होम्योपैथी उद्भव , विकास और भ्रान्तियाँ -भाग -१

Wednesday 17 September, 2008

होम्योपैथी क्या है ?

स्त्रोत: विकीपीडिया होम्योपैथी , होम्योपैथी नई सोच/नई दिशायें और गूगल वीडियो
होम्योपैथी शब्द यूनानी के दो शब्दों (Homois ) यानि सदृश (Similar ) और पैथोज ( pathos ) अर्थात रोग (suffering) से बना है । होम्योपैथी का अर्थ है सदृश रोग चिकित्सा । सदृश रोग चिकित्सा का सरल अर्थ है कि जो रोग लक्षण जिस औषध के सेवन से उत्पन्न होते हैं , उन्हीं लक्षणॊं की रोग मे सदृशता होने पर औषध द्वारा नष्ट किये जा सकते हैं । यह प्रकृति के सिद्दांत " सम: समम शमयति " यानि similia similbus curentur पर आधारित है ।
होम्योपैथी का उद्भव
 लगभग २०० वर्ष पूर्व जर्मन चिकित्सक डा सैमुएल हैनिमैन ने इस तथ्य को पाया कि स्वस्थ रहते हुये जब उनके द्वारा किसी निशिचित रोग की औषधि दी गई जिससे बीमार व्यक्ति ठीक होता था तो उनमे भी रोग के लक्षण पाये गये । उदाहरण के लिये जब उन्होने सिंकोना छाल को ग्रहण किया जिसमे कुनेन की मात्रा रहती है तो वह बीमार पड गये और उनमे मलेरिया के लक्षण पाये गये । वह यह देख कर चकित रह गये कि सिंकोना का प्रयोग मलेरिया उन्नमूलन के लिये होता है परन्तु उसका स्वस्थ व्यक्ति द्वारा प्रयोग करने पर मलेरिया के लक्षण विधमान हो गये ।

डा हैनिमैन ने प्रत्येक रोग के लक्षण पर पादप, खनिज, पशुओं द्वारा उत्पाद या रसायिनिक मिश्रण से अपने निरंतर प्रयोग करने के बाद पाया कि उनमे नियत रोग के लक्षण आलोकित हुये ।उन्होने पुन: यह देखा कि दो तत्वों के प्रयोग से एक जैसे रोग के लक्षण प्रतीत नही होते । उन्होने यह भी पाया कि प्रत्येक पदार्थ शरीर , मस्तिषक एवं संवेग को प्रभावित करता है ।
अंतत: हैनिमैन ने " सम: समम शमयति " के सिद्दांत को अपनाकर रोगोन्मूलन करना प्रारम्भ किया ।
होम्योपैथी के सिद्दांत एवं नियम

