फ़ंसना फ़साना सीरीज - वह ५ प्रश्न

Sunday 4 March, 2007

यह श्रीश ने भी मुझे कहाँ फ़ँसा दिया , आप तो टैग लगा के महोदय खिसक गये और तो और दो दिन पहले चैट रुम मे याद भी दिला गये कि भाई लिखना जरुरी है और खिसकना गुनाह ! खैर जब इतने एहतराम से बाँध ही दिया तो जबाब देने मे भलाई है। हाँ , कल समीर जी भी कुछ अलग तरह के टैग के बारे मे कह रह थे। अब यह टैग श्रीश के टैग से अलग है यह मुझे समझ मे नहीं आया, हो सकता है पिछली किसी पोस्ट मे जिक्र किया हो लेकिन इधर कुछ दिनों से नारद पर जाने का बहुत मौका नहीं मिला, एक तो मेरे पुत्र के सी बी एस सी बोर्ड के परीक्षायें होने के कारण घर पर नेट कनेक्शन कटवा के यहाँ क्लीनिक मे लगवाया लेकिन यहाँ काम मे व्यस्तता के कारण इतनी नेट की गतिविधियाँ संभव नही होती। हाँ , अलबत्ता आज मौका होली की छुट्टी के कारण अवशय लगा है और जाहिर है इसका सदुपयोग पूरा का पूरा कर रहा हूँ। कल रात क्लीनिक से निकलने के पहले पोर्टेबल फ़ायर फ़ाक्स की स्क्राप बुक मे आज के लिये कई दिन पुराने चिट्ठों को पढने के लिए सुरक्षित किया ।
वैसे कल छोटी होली के दिन मूड सुबह से ही घर पर नेट कनेक्शन न होने से बहुत खिन्न था, लेकिन जब दोपहर को अनूप जी का फ़ोन आया तो बहुत ही अच्छा लगा, हिन्दी चिट्ठाकारिता मे यही एक खास बात है कि प्रेम रूपी धागे से हिन्दी चिट्ठाकारी के वरिष्ठ सदस्य जीतू भाई , सृजन जी , अनूप जी , उन्मुक्त जी और समीर जी ने अपने कनिष्ट सदस्यों को बाँधा है इसकी मिसाल मुझे अंग्रेजी चिट्ठाकारी मे नहीं मिलती । आप सब चिट्ठाकारों को होली की बहुत-2 बधाई और अब देखूं कि श्रीश क्या फ़रमा रहे हैं :
१. कम्प्यूटर पर हिन्दी टाइपिंग के बारे में सबसे पहले आपने कब सुना और कैसे, अपने कम्प्यूटर में हिन्दी में सबसे पहले किस सॉफ्टवेयर में/द्वारा टाइप किया और कब, आपको उसके बारे में पता कैसे चला ?
मुझे हिन्दी टाइपिंग के आसान औजारों के बारे मे कुछ भी नहीं मालूम था , कई साफ़्टवेएर आजमाये, सबसे पहले तो पुराने रेमिंटन तरीके से टाइप करने की सोची लेकिन वह तरीका बहुत ही उबाऊ लगा। याहू पर हिन्दी फ़ोरम का सदस्य तो बना और वहाँ साफ़्ट्वेएर का जो लिंक दिया गया उसमे भी मजा न आया। शुएब और जीतू भाई को मेल कर के आसान औजार पूछे लेकिन तब तक मै गूगल पर दोबारा सर्च करने पर श्री देवन्द्र पारख जी का हिन्दी राइटर पा चुका था , अब इसको चलाने कि समस्या थी तो एक दिन जीतू भाई ने याहू मेसेन्जर पर इसको चलाने कि विधि बतायी और तब जा कर तलाश पूरी हुई । जीतू भाई के साथ यह वार्तालाप मैने याहू 360 पर धरोहर के रुप मे रखी है , मुझ जैसे अनाडी की हिदी सीखने की कवायद देखें और मजा लें।


