होम्योपैथिक दवाओं की गुणवत्ता और औषधि की मारक कार्यक्षमता पर विभिन्न घटकों का प्रभाव

Tuesday 19 May, 2009





आस्ट्रिया की एक होम्योपैथिक कम्पनी रेमीडिया होम्योपैथिका की साइट पर मुझे  एक वीडियो देखकर बहुत अचरज हुआ । आरम मेटेलीकम (Aurum Metallicum )/ आरम फ़ोलोवेटेम (Aurum Foliatum )पर इस वीडियो मे कम्पनी  के नुमाइन्दे का कहना है कि गोल्ड के इस होम्यो औषधि मे वह गोल्ड लीफ़ का प्रयोग कर रहे हैं , जहाँ अन्य कम्पनियाँ गोल्ड  को chemically extract कर के दवा बनाने मे प्रयोग करते हैं । तो इसका क्या मतलब हुआ कि अन्य कम्पनिया गोल्ड के इस दवा को गलत ढंग से बना रही हैं । इस संदर्भ में मैटेरिया मेडिका प्यूरा मे हैनिमैन के दृष्टिकोण को भी जानने की इच्छा हुयी  । हैनिमैन लिखते हैं ,

"In this place I will speak only of gold, and not of this metal altered by the ordinary chemical processes, consequently not of it dissolved by the action of acids nor percipitated from its solution (fulminating gold), both of which have been declared to be, if not useless, then absolutely noxious, apparently because they cannot be taken without dangerous consequences when given in what is called a justa dosis, or, in other words, in excessive quantity.

No! I speak of pure gold not altered by chemical manipulations." 

तो जाहिर है कि हैनिमैन गोल्ड को chemically extract के रुप मे लेकर चलने के पक्ष मे नही थे ।

हैनिमैन के समय मे गोल्ड को शुद्ध रुप मे करने के लिये मरकरी का अधिकतर प्रयोग किया जाता रहा था । लेकिन १८८३ के अमेरिकन होम्योपैथिक फ़ारमाकोपिया मे गोल्ड को विचूर्ण बनाने के पहले अम्लीय तरीको से शुद्ध करने की भी बात कही गयी है । देखें यहाँ ।

http://books.google.com/books?id=80WV1tHAEA4C

सन्‌ १८८७ मे बरनेट ने आरम फ़ोलियम की प्रूविगं की , एक शोध पत्र  के जरिये ("Gold as a Remedy in Diseases") बरनेट ने गोल्ड की इस प्रूविगं मे उत्पन्न लक्षणॊं को हैनिमैन द्वारा की गयॊ प्रूविगं के समतुल्य पाया ।

लेकिन कुछ भी हो औषधि की मारक कार्यक्षमता पर विभिन्न घटकों का प्रभाव अवशय पडता है । जडी बूटी किस क्षेत्र से ली गई है , उसकी भौगोलिक परिस्थितियाँ आदि भी कार्य क्षमता को प्रभावित करते हैं । मुझे स्मरण है कि लखनऊ मे आज से लगभग २० वर्ष पूर्व कैसरबाग मे जयहिन्द सिनेमा (  वर्तमान मे जयहिन्द काम्पेल्क्स ) के सामने डा. ऐ.पी.अरोडा जी की हैनिमैन लैब हुआ करती थी । उनका  बनाया गया यूकलेप्ट्स ( Eucalyptus) मदर टिन्चर की  कार्य क्षमता सामान्य ज्वर मे अन्य कम्पनियों के बनाये गये यूकलेप्ट्स टिन्चर से कई अधिक प्रभावशाली थी। यहाँ तक आज बोरोन और बैकसन का यूकलेप्ट्स भी उतना प्रभावशाली नही है। डा. अरोडा इसकी जडी बूटी के लिये पहाडी क्षेत्र के यूकलेप्ट्स  का प्रयोग करते थे जबकि सामान्तया दवा निर्माता मैदानी इलाकों से ही ले  लेते हैं ।

इसी तरह दमे मे प्रयोग होने वाली ब्लाटा का रोल अपने देश के काकरोच से बनाई हुई दवा ( Blataa Orientalis ) मे नही मिलता । ब्लाटा की प्रूविगं अमेरिकन काकारोच ( Blataa Americana )पर हुई थी ।

Anshutz की New, old & forgotten remedies मे gaultheria Q का जो वर्णन मिलता है वैसी gaultheria तेज गंध लिये नही मिलती , मुझे सिर्फ़ एक बार ऐसा gaultheria Q किसी स्टॊर से मिला था और उसके जैसा बढिया दर्द निवारक मैने अन्य कही नही देखा । लेकिन इधर कई सालों से लिये इस दवा का प्रयोग क्वालिटी के अभाव के कारण बंद सा कर दिया है ।

2 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

आप की बात , सोलह आने सही है, जिस पदार्थ की जिस किस्म की प्रुविंग हुई है उसी किस्म से वह उपचार में लाभ देगी। अन्यथा कम देगी या बिलकुल नहीं। हो सकता है वह अन्य प्रभाव भी उत्पन्न करे।

Scientific Research in Homeopathy Triple Blind studies, Double-Blind Randomised Placebo-Controlled Trial, Systematic Reviews & Meta Analysis, Evidence-base | होम्योपैथी-नई सोच/नई दिशायें said...

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