होम्योपैथी उद्भव , विकास और भ्रान्तियाँ -भाग -१

Wednesday, 17 September 2008

होम्योपैथी क्या है ?

स्त्रोत: विकीपीडिया होम्योपैथी , होम्योपैथी नई सोच/नई दिशायें और गूगल वीडियो
होम्योपैथी शब्द यूनानी के दो शब्दों (Homois ) यानि सदृश (Similar ) और पैथोज ( pathos ) अर्थात रोग (suffering) से बना है । होम्योपैथी का अर्थ है सदृश रोग चिकित्सा । सदृश रोग चिकित्सा का सरल अर्थ है कि जो रोग लक्षण जिस औषध के सेवन से उत्पन्न होते हैं , उन्हीं लक्षणॊं की रोग मे सदृशता होने पर औषध द्वारा नष्ट किये जा सकते हैं । यह प्रकृति के सिद्दांत " सम: समम शमयति " यानि similia similbus curentur पर आधारित है ।
होम्योपैथी का उद्भव
 लगभग २०० वर्ष पूर्व जर्मन चिकित्सक डा सैमुएल हैनिमैन ने इस तथ्य को पाया कि स्वस्थ रहते हुये जब उनके द्वारा किसी निशिचित रोग की औषधि दी गई जिससे बीमार व्यक्ति ठीक होता था तो उनमे भी रोग के लक्षण पाये गये । उदाहरण के लिये जब उन्होने सिंकोना छाल को ग्रहण किया जिसमे कुनेन की मात्रा रहती है तो वह बीमार पड गये और उनमे मलेरिया के लक्षण पाये गये । वह यह देख कर चकित रह गये कि सिंकोना का प्रयोग मलेरिया उन्नमूलन के लिये होता है परन्तु उसका स्वस्थ व्यक्ति द्वारा प्रयोग करने पर मलेरिया के लक्षण विधमान हो गये ।

डा हैनिमैन ने प्रत्येक रोग के लक्षण पर पादप, खनिज, पशुओं द्वारा उत्पाद या रसायिनिक मिश्रण से अपने निरंतर प्रयोग करने के बाद पाया कि उनमे नियत रोग के लक्षण आलोकित हुये ।उन्होने पुन: यह देखा कि दो तत्वों के प्रयोग से एक जैसे रोग के लक्षण प्रतीत नही होते । उन्होने यह भी पाया कि प्रत्येक पदार्थ शरीर , मस्तिषक एवं संवेग को प्रभावित करता है ।
अंतत: हैनिमैन ने " सम: समम शमयति " के सिद्दांत को अपनाकर रोगोन्मूलन करना प्रारम्भ किया ।
होम्योपैथी के सिद्दांत एवं नियम