एक दोपहर जितेन्द् चैाधरी के साथ
Jitendra Chaudhary: namaskar ji
prabhat tandon: jitendra ji namaste apke blogs ka avlokan kar ajeeb si sukhad anubhuti hoti hai
Jitendra Chaudhary: dhanyavad
prabhat tandon: mujhe ise bhi khushee tab hoti jab main yeh mail hindi me likh raha hota
Jitendra Chaudhary: to likhiya na
Jitendra Chaudhary: aap yahoo par hai na
prabhat tandon: ha hoon
Jitendra Chaudhary: तो फिर
Jitendra Chaudhary: हिन्दी मे क्यों नही लिख़ पा रहे?
prabhat tandon: kaise likhoon type karne se eng type hota hai
Jitendra Chaudhary: ye leejiye
Jitendra Chaudhary: http://devendraparakh.port5.com/
Jitendra Chaudhary: yahan se download kariye
prabhat tandon: waiise maine abhi hindi writer download kar ke install kiya hai usme help ki kloi file nahin hai kaise use karoon
Jitendra Chaudhary: usme jaise hi aap run karoge
Jitendra Chaudhary: neeche "अ" लिख़ा हुआ आयेग
Jitendra Chaudhary: आयेगा
Jitendra Chaudhary: उसको क्लिक करियेगा
prabhat tandon: hai ayea
Jitendra Chaudhary: तो Show Keyboard map
Jitendra Chaudhary: aayega
prabhat tandon: hai hai
Jitendra Chaudhary: उसको देख़ियेprabhat tandon: ab kya karoon
Jitendra Chaudhary: बस लिख़िये
Jitendra Chaudhary: मजे से
Jitendra Chaudhary: yahoo par sirf yahi chalta hai
Jitendra Chaudhary: ek aur option hai
Jitendra Chaudhary: BARAHA
prabhat tandon: baraha kya
Jitendra Chaudhary: www.baraha.com
Jitendra Chaudhary: is se aap kai bhashaon mein likh sakte hain
Jitendra Chaudhary: lekin ye yahoo par nahi chalta
Jitendra Chaudhary: isme help file kaafi achhi hai
Jitendra Chaudhary: http://baraha.com/html_help/sdk_docs/devtrans_eng.htm
prabhat tandon: key board map se kaise likhoon usme bhi to eng type hota hai
Jitendra Chaudhary: matlab
prabhat tandon: map ke hisab se likh kar kya trnslator ko press karoon
Jitendra Chaudhary: nahi bhai
Jitendra Chaudhary: aap seedhi seedhi likhna shuru kariye
Jitendra Chaudhary: Yahoo messenger ke ander
Jitendra Chaudhary: dekhiye
Jitendra Chaudhary: neeche "अ" kaa rang kaun sa hai?
prabhat tandon: ग्रेएन
Jitendra Chaudhary: theek hai
Jitendra Chaudhary: bas likhna shuru kariye
Jitendra Chaudhary: aa to gaya na
prabhat tandon: अरे येह हिन्दि मे त्य्पे कैसे हो गय
Jitendra Chaudhary: yahi to kamaal hai
Jitendra Chaudhary: bas thora samay lagega
prabhat tandon: अप्ने कैसे किय
Jitendra Chaudhary: maine kahan kiya
Jitendra Chaudhary: aapne kiya sab
prabhat tandon: green se matlab kya
Jitendra Chaudhary: agar green hai to Hindi mein likhega
Jitendra Chaudhary: agar RED hai to English mein
prabhat tandon: oh yeh baat hai phir se try karta hoon
Jitendra Chaudhary: usme Toggle Transilator hai
Jitendra Chaudhary: usko click karne se Hindi/Englsh par switch kar sakte hain
Jitendra Chaudhary: SHIFT+PAUSE is the toggle key
prabhat tandon: toggle translator matlab
Jitendra Chaudhary: hindi 2 english and englsh 2 hindi switching
prabhat tandon: ाब संम्झ आया
Jitendra Chaudhary: ab is se aap kanhi bhi likh sakte ho
prabhat tandon: Thank u jitendra ji hum phir milenge abki correct hindi ke saath namaste
Jitendra Chaudhary: namskar


२. आपका हिन्दी चिट्ठाजगत में आगमन कैसे हुआ, इसके बारे में कैसे पता लगा, पहला हिन्दी चिट्ठा/पोस्ट कौन सा पढ़ा/पढ़ी ? अपना चिट्ठा शुरु करने की कैसे सूझी ?

