का प्राकृतिक ढंग से सफ़ल इलाज उस समय तक नही कर सकते जब तक कि हम प्रत्येक रोग , यहां तक नये रोगों मे भी  , अन्य लक्षणॊं कॆ अलावा रोगी के स्वभाव और मानसिक दशा मे होने वाले परिवर्तन पर पूरी नजर नही रखते । यादि हम रोगी को आराम पहुंचाने के लिये ऐसी दवा नही चुनते जो रोग के सभी लक्षण  के साथ उसकी मानसिक अवस्था या स्वभाव पैदा करनेच मे समर्थ है तो रोग को नष्ट करने मे सफ़ल नही हो सकते ।

सूत्र २१३ का नोट कहता है :

ऐसा रोगी जो धीर और शांत स्वभाव का है उसमे ऐकोनाईट और नक्स कामयाब नही हो सकती , इसी तरह एक खुशमिजाज नारी मे पल्साटिला या धैर्यवान नारी मे इग्नेशिया  का रोल नगणय ही  रहता है क्योंकि यह रोग और औषधि की स्वभाव से मेल नही खाते ।

यही कारण है कि  पोलिक्रेस्ट होम्योपैथिक दवाओं अपना अलग-२ स्वभाव  को दिखलाती हैं । हिपोक्रेट के इस विभाजन को हैनिमैन , केन्ट , हेरिंग और ऐलेन ने मैटेरिया मेडिका मे जगह –२ प्रयोग किया है । जैसे पल्साटिला के बारे मे हैनिमैन लिखते हैं , “ Pulsatilla  is suited to a low , tearful , changeable , plegmatic temparemt “ और फ़ास्फ़ोरस के बारे मे लिखा “ quick movements , rapid resolutions , and a cheeful mood are more often found in phosphorous . औषधियों के स्वभावों को जानने के लिये मैटेरिया मेडिका का अध्यन्न तो अनिवार्य शर्त है और उससे बढकर रिपर्टेरी मे MIND SECTION मे चिन्हित उन रुब्रिक्स को समझना और रोगी की भाषा मे बदलने की माहरत होनी चाहिये ।

Visible Code” in Repertorial Perspective - Important Rubrics

Mind Chapter

1. Activity, Mental

2. Actions, behaviour

3. Agony, anguish

4. Alert, mentally

5. Anger

6. Answers, general

7. Antics, plays

8. Anxiety

9. Automatic, behaviour

10. Aversion, general

11. Awkward

12. Bashful

13. Bites

14. Boredom, ennui

15. Busy

16. Caressed, agg.

17. Cheerful

18. Childish, behaviour

19. Clinging

20. Clothed, improperly

21. Crying

22. Dancing

23. Faces, makes

24. Frown, disposed to

25. Gestures, makes

26. Gloomy, morose

27. Grimaces, makes

28. Hatred feelings

29. Hurried

30. Hyperactive, children

31. Impolite

32. Indifference

33. Kicking, behaviour

34. Laughing, behaviour

35. Laziness, indolence

36. Moaning

37. Mocking

38. Plays, with his fingers

39. Rage

40. Restlessness

41. Screaming, shrieking

42. Serious, behaviour

43. Shameless

44. Sighing, emotional

45. Singing

46. Sit, inclination to

47. Sits, general

48. Speech, general

49. Smiling

50. Suspicious

51. Sympathetic

52. Torpor

53. Violent, behaviour

54. Walking, behaviour

55. Washing, hands

56. Whistling

57. Witty

58. Yielding

(II) Children chapter

(III) Legs

(IV) Limbs

(V) Generals

 source : murphy repertory

courtesy : Dr Rajoo Kulkarani -body language and homeopathy PPS cure 7

मैटेरिया मेडिका और रिपर्ट्री मे इन चार constitutions से संबधित रुब्रिकस और औषधियों के बारे मे विस्तार से ग्रुप दिये हैं जैसे synthesis में : :source -synthesis 9

  • सैन्गूयूनि टेम्परामेन्ट (Sanguine Temperament):  Rubric mentioned under cheerful/confident/optimistic
  • फ़ेलेगमेटेक टेम्परामेन्ट ( phlegmatic Temperament) : Rubric mentioned under dullness /indifference/slowness
  • कोरिक टेम्परामेन्ट (Choleric Temperament) : passionate
  • मेलोन्कोलिक टेम्परामेन्ट (Melancholic Temperament) : despair/ grief / sadness

 

संभावित औषधियाँ : source -murphy repertory :

 Constitutions - CHOLERIC, constitutions
acon. ars. aur. BRY. carb-v. Caust. CHAM. coff. FERR. Hep. HYOS. kali-p. Kalm. Lach. Lyc. nat-m. Nit-ac. NUX-V. Phos. Plat. sec. Sil. sulph.