सदृश नियम ( Law of Similar )
यह होम्योपैथी के मूल सिद्दातं मे निहित है । इस नियम के अनुसार जिस औषधि की अधिक मात्रा स्वस्थ शरीर मे जो विकार पैदा करती है उसी औषधि की लघु मात्रा वैसे समलक्षण वाले प्राकृतिक लक्षणॊं को नष्ट भी करती है । इसी से " सम: समम शमयति " वाले सिद्दांत भी प्रतिपादित हुआ है । उदाहरण के लिये कच्चे प्याज काटने पर जुकाम के जो लक्षण उभरते हैं जैसे नाक, आँख से पानी निकलना उसी प्रकार के जुकाम के स्थिति मे होम्योपैथिक औषधि ऐलीयम सीपा देने से ठीक भी हो जाता है ।
एकमेव औषधि ( Single Medicine )
होम्योपैथी मे रोगियों को एक समय मे एक ही औषधि को देने का निर्देश दिया जाता है ।
औषधि की न्यून मात्रा ( The Minimum dose )
सदृश विज्ञान के आधार पर रोगी की चयन की गई औषधि की मात्रा अति नयून होनी चाहिये ताकि दवा के दुष्परिणाम न दिखें । प्रथमत: यह शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को सफ़ल करने मे घटक का काम करता है ।होम्योपैथिक औषधि को विशेष रुप से तैयार किया जाता है जिसे औषधि शक्तिकरण का नाम दिया जाता है ।ठॊस पदार्थों को ट्राच्यूरेशन और तरल पदार्थों को सक्शन प्रणाली से तैयार किया जाता है ।
व्यक्तिपरक और संपूर्ण चिकित्सा ( Individualization & Totality of Symptoms )
यह एक मूल प्रसंग है । यह सच भी है कि होम्योपैथी रोगों के नाम पर चिकित्सा नही करती । वास्तव मे यह रोग से ग्रसित व्यक्ति के मानसिक , भावत्मक तथा शारीरिक आदि सभी पहलूहॊं की चिकित्सा करती है । अस्थमा ( asthma) के पाँच रोगियों की होम्योपैथी मे एक ही दवा से चिकित्सा नही की जा सकती । संपूर्ण लक्षण के आधार पर यह पाँच रोगियों मे अलग-२ औषधियाँ निर्धारित की जा सकती हैं ।
जीवनी शक्ति ( Vital Force )
हैनिमैन ने मनुष्य के शरीर मे जीवनी शक्ति को पहचान कर यह प्रतिपादित किया कि यह जीवनी शक्ति शरीर को बाह्य रुप से आक्रमण करने वाले रोगों से बचाती है । परन्तु रोग्की अवस्था मे यह जीवनी शक्ति रोग ग्रसित हो जाती है । सदृश विज्ञान के आधार पर चयन की गई औषधि इस जीवनी शक्ति के विकार को नष्ट कर शरीर को रोग मुक्त करती है ।
मियाज्म ( रोग बीज ) ( Miasm )
हैनिमैन ने पाया कि सभी पुराने रोगों के आधारभूत कारण सोरा ( psora), साइकोसिस ( sycosis) और सिफ़िलिस ( syphlis ) हैं ।इनको हैनिमैन ने मियाज्म शब्द दिया जिसका यूनानी अर्थ है प्रदूषित करना ।
औषधि प्रमाणन ( Drug Proving )
औषधि को चिकित्सा हेतु उपयोग करने के लिये उनकी थेरापुयिटक क्षमता का ज्ञान होना आवशयक है । औषधि प्रमाणन होम्योपैथी मे ऐसी प्रकिया है जिसमे औषधियों की स्वस्थ मनुष्यों मे प्रयोग करके दवा के मूल लक्षणॊं का ज्ञान किया जाता है । इन औषधियों का प्रमाणन स्वस्थ मनुष्यों पर किया जाता है और इनसे होने वाले लक्षणॊं की जानकारी के आधार पर सदृशता विज्ञान की मदद से रोगों का इलाज किया जाता है ।
संक्षेप मे यह है होम्योपैथी के सिंद्दांत और दर्शन । इसकी रुपरेखा लिखना यहाँ इसलिये आवशयक है क्योंकि आगे होम्योपैथी के विरुद्द विरोध को समझने मे आसानी रहेगी । विरोध के प्रमुख कारणॊं मे एक प्रमुख कारण होम्योपैथिक औषधियों की न्यून मात्रा भी है । होम्योपैथिक औषधियों की न्यून मात्रा को विस्तार मे समझने के लिये औषधि निर्माण की प्रक्रिया को समझना पडेगा । होम्योपैथिक औषधियों मे तीन प्रकार के स्केल प्रयोग किये जाते हैं ।
क) डेसीमल स्केल ( Decimal Scale )
ख) सेन्टीसमल स्केल ( Centesimal Scale )
ग) ५० मिलीसीमल स्केल (50 Millesimial scale)
क) डेसीमल स्केल मे दवा के एक भाग को vehicle ( शुगर आग मिल्क ) के नौ भाग से एक घंटॆ तक कई चरणॊं मे विचूर्णन ( triturate ) किया जाता है । इनसे बनने वाली औषधियों को X शब्द से जाना जाता है जैसे काली फ़ास 6x इत्यादि । 1X बनाने के लिये दवा का एक भाग और दुग्ध-शर्करा का ९ भाग लेते हैं , 2X के लिये 1X का एक भाग और ९ भाग दिग्ध शर्करा का लेते हैं ; ऐसे ही आगे कई पोटेन्सी बनाने के लिये पिछली पोटेन्सी का एक भाग लेते हुये आगे की पावर को बढाते हैं । डेसीमल स्केल का प्रयोग ठॊस पदार्थॊं के लिये किया जाता है ।
ख) सेन्टीसमल स्केल मे दवा के एक भाग को vehicle ( एलकोहल) के ९९ भाग से सक्शन किया जाता है । इनकी इनसे बनने वाली औषधियों को दवा की शक्ति या पावर से जाना जाता है । जैसे ३०, २०० १००० आदि । सक्शन सिर्फ़ दवा के मूल अर्क को एल्कोहल मे मिलाना भर नही है बल्कि उसे सक्शन ( एक निशचित विधि से स्ट्रोक देना ) करना है । आजकल सक्शन के लिये स्वचालित मशीन का प्रयोग किया जाता है जब कि पुराने समय मे यह स्वंय ही बना सकते थे । पहली पोटेन्सी बनाने के लिये दवा के मूल अर्क का एक हिस्सा और ९९ भाग अल्कोहल लिया जाता है , इसको १० बार सक्शन कर के पहली पोटेन्सी तैयार होती है ; इसी तरह दूसरी पोटेन्सी के लिये पिछली पोटेन्सी का एक भाग और ९९ भाग अल्कोहल ; इसी तरह आगे की पोटेन्सी तैयार की जाती हैं ।
आगे जारी ……….