सदृश नियम ( Law of Similar )
यह होम्योपैथी के मूल सिद्दातं मे निहित है । इस नियम के अनुसार जिस औषधि की अधिक मात्रा स्वस्थ शरीर मे जो विकार पैदा करती है उसी औषधि की लघु मात्रा वैसे समलक्षण वाले प्राकृतिक लक्षणॊं को नष्ट भी करती है । इसी से " सम: समम शमयति " वाले सिद्दांत भी प्रतिपादित हुआ है । उदाहरण के लिये कच्चे प्याज काटने पर जुकाम के जो लक्षण उभरते हैं जैसे नाक, आँख से पानी निकलना उसी प्रकार के जुकाम के स्थिति मे होम्योपैथिक औषधि ऐलीयम सीपा देने से ठीक भी हो जाता है ।
एकमेव औषधि ( Single Medicine )
होम्योपैथी मे रोगियों को एक समय मे एक ही औषधि को देने का निर्देश दिया जाता है ।
औषधि की न्यून मात्रा ( The Minimum dose )
सदृश विज्ञान के आधार पर रोगी की चयन की गई औषधि की मात्रा अति नयून होनी चाहिये ताकि दवा के दुष्परिणाम न दिखें । प्रथमत: यह शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को सफ़ल करने मे घटक का काम करता है ।होम्योपैथिक औषधि को विशेष रुप से तैयार किया जाता है जिसे औषधि शक्तिकरण का नाम दिया जाता है ।ठॊस पदार्थों को ट्राच्यूरेशन और तरल पदार्थों को सक्शन प्रणाली से तैयार किया जाता है ।
व्यक्तिपरक और संपूर्ण चिकित्सा ( Individualization & Totality of Symptoms )
यह एक मूल प्रसंग है । यह सच भी है कि होम्योपैथी रोगों के नाम पर चिकित्सा नही करती । वास्तव मे यह रोग से ग्रसित व्यक्ति के मानसिक , भावत्मक तथा शारीरिक आदि सभी पहलूहॊं की चिकित्सा करती है । अस्थमा ( asthma) के पाँच रोगियों की होम्योपैथी मे एक ही दवा से चिकित्सा नही की जा सकती । संपूर्ण लक्षण के आधार पर यह पाँच रोगियों मे अलग-२ औषधियाँ निर्धारित की जा सकती हैं ।
जीवनी शक्ति ( Vital Force )
हैनिमैन ने मनुष्य के शरीर मे जीवनी शक्ति को पहचान कर यह प्रतिपादित किया कि यह जीवनी शक्ति शरीर को बाह्य रुप से आक्रमण करने वाले रोगों से बचाती है । परन्तु रोग्की अवस्था मे यह जीवनी शक्ति रोग ग्रसित हो जाती है । सदृश विज्ञान के आधार पर चयन की गई औषधि इस जीवनी शक्ति के विकार को नष्ट कर शरीर को रोग मुक्त करती है ।
मियाज्म ( रोग बीज ) ( Miasm )
हैनिमैन ने पाया कि सभी पुराने रोगों के आधारभूत कारण सोरा ( psora), साइकोसिस ( sycosis) और सिफ़िलिस ( syphlis ) हैं ।इनको हैनिमैन ने मियाज्म शब्द दिया जिसका यूनानी अर्थ है प्रदूषित करना ।
औषधि प्रमाणन ( Drug Proving )
औषधि को चिकित्सा हेतु उपयोग करने के लिये उनकी थेरापुयिटक क्षमता का ज्ञान होना आवशयक है । औषधि प्रमाणन होम्योपैथी मे ऐसी प्रकिया है जिसमे औषधियों की स्वस्थ मनुष्यों मे प्रयोग करके दवा के मूल लक्षणॊं का ज्ञान किया जाता है । इन औषधियों का प्रमाणन स्वस्थ मनुष्यों पर किया जाता है और इनसे होने वाले लक्षणॊं की जानकारी के आधार पर सदृशता विज्ञान की मदद से रोगों का इलाज किया जाता है ।
संक्षेप मे यह है होम्योपैथी के सिंद्दांत और दर्शन । इसकी रुपरेखा लिखना यहाँ इसलिये आवशयक है क्योंकि आगे होम्योपैथी के विरुद्द विरोध को समझने मे आसानी रहेगी । विरोध के प्रमुख कारणॊं मे एक प्रमुख कारण होम्योपैथिक औषधियों की न्यून मात्रा भी है । होम्योपैथिक औषधियों की न्यून मात्रा को विस्तार मे समझने के लिये औषधि निर्माण की प्रक्रिया को समझना पडेगा । होम्योपैथिक औषधियों मे तीन प्रकार के स्केल प्रयोग किये जाते हैं ।
क) डेसीमल स्केल ( Decimal Scale )
ख) सेन्टीसमल स्केल ( Centesimal Scale )
ग) ५० मिलीसीमल स्केल (50 Millesimial scale)
क) डेसीमल स्केल मे दवा के एक भाग को vehicle ( शुगर आग मिल्क ) के नौ भाग से एक घंटॆ तक कई चरणॊं मे विचूर्णन ( triturate ) किया जाता है । इनसे बनने वाली औषधियों को X शब्द से जाना जाता है जैसे काली फ़ास 6x इत्यादि । 1X बनाने के लिये दवा का एक भाग और दुग्ध-शर्करा का ९ भाग लेते हैं , 2X के लिये 1X का एक भाग और ९ भाग दिग्ध शर्करा का लेते हैं ; ऐसे ही आगे कई पोटेन्सी बनाने के लिये पिछली पोटेन्सी का एक भाग लेते हुये आगे की पावर को बढाते हैं । डेसीमल स्केल का प्रयोग ठॊस पदार्थॊं के लिये किया जाता है ।
ख) सेन्टीसमल स्केल मे दवा के एक भाग को vehicle ( एलकोहल) के ९९ भाग से सक्शन किया जाता है । इनकी इनसे बनने वाली औषधियों को दवा की शक्ति या पावर से जाना जाता है । जैसे ३०, २०० १००० आदि । सक्शन सिर्फ़ दवा के मूल अर्क को एल्कोहल मे मिलाना भर नही है बल्कि उसे सक्शन ( एक निशचित विधि से स्ट्रोक देना ) करना है । आजकल सक्शन के लिये स्वचालित मशीन का प्रयोग किया जाता है जब कि पुराने समय मे यह स्वंय ही बना सकते थे । पहली पोटेन्सी बनाने के लिये दवा के मूल अर्क का एक हिस्सा और ९९ भाग अल्कोहल लिया जाता है , इसको १० बार सक्शन कर के पहली पोटेन्सी तैयार होती है ; इसी तरह दूसरी पोटेन्सी के लिये पिछली पोटेन्सी का एक भाग और ९९ भाग अल्कोहल ; इसी तरह आगे की पोटेन्सी तैयार की जाती हैं ।
आगे जारी ……….