 Constitutions - SANGUINE, constitutions
Acon. ars. aur. Calc. calc-p. Cham. chin. Chinin-s. Coff. FERR. HYOS. Ign. murx. Nit-ac. Nux-v. PHOS. plat. Puls. Sang.

 Constitutions - PHLEGMATIC, constitutions
aloe Am-m. ant-t. Bell. calad. CALC. Caps. Chin. Clem. cocc. cycl. Dulc. ferr-p. hep. kali-bi. kreos. Lach. Merc. mez. Nat-c. Nat-m. PULS. seneg. Sep.

 Constitutions - MELANCHOLIC, constitutions
Acon. anac. AUR. Aur-m. bell. Bry. Calc. chin. cocc. Colch. Graph. IGN. Lach. Lil-t. Lyc. murx. NAT-M. Plat. PULS. Rhus-t. staph. stram. Sulph. verat.

 

 pkt 2

Blog Author ( ब्लाग रचयिता ) : डा. प्रभात टन्डन
जन्म भूंमि और कर्म भूमि लखनऊ !! वर्ष १९८६ में नेशनल होम्योपैथिक कालेज , लखनऊ से G.H.M.S. किया , और सन १९८६ से ही इन्टर्नशिप के दौरान से ही प्रैक्टिस मे संलग्न .. वर्ष १९९४ मे P.H.M.S. join करते-२ मन बदला और तब से प्राइवेट प्रैक्टिस मे ………. आगे देखें

Clinic : Meo Lodge , Ramadhin Singh Road , Daligunj , Lucknow
E mail : drprabhatlkw@gmail.com
Landline No : 0522-2740211. 0522-6544031
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पूरक और वैकल्पिक चिकित्सा पद्दतियों और पशु होम्योपैथिक चिकित्सा के पहले डॆटाबेस का शुभारंभ (Launch of CAM Quest Database & Homeopathic Veterinary Database (VetCR))

Wednesday 23 March, 2011

जर्मनी में हाल ही में Carstens फाउंडेशन ने सीएएम में एक उत्कृष्ट क्लीकिल रिसर्च का ऑनलाइन डेटाबेस शुरू किया है. एक्यूपंक्चर, anthroposophic चिकित्सा, आयुर्वेद, bioenergetics, हर्बल चिकित्सा, होम्योपैथी, मैनुअल चिकित्सा, मन शरीर चिकित्सा और TCM: नौ विभिन्न उपचारोंको को इस अध्ययन मे शामिल किया गया है.
इस डेटाबेस मे जर्मनी  मे होम्योपैथिक केसों की रिपोर्ट की एक बड़ी संख्या शामिल है .वर्तमान में  यह डेटाबेस अंग्रेजी और फ्रेंच में उपलब्ध है,  लेकिन आगे  अन्य यूरोपीय भाषाओं में अनुवाद करने की योजना है.  इस साइट पर जाने के लिये  http://www.cam-quest.org  पर किल्क करें .
पहला होम्योपैथिक पशु चिकित्सा डेटाबेस (VetCR)
पशु चिकित्सा होम्योपैथी के मामले में नैदानिक ​​अनुसंधान के पहले डेटाबेस अब ऑनलाइन उपलब्ध है. मूल पशु चिकित्सा के अध्ययन पर सभी उपलब्ध साहित्य , यादृच्छिक चिकित्सीय परीक्षण, गैर यादृच्छिक चिकित्सीय परीक्षण, पर्यवेक्षणीय अध्ययन, औषधि की प्रूविगं इस साईट पर सुलभता से उपलब्ध है . इस साईट पर जाने के लिये http://www.carstens-stiftung.de/clinresvet/index.php प्रर किल्क करें .

Launch of CAM-QuestDatabase
The Carstens Foundation in Germany has recently launched an excellent online database of clinica lresearch in CAM. Studies in nine different therapies have been included: acupuncture, anthroposophic medicine, ayurveda, bioenergetics, herbal medicine, homeopathy, manual medicine, mind-body medicine and TCM.
The database includes a large number of German homeopathic case reports and provides the facility to perform searches by disease, therapy and study design. The ‘quick search’ function provides a synopsis of studies using the most common therapies for the most common diseases whilst the ‘expert search’ function enables a detailed, comprehensive search across the CAM therapies and full range of diseases within the database.
At present the database is available in English, French, Dutch and German, but there are plans to translate it into all European languages. It is accessible free of charge at  http://www.cam-quest.org
First Homeopathic Veterinary Database (VetCR)
The first database of clinical research in veterinary homeopathy is now accessible online. Containing all available literature on original veterinary studies it provides access to approximately 200 entries of randomised clinical trials, non-randomised clinical trials, observational studies, drug provings, case reports and case series.
Produced by the Carstens Foundation, the database is freely available at [ http://www.carstens-stiftung.de/clinresvet/index.php