सफ़ेद दाग और होम्योपैथी- आशा की एक किरण -भाग-१ (Leucoderma & homeopathy- an ultimate hope -Part-1)

Tuesday, 14 August 2007

  leucoderma लियकोडर्मा पर पिछली दो पोस्टों से अब की बार कुछ हट कर बात करते हैं। लेकिन यह बिल्कुल आवशयक नही कि मेरे तरीके दूसरे होम्योपैथिक चिकित्सक पसन्द करें और एक राय बनायें । सच तो यह है कि आज होम्योपैथी क्लासिकल और नान -क्लासिकल होम्योपैथी मे बुरी तरह से फ़ँस कर रह गयी है। हर चिकित्सक का औषधि देने का तरीका अलग-2 होता है , भले ही हम अपने को कितने सिद्दांत्वादी कह ले , लेकिन कही न कही हम करते वही हैं जो हम किलीनिकल प्रैकिटिस मे सीखते हैं। क्या क्लासिकल होम्योपैथी गलत है- बिल्कुल नहीं , मेरे यह लिखने का तात्पर्य यह कदापि नहीं है । हैनिमैन ने भी आर्गेनान मे अपने जीवित रहने तक छह बार सुधार किया , लेकिन उसके बाद क्या हुआ ? कुछ दिन पूर्व कलकत्ता के डां शयामल बैनर्जी ने बातों - 2 मे बहुत ही महत्वपूर्ण इशारा किया और मै डा बैनर्जी की बात से काफ़ी हद तक सहमत भी हूँ । बतौर डा बैनर्जी

"अकसर रिपर्टार्जेशन करते समय या तो पोलीक्रेस्ट औषधिया सामने आती हैं या ऐसी औषधियाँ जो कुछ मिलती हुयी या काफ़ी हद तक मिलती प्रतीत होती हु्यी या ऐसी मे वह औषधियाँ जो मियाज्म की पृष्ठभूमि से हैं लेकिन ऐसी औषधियाँ जो नयी और हाल ही मे आयी हैं वह लगभग छूट ही जाती हैं …. ”
यह बात काफ़ी हद तक सच भी है ।

 कुछ इसी तरह के विचार डां देश बन्धु वाजपेजी जी ने मेरी एक पोस्ट सेंकड प्रिसक्र्पशन और सही पोटेन्सी के चुनाव पर रखी थी । आपके अनुसार,

Since commence of Homeopathic doctrine in existence from Medicine of Experiences unto the appearance of the Organon of Medicine 6th edition, Hahnemann have changed many times his doctrine and philosophy, which he laid down in earliest period in their subsequent editions. These changes are itself proved that there is need to make much more changes in the practical way. Why we forget that Boenninghausen convinced Hahnemann for alternation of medicine rule inclusion in Organon. If you go Hahnemannian Life History and also in some writings, Hahnemann himself used and advocated alternation of two remedies at a time. Why you forget the famous trio of Boenninghausen, which is still effective in Spasmodic croup.But due to opposition of the then followers Hahnemann geared back to include this law.