हिन्दी लिखने का ही मुझे शौक था, चिट्ठाकारी का तो बिल्कुल नहीं , मैने तो हिन्दी मे कभी निबंध तक नहीं लिखे , हाई स्कूल और इन्टर बोर्ड की परीक्षाओं मे कुछ महत्वपूर्ण निंबध रट के जाता था। लेकिन जब जीतू भाई ने मुझे चिट्ठा लिखने को प्रेरित किया तो मै बडी दुविधा मे पडा कि मै क्या लिखूं , फ़िर मेरी फ़ील्ड होम्योपैथी को देखते हुये उन्होने ही राय दी कि इसी से ही पोस्ट शुरु करें। और जाहिर है कि जीतू भाई और शुएब से मैने हिन्दी चिट्ठा पढने की शुरुआत की । शुएब के चिट्ठों से मै बहुत प्रभावित था और शायद इसका कारण यह भी रहा कि मेरे धर्म संबधी अपने विचार शुएब के विचारों से मेल खाते प्रतीत होते थे। यह बात अलग कि मै हिन्दू धर्म की कुरीतियों से खिन्न था और शुएब अपने धर्म की । लेकिन वक्त गुजरने के साथ मुझे यह पक्का यकीन हो गया है कि धर्म ही मानवता का सबसे बडा दुशमन है।

३. चिट्ठा लिखना सिर्फ छपास पीडा शांत करना है क्या ? आप अपने सुख के लिये लिखते हैं कि दूसरों के (दुख के लिये ;-) क्या इससे आप के व्यक्तित्व में कोई परिवर्तन या निखार आया ? टिप्पणी का आपके जीवन में क्या और कितना महत्त्व है ?

दूसरों के दु:ख के लिये तो बिल्कुल ही नहीं , हाल की कई पोस्टों को मुझे हटाना पडा क्योंकि उनको पढने के बाद मुझे बाद मे लगा कि मुझे नहीं लिखना चाहिये या किसी का नाम नहीं खसीटना चाहिये । चिट्ठा लिखना भले ही अपनी छपास पीडा को शांत करना भी हो तब भी श्रीश आप स्वंय देखो कि आप तकनीकी क्लास लगा के हम सब को बिना माँगे सब कुछ दे रहे हो जो हम घंटो नेट पर सिर खपाने के बावजूद नहीं ढूंढ पाते । इसी तरह रवि जी, उन्मुक्त जी और भी अन्य चिठ्ठाकार जो आज दे रहे हैं, वह शायद कल की नींव ही बनेगा। होम्योपैथी से संबधित चिट्ठे से होम्योपैथिक कालेज से निकलने वाले नये चिकित्सकों को मै बहुत कुछ दे सकता हूँ जो उन्हें पुस्तकों मे नहीं मिलेगा , हो सकता है कि आज इसकी उपयोगिता वह न समझें लेकिन आने वाला कल इससे लाभान्वित होगा ऐसा मुझे विशवास है।
रही बात टिप्पणी की, बिल्कुल जरुरी है क्योंकि टिप्पणी के बगैर तो ब्लाग बिल्कुल सूना-2 लगता है।



४. अपने जीवन की कोई उल्लेखनीय, खुशनुमा या धमाकेदार घटना(एं) बताएं, यदि न सूझे तो बचपन की कोई खास बात जो याद हो बता दें।
बहुत सी , लेकिन प्रैकिट्स जब मैने 1986 मे शुरु की तब मेरी इन्टर्नशिप चल रही थी और विधिवत मुझे डिग्री नहीं मिली थी । प्रैकिटिस तो बिल्कुल शुरुआती दौर मे थी और कोई खास भी नहीं । इतवार को उस वक्त मै क्लीनिक खोलता था जबकि अधिकतर चिकित्सक छुट्टी रखते थे । एक इतवार की ही शाम को एक दम्पति अपने एक महीने के बच्चे को दिखाने के लिये लाये , उसकी हालत बहुत ही नाजुक थी और संभवत: वाइरल निमोनिया से पीडित था । कई ऐलोपैथिक चिकित्सकों का इलाज चल चुका था और दो दिन से वह किसी प्राइवेट नर्सिगं होम मे था । एटींबायोटिक , ब्रान्कोडाइलेटर और नेबुलाइजर के लगने के बावजूद भी उसकी हालत मे सुधार नही हो पा रहा था। मै वह केस लेना नही चाहता था, इसका एक खास कारण होम्योपैथी का नये रोगों मे कोई ट्रैक रिकार्ड बहुत अच्छा नही था और दूसरा कि मेरी इन्टर्न्शिप चल रही थी। बावजूद इस बात को समझाने के वह दम्पति जाने को टस से मस न हुये , उस रात शायद मैने लाइकोपोडियम 30 और आयोडियम दी थी। अगली सुबह जब मै देर से क्लीनिक आया तो बाहर बहुत भीड लगी थी, मेरी तो हवा निकल गयी, मन ही मन अपने आप को कोसा। अन्दर क्लीनिक मे आया और डरते-2 पूछा कि क्या हुआ । जब उसके परिवारजनो ने बताया कि बच्चा बिल्कुल स्वस्थ है और वह दवा को लेने आये हैं तो शायद उस क्षण को भुला पाना मेरे लिये आज तक नामुनिकन है।