8 comments:

Anonymous said...

great post!!

drmeakinmittu said...

Dr Tandon ji,

My best wishes for a new blog dedicated to "H".....means HINDI n HOMOEOPATHY
You always been inspiring for homeopathic fraternity. Our support is always there for you.
Keep doing such good jobs in future as well .... thats my wish.

Regards
Dr.Meakin Mittu

Udan Tashtari said...

डॉक्टर साहब, हिन्दी चिट्ठाजगत में आपके इस ब्लॉग का भी स्वागत है. नियमित लेखन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाऐं.

Shastri JC Philip said...

हिन्दी चिट्ठाजगत में इस नये चिट्ठे का एवं चिट्ठाकार का हार्दिक स्वागत है.

मेरी कामना है कि यह नया कदम जो आपने उठाया है वह एक बहुत दीर्घ, सफल, एवं आसमान को छूने वाली यात्रा निकले. यह भी मेरी कामना है कि आपके चिट्ठे द्वारा बहुत लोगों को प्रोत्साहन एवं प्रेरणा मिल सके.

हिन्दी चिट्ठाजगत एक स्नेही परिवार है एवं आपको चिट्ठाकारी में किसी भी तरह की मदद की जरूरत पडे तो बहुत से लोग आपकी मदद के लिये तत्पर मिलेंगे.

शुभाशिष !

-- शास्त्री (www.Sarathi.info)

डॉ चन्द्रजीत सिंह एवं डॉ. किंजल्क सी. सिंह said...

Very Informative.Great!!
Dr. Chandrajiit Singh
c1singh@rediffmail.com
kvkrewa.blogspot.com
indianfoodconcept.blogspot.com

शोभा said...

बहुत अच्छा लिखा है. स्वागत है आपका.

kar lo duniya muththee me said...

बहुत सटीक लिखा है हिन्दी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है निरंतरता की चाहत है समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर भी दस्तक दें

Unknown said...

I like this page, good knowledge, मैं एक Social Worker हूं और Jkhealthworld.com के माध्यम से लोगों को स्वास्थ्य के बारे में जानकारियां देता हूं। आप हमारे इस blog को भी पढं सकते हैं, मुझे आशा है कि ये आपको जरूर पसंद आयेगा। जन सेवा करने के लिए आप इसको Social Media पर Share करें या आपके पास कोई Site या Blog है तो इसे वहां परLink करें ताकि अधिक से अधिक लोग इसका फायदा उठा सकें।
Health World in Hindi