हाल के दिनो मे देखें काफ़ी नयी होम्योपैथिक औषधियाँ प्रयोग के लिये तैयार हैं , लेकिन बात वही आ कर फ़ँस जाती है कि इनका उपयोग करने की जहमत कौन उठाये ।  ओ. बी. जूलियन की मैटिया मेडिका , डा घोष की ड्र्ग्स आफ़ हिन्दुस्तान, ऎन्शुट्ज की रेअर होम्योपैथिक मेडिसिन्स मे बहुत सी नयी औषधियों का समावेश है , उनको व्यवहार मे लाना तो होगा , मगर कैसे ? जब आप उनका उपयोग ही नही करोगे तो कहाँ से वह कसौटी पर उतरेगीं, जबकि इन औषधियों का कार्य कई रोगों मे अधिक त्वरित है। यही हाल बैच फ़्लावर औषधि और मदर टिन्चर के साथ भी है । डां रौजर वान वैन्डर्वुर्ड की कम्पलीट रिपर्ट्री को खोल कर देखें तो बहुत सी औषधियों के क्लीनिकल प्रमाण लियकोडर्मा मे दिखते हैं , यह बात अलग कि इनमे से अधिकांश औषधि भारत मे नही मिलती , और शायद इनका न मिलने का कारण होम्योपैथिक चिकित्सकों द्वारा नयी औषधियों के प्रति अरुचि दिखाना   है ।
लेकिन मैने पाया कि पुराने और जटिल रोगों मे अगर हम क्लासिकल और नान-क्लासिकल होम्योपैथी का संगम ले कर चलते हैं तो उनके परिणाम अधिक सुखद दिखते हैं। मै समझता हूँ कि बहुत से होम्योपैथिक चिकित्सक इनका प्रयोग सफ़लता पूर्वक कर रहे हैं लेकिन बोलने की हिमाकत नही करते क्योंकि फ़िर उनकी टाँग- खिचाई यह क्लासिकल वाले कुछ अधिक ही कर डाल देते हैं ) , तो जाहिर है कि कि मै हैनिमैन और केन्ट के तरीको से थोडा हट कर बात कर रहा हूँ, हाँ , यही सत्य है, कम से कम लियकोडरमा के रोगियों मे मै अपने ही तरीके से चलना पसन्द करता हूँ। हर साल कुछ नये रोगी लियकोडर्मा के मिलते रहते हैं , कुछ इनमे से ठीक होते हैं तो कुछ नही भी और कुछ बिना समय दिये ही जल्दी भाँगने मे भलाई समझते हैं , इतने सालों मे मै अपने कोई रिकार्ड व्यवस्थित न रख पाया लेकिन गत वर्ष होम्पैथ के case analysis साफ़्टवेऐर से लियकोडर्मा के रोगियों की सही ढँग से समीक्षा करने का मौका पडा । इस एक साल के दौरान २२ रोगी लिये गये जिनमें से ७ रोगियों ने १-२ महीने के अन्तराल पर इलाज छोडा , बाकी बचे १५ , इनमे से ७ पूर्णतया ठीक हुये और ४ को कुछ महीने के बाद मना करना पडा क्योंकि इनमे रोग  के पैच काफ़ी बडॆ थे और बाकी बचे ४ जिनका इलाज अभी चल रहा है और रोग मे कमी दिखा रहे हैं।
वैसे जब मै अपने तरीको की ही बात करूँ तो सबसे पहले रोग के प्रमुख कारण ,लियकोडर्मा रोगियों के लिये आहार और पथ्य,  विभिन्न होम्योपैथिक और दूसरी पद्दतियों के चिकित्सकों के मत और  उनके सफ़ल तरीको   पर भी एक चर्चा कर लेना आवशयक समझता हूँ। साथ ही में कुछ टिप्स B.H.M.S. छात्रॊं के लिये भी, विशेष कर रिपर्टाराजेशन करते समय आने वाली दुशवारियों और उनके हल पर भी रहेगीं । एक नजर हम डा सहगल की  "Revolutionized Homoeopathy  यानि इन्कलाबी होम्योपैथी " पर भी डालेगें और साथ ही मे बैच फ़्लावर पर भी एक नजर रहेगी । लेकिन यह सब देखेगें किसी दूसरी पोस्ट में ।  बास आज इतना ही !

क्रमश: आगे जारी .........

 देखें  लियकोडर्मा पर संबधित पोस्ट :


एक अदद डिजिटल कैमेरे की तलाश---- जारी है.....

Tuesday, 7 August 2007

वैसे तो एक अदद  कैमेरे को खरीदने के लिये मै कई महीनों से मन बना रहा हूँ लेकिन मन बनाने से क्या होता है , महँगा , सस्ता , कितने जूम वाला , कितने पिक्सल , भई मेरे समझ मे यह सारे तकनीकी शब्द अधिक नहीं आते । रेट को अगर देखें तो लखनऊ की मार्केट और नेट पर जे. जे. मेहता की साईट में सर्च करने पर कोडक के कैमेरों में रेट का काफ़ी भारी अन्तर साफ़ दिख जाता है । तो क्या करें , लखनऊ  से खरीदें या बाहर से ?


लेकिन चन्द दिन पहले अमित ने कैमेरे लेने के पहले कुछ विचारणीय बातों को ध्यान मे लेने की सलाह दी ,



लेकिन, कैमरा लेने से पहले यह निश्चय करें कि क्या आपको वाकई कैमरा चाहिए? यदि हाँ तो क्या कारण हैं जिनकी वजह से आपको डिजिटल कैमरा चाहिए? इन कारणों की एक सूचि बना लें(आगे भी काम आएगी, कैमरा मॉडल निर्धारित करने में)।


यह मुझे जँची । अपनी लिस्ट बनायी तो समझ मे आया कि मुझे खासकर त्वचा संबधित रोंगों में जैसे लियोकोडर्मा , फ़ंगल संक्रमण आदि मे पेपर तैयार करने के लिये फ़ोटोग्राफ़ की आवशयकता अक्सर पडती है । जो कैमरा अभी मै प्रयोग कर रहा हूँ उसमे फ़ॊटो तो खिचं जाती है लेकिन इन की बारीकियाँ नजर नही आती । और इसके अलावा बाकी मौकों पर तो उसका काम है ही ।


आजकल मेरा भान्जा अनन्त जो इन्फ़ोसीस से अगले महीने जुडने वाला है , लखनऊ भ्रमण के लिये आया हुआ है और साथ मे है उसके कैनन का  S2IS कैमरा। अब इतने बढिया कैमेरे को देखकर तो मेरी उनीदीं आँखों मे ताजगी आ गयी । सोचा कि चलो इससे ही फ़िलहाल हाथ आजमायें । घर की फ़ुलावारी तो आजकल सूनी पडी है , गुलदाउदी के पौधों का रोपण इस सप्ताह बारिश के आरम्भ होते ही कर दिया । गुलमेहंदी के पौधे अभी तो बहुत ही छोटे हैं , हाँ , लेकिन नरगिस मे अबकी बार कुछ जल्द ही फ़ूल आ गये । तो फ़िर किसका फ़ोटो सेशन करें ; हाँ , पक्षियों का यहाँ कोई अकाल नहीं है । पैराकीट ( बजरी ) अपने पूरे शबाब में है यानि प्रजनन के लिये तैयार और इतने रोंमान्टिक मौसम मे कबूतरों मे भी जोडे बनाने की होड सी लगी है । इसी फ़ोटो सेशन की तो  मुझे तलाश थी , जो कल मिल गयी । आप भी देखो और लुत्फ़ उठाओ । हाँ, अधिकतर फ़ोटो अनन्त के ही खीचे हुये हैं ।


[slideshare id=88086&doc=714&w=425]


 एक वीडियो भी जो कैमरे को फ़िन्च के पिंजरे के अन्दर रखकर रिकार्ड किया










 


 

खलील जिब्रान -एक विद्रोही व्यक्तित्व

Thursday, 26 July 2007








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खलील जिब्रान की साहित्यिक कृतियों को मै पहले भी पढ चुका हूँ ,  विद्रोह की ऐसी आँधी  मैने किसी  लेखक मे पहले कभी न देखी। खलील के विद्रोही तेवर इनकी कथाओं मे साफ़ दिखाई पडते हैं . खलील के समग्र साहित्य मे गहरी जीवन अनूभूति , संवेदन शीलता , भावात्मकता , व्यग्यं एवं पाखडं के प्रति गहरा विद्रोह साफ़ दिखता है । हाल ही मे डां महेन्द्र मित्तल द्वारा संपादित और संकलित खलील की श्रेष्ठ कहानियों को दोबारा पढने का मौका मिला । इसमे कोई अतिशयोक्ति नही कि खलील की लेखनी मे आग है । अपनी कथाओं के माधयम से उन्होंने समाज , व्यक्ति , धार्मिक पाखण्ड , वर्ग संघर्ष , प्रेम और कला पर अपनी सारगर्भित लेखनी चलाई है।

खलील के कहानी संग्रह ’स्पिरिटस रिबेलियस ’ ( विद्रोही आत्मायें ) मे उनके विद्रोही स्वर मुखरित हुये थे । सर्वप्रथम यह पुस्तक अरबी भाषा मे छपी थी । बाद मे विशव की अनेक भाषा मे इसका अनुवाद हुआ । उनकी अन्य रचनाओं मे अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित ’ दि मैड मैन ’ , ’ दि फ़ोर रनर’ , ’दि प्राफ़िट’ आदि प्रमुख हैं । खलील की ’स्पिरिटस रिबेलियस ’ ( विद्रोही आत्मायें ) मे जो कथायें संगृहीत थी , उसमे समाज के जीर्ण-शीर्ण और जड हुये स्वरुप पर तीखे प्रहार किये गये थे । चर्च के पुरहोतों ने इस पुस्तक को खतरनाक , क्रान्तिकारी ,और देश के युवको को जहर भरने वाला मानते हुये बेरुत के बाजारों मे सरे आम जलया था ।

kjran  डा महेन्द्र मित्तल द्वारा संग्रहीत इस पुस्तक मे ’स्पिरिटस रिबेलियस ’ ( विद्रोही आत्मायें )  से १४ कहानियाँ ली गयीं है , जैसे ’ आत्मा का उपहार ’ , नई दुलहिन , ’ दोस्त की वापसी ’ , ’ सवेरे की रोशनी ’ , ’ विद्रोही आत्मायें ’ , ’ तूफ़ान ’ , ’ पागल जान ’ , ’ शैतान ’ , ’ गुलामी ’ , कंब्रों का विलाप ’ , ’महाकवि ’ , इन्साफ़ ’ ,  ’ तीन चीटियाँ ’  और ’ पवित्र नगर ’ । ”