५. यदि भगवान आपको भारतवर्ष की एक बात बदल देने का वरदान दें, तो आप क्या बदलना चाहेंगे/चाहेंगी ।

हर धर्म को चारदीवारी तक रखा जाये । धर्म इन्सान की व्यक्तिगत पूँजी है, वह किस मत को माननेवाला है , इससे फ़र्क नहीं पडता लेकिन धर्म को छूट देनी बिल्कुल रोक देनी चाहिये । भारत के नियम कानून भारतवासियों के लिये होने चाहिये न कि किसी धर्म विशेष के लिये।
बस इतना ही ।

अब मै किसको फ़ाँसू, हाँ, जीतू भाई
और शुएब
ही ठीक रहेगें । तो चन्द प्रश्न इनसे :
1- चिट्ठाकारी मे आप कैसे फ़ँसे ?
2- जब आप चिट्ठाकारी मे आये होगें तब हिन्दी लिखने के इतने औजार भी नहीं थे, तब उस वक्त किन साफ़्ट्वेएरों का प्रयोग करते थे?
3- आप दोनों बाहर दूर देश मे हैं , वहाँ के व्यक्तिगत अनुभव क्या रहे हैं?
4- और कोई भी रोचक संस्मरण बतायें?

9 comments:

PRAMENDRA PRATAP SINGH said...

मैने आपसे प्रश्‍न किया था पर आपने उत्‍तर नही दिया जबकि मैने आपकों टैंग किये जाने की सूचना भी दी थी, लगता है कि आप केवल बडे बडे लोगों को मानते है।

होली की शुभकामनाऐं

DR PRABHAT TANDON said...

प्रमेन्द्र भाई , आगे स्माईली लगा देते तो बढिया लगता :) मैने इधर पोस्ट बहुत कम ही देखी हैं , इसी कारण शायद छूट गयी होगी अगर चैट रुम मे बताया होगा तब भी मुझे याद नही .सच बात यह है कि आज बडी मुशिकिल से समय निकला तो यह हफ़्ते पुरानी पोस्ट का जबाब देने बैठ गया और यह इसलिये याद रही क्योंकि श्रीश ने मेल द्वारा अवगत कराया था.

PRAMENDRA PRATAP SIN said...

क्षमा चाहूँगा जल्‍दी मे था लगाना भूल गया हूऊँगा

अब लगा देता हूँ,

:)
:)

मनीष said...

Blogspot की पोस्ट में smiley लगाने का क्या उपाय है प्रभात जी ?

रवि said...

"...लेकिन वक्त गुजरने के साथ मुझे यह पक्का यकीन हो गया है कि धर्म ही मानवता का सबसे बडा दुशमन है।..."

यह तो अकाट्य सत्य है. परंतु घर्मांध लोग इसे न तो समझते हैं, न समझना चाहते हैं. आग में घी का काम पंडित, मौलवी, पादरी और ग्रंथी करते हैं जिनके पास रोजगार का कोई अन्य जरिया नहीं होता और वे लोगों को धर्म के नाम पर उल्लू बनाकर अपना पेट पालते हैं और अपनी तिजोरी भरते हैं.

DR PRABHAT TANDON said...

@ मनीष
Blogspot की पोस्ट में smiley लगाने के लिये मास्साब की इस पोस्ट
को देखें.

अनूप शुक्ला said...

बढ़िया है। अब आगे भी फोन सुनने के लिये कान तैयार रखे जायें!

DR HARSHAD RAVAL MD HOMEOPATH said...

This is good thing.
Thank.

Dr Harshad Raval MD[hom]
Honorary consultant homeopathy physician to his Excellency governors of Gujarat India. Qualified MD consultant homeopath ,International Homeopathy adviser, books writer and columnist. Specialist in kidney, cancer, psoriasis, leucoderma and other chronic disease

उन्मुक्त said...

पढ़ कर अच्छा लगा। इतने समय बाद टिप्पणी करने के लिये माफी चाहूंगा।