 ’ विद्रोही आत्मायें ’ मे कहानी रशीद बेग और गुलबदन की शादी और बाद मे गुलबदन  की बेवफ़ाई पर जाकर टिकती है । रशीद बेग जो बेरुत का समृद्द और धनवान व्यक्ति था , अपने से काफ़ी कम उभ्र की लडकी गुलबदन से निकाह रचाता है , लेकिन नियति को कुछ और ही मन्जूर था , गुलबदन का प्रेम अपने हम उभ्र लडके से हो जाता है जो बहुत ही गरीब था । और तब तक उसे यह सच्चाई समझ आ जाती है कि रशीद बेग उसे सिर्फ़ अपनी भूख मिटाने के लिये इस्तेमाल कर रहा है । लेकिन धर्मशास्त्र उसके आगे राह रोके खडे थे , लेकिन इसके बावजूद भी उसने एक साहसिक निर्णय लिया । आगे एक बानगी देखें , खलील की कलम से ’,

" मै चलता जा रहा था और गुलबदन की आवाज मेरे कानो मे गूंज रही थी ।..........मैने अपने आप से कहा , ’ आजादी के स्वर्ग के सामने से पेड सुंगधित हवा का आंनद ले रहे हैं और सूरज और चांद की किरणों से आनंदित हो रहे हैं । ... इस धरती पर जो चीज है , वह अपनी इच्छा के अनुसार जिंदगी बसर करती है और अपनी आजादी पर फ़ख्र करती है । लेकिन इन्सान अब वैभव से वंचित है , क्योंकि उनकी पाक रुहें दुनिया के तंग विधानों की गुलाम हैं । उनकी रुहों और जिस्मों के लिये एक ही ढाँचे मे ढला कानून बनाया गया है और उनकी इच्छाओं तथा ख्वाहिशों को एक छिपे हुये और तंग कैदखाने मे बंद कर दिया गया है । उनके दिमाग के लिये एक गहरी और अंधेरी कब्र खोदी गई है । अगर कोई उसमे से उठे और उनके समाज और कारनामो से अलग हो जाये तो कहते है कि कि यह आदमी विद्रोही और बदमाश है । यह आदमी बिरादरी से खारिज है और मार डालने लायक है ! लेकिन क्या इंसान को कयामत तक इस सडियल समाज की गुलामी मे जिंदगी बिताते रहना चाहिये या उसे अपनी आत्मा को इन बंधनॊ से मुक्त कर लेना चाहिये ? क्या आदमी को मिट्टी मे पडे रहना चाहिये या अपनी आंखों को सूर्य बना लेना चाहिये , ताकि उसके शरीर की छाया कूडे-करकट पर पडती हुई नजर न आये ? "

’पागल जाँन ’- यह कहानी जाँन  नामक एक सीधे-साधे और भोले ग्रामीण युवक की है जो प्रभु ईशू से बेपनाह प्यार करता है । एक दिन जब वह अपनी बैलों को घास चराने खेतों की तरफ़ ले गया था तो उनमे से एक बैल संत एलिजा मठ के खेतों मे प्रवेश कर गया, प्रभु ईशू की भक्ति मे तल्लीन जान को जरा सा भी इस बात का बोध न हुआ । लेकिन शाम  होते-२ जब वह अपनी बैलों को ढूँढने मे नाकाम रहा तो उसकी नजर संत एलिजा मठ के खेतों मे जाने वाले रास्ते पर पडी । वहाँ खडे एक पादरी से डरते-२ उसने अपनी खोये हुये बैल के बारे मे पूछा , वह पादरी उसे अपने मठ के अन्दर ले गया जहाँ अन्य छोटे बडे कई चोगा धारी पहले से मौजूद थे और बडे गुस्से और हिकारत से उसकी तरफ़ देख रहे थे ।

 उनमे से लाट पादरी ने गुस्से से कहा ,

 "..... तू गरीब है या अमीर , इससे मठ को कुछ  लेना देना नही है । ...अगर तू अपने बैलों को छुडाना चाहता है तो तुझे मठ को तीन दीनार देने होगें । "

जान ने पैसे देने से इन्कार किया और कहा कि एक गरीब चरवाहे पर रहम खाइये ।

लेकिन इस पर लाट पादरी ने कडक कर कहा ,

 " तो फ़िर तुझे अपनी जायदाद का कुछ हिस्सा बेच कर तीन दीनार लाने होगें , क्योंकि संत एलिजा के गुस्से का शिकार बनकर नरक मे जाने की बनिस्बत जमीन जायदाद से महरुम होकर स्वर्ग मे जाना अच्छा है ।"

यहाँ खलील की आग को उसके लेख मे आप स्वत: महसूस कर सकते है । जान के रूप मे खलील जिब्रान तथाकथित धर्मगुरुओं पर जोरदार  निशाना लगाते हैं । चर्च की जगह पर मन्दिर या मस्जिद , पादरी की जगह पर अपने-२ धर्मगुरुओं  को आप रखकर देखें तो यह कहानी आप के अपने-२ समाज के तंग गलियारों मे घूमती हुयी दिखेगी ।

यह सब सुनते ही जान आपे से बाहर हो गया और ललकार कर कहा ,

 " ऐ पाखंडियों ! भगवान ईसा की सिखावन को तुम लोग इसी तरह तोड मरोडते हो ; और इसी तरह अपनी बुराइयों को फ़ैलाने के लिये तुम लोग जिंदगी की पाक परंपराओं को खराब करते हो ... । लानत है तुम पर ! ....धिक्कार है तुम पर , ऐ ईसा के दुशमनों ! तुम अपने  ओंठ प्रार्थना के लिये हिलाते हो लेकिन उसी समय तुम्हारे दिल लालसाओं से भरे होते हैं ।....."

" गर्दिश के मारे हमारे घरों को देखो , जहां बीमार लोग सख्त बिस्तरों पर करहाते रहते हैं ...अपने गुलाम अनुयायियों के बारे मे सोचो तो सही कि उधर वह भूख से तडप रहे हैं और इधर तुम ऐशो-इशरत की जिंदगी बसर कर रहे हो ... उनके बागों के फ़ल खाकर और अंगूरों की शराब पीकर तुम मौज उडा रहे हो ! .....जहरीले नाग के फ़न की तरह तुम अपने हाथ फ़ैलाते हो और नरक का डर दिखा उस बेवा का बचाया हुआ थोडा सा पैसा छीन लेते हो ।....."

जाँन ने गहरी साँस ली और शांति से बोला ,

 " तुम लोग बहुत हो और मै अकेला हूँ । जो भी चाहो , तुम मेरे साथ कर सकते हो । रत के अंधेरे मे भेडिये मेमने को फ़ाडकर खा जाते हैं , मगर उसके खून के धब्बे घाटी के पत्थरों पर दिन निकलने तक बाकी रहते हैं और सूरज सबको उस गुनाह की खबर कर देता है ।"

 ’शैतान ’ कहानी का सार बहुत ही सार्गर्भित और ईशवर और शैतान की परिकल्पना पर रोशनी डालने  वाला है । यह कहानी उत्तरी लेबनान के एक पुरोहित ’पिता इस्मान ’ की है जो गाँव-२ मे घूमते हुये जनसाधारण को धार्मिक उपदेश देने का काम करते थे । एक दिन जब वह चर्च की तरफ़ जा रहे थे तो उन्हें जंगल मे खाई में एक आदमी पडा हुआ दिखा जिसके घावों से खून रिस रहा था । उसकी चीत्कार की आवाज को सुनकर जब पास जा कर पिता इस्मान ने गौर से देखा तो उसकी शक्ल जानी -पहचानी सी मालूम हुयी । इस्मान ने उस आदमी से कहा , ’ लगता है कि मैने कहीं तुमको देखा है ? ’

और उस मरणासन आदमी ने कहा ,

" जरुर देखा होगा । मै शैतान हूँ और पादरियों से मेरा पुराना नाता है ।"

 तब इस्मान को ख्याल आया कि वह तो शैतान है और चर्च मे उसकी तस्वीर लटकी हुई है । उसने अपने हाथ अलग कर लिये और कहा कि वह मर ही जाये ।

वह शैतान जोर से हँसा और उसने कहा ,

" क्या तुम्हें यह पता नहीं है कि अगर मेरा अन्त हो गया तो तुम भी भूखे मर जाओगे ?. ... अगर मेरा नाम ही दुनिया से उठ गया तो तुम्हारी जीवका का क्या होगा ?"

"एक पुजारी होकर क्या तुम नही सोचते कि केवल शैतान के अस्तित्व ने ही उसके शत्रु ’ मंदिर ’का निर्माण किया है ? वह पुरातन विरोध ही एक ऐसा रहस्मय हाथ है , जो कि निष्कपट लोगों की जेब से सोना - चांदी निकाल कर उपदेशकों और मंहतों की तिजोरियों में संचित करता है । "

" तुम गर्व मे चूर हो लेकिन नासमझ हो । मै तुम्हें ’ विशवास ’ का इतिहास सुनाऊगाँ और तुम उसमे सत्य को पाओगे जो हम दोनो के अस्तित्व को संयुक्त करता है और मेरे अस्तित्व को तुम्हारे अन्तकरण से बाँध देता है ।"

" समय के आरम्भ के पहले  प्रहर मे आदमी सूर्य के चेहरे के सामने खडा हो गया और चिल्लाया , ’ आकाश के पीछे एक महान , स्नेहमय और उदार ईशवर वास करता है ।"

" जब आदमी ने उस बडे वृत की की ओर पीठ फ़ेर ली तो उसे अपनी परछाईं पृथ्वी पर दिखाई दी । वह चिल्ला उठा , ’ पृथ्वी की गहराईयों में एक शैतान रहता है जो दृष्टता को प्यार करता है । ’

’ और वह आदमी अपने -आपसे कानाफ़ूसी करते हुये अपनी गुफ़ा की ओर चल दिया , ’ मै दो बलशाली शक्तियों के बीच मे हूँ । एक वह , जिसकी मुझे शरण लेनी चाहिये और दूसरी वह , जिसके विरुद्द मुझे युद्द करना होगा । ’

" और सदियां  जुलूस बना कर निकल गयीं , लेकिन मनुष्य दो शक्तियों के बीच मे डटा रहा - एक वह जिसकी वह अर्चना करता था , क्योंकि इसमे उसकी उन्नति थी और दूसरी वह , जिसकी वह निन्दा करता था , क्योंकि वह उसे भयभीत करती थी । ".............

 

थोडी देर बाद शैतान चुप हो गया और फ़िर बोला ,

" पृथ्वी पर भविष्यवाणी का जन्म भी मेरे कारण हुआ । ला-विस प्रथम मनुष्य था जिसने मेरी पैशाचिकता को एक व्यवासाय बनाया  । ला-विस की मृत्यु के बाद  यह वृति एक पूर्ण धन्धा बन गया और उन लोगों ने अपनाया जिनके मस्तिष्क मे ज्ञान का भण्डार है तथा जिनकी आत्मायें श्रेष्ठ , ह्र्दय स्वच्छ एवं कल्पनाशक्ति अनन्त है । "

"बेबीलोन ( बाबुल ) मे लोग एक पुजारी की पूजा सात बार झुक कर करते हैं जो मेरे साथ अपने भजनों द्वारा युद्द ठाने हुये हैं ।"

" नाइनेवेह ( नेनवा ) मे वे एक मनुष्य को , जिसका कहना है कि उसने मेरे आन्तरिक रहस्यों को जान लिया है , ईशवर और मेरे बीच एक सुनहरी कडी मानते हैं । "

" तिब्बत में वे एक मनुष्य को , जो मेरे साथ एक बार अपनी श्क्ति आजमा चुका है , सूर्य और चन्द्र्मा के पुत्र के नाम से पुकारते हैं । "

" बाइबल्स में ईफ़ेसस औइर एंटियोक ने अपने बच्चों का जीवन मेरे विरोधी पर बलिदान कर दिया । "

" और यरुशलम तथा रोम मे लोगों ने अपने जीवन को उनके हाथों सौंप दिया , जो मुझसे घृणा करते हैं और अपनी सम्पूर्ण शक्ति द्वारा मुझसे युद्द मे लगे हुये हैं । "

" यदि मै न होता तो मन्दिर न बनाये जाते , मीनारों और विशाल धार्मिक भवनों का निर्माण न हुआ होता । "

" मै वह साहस हूँ , जो मनुष्य मे दृढ निष्ठा पैदा करता है "

" मै वह स्त्रोत हूँ , जो भावनाओं की अपूर्वता को उकसाता है । "

" मै शैतान हूँ , अजर-अमर ! मै शैतान हूँ , जिसके साथ लोग युद्द इसलिये करते हैं कि जीवित रह सकें । यदि वह मुझसे युद्द करना बंद कर दें तो आलस्य उनके मस्तिष्क , ह्र्दय और आत्मा के स्पन्दन को बन्द कर देगा ...।"

" मै एक मूक और क्रुद्द तूफ़ान हूँ , जो पुरुष के मस्तिष्क और नारी के ह्र्दय को झकझोर डालता है । मुझसे भयभीत होकर वे मुझे दण्ड दिलाने मन्दिरों एवं धर्म-मठों को भाग जाते हैं अथवा मेरी प्रसन्नता के लिये, बुरे स्थान पर जाकर मेरी इच्छा के सम्मुख आत्म -समर्पण कर देते हैं ।"

" मै शैतान हूँ अजर-अमर  ! "

" भय की नींव पर खडे धर्म - मठॊ का मै ही निर्माता हूँ । .....यदि मै न रहूँ तो विशव मे भय और आनन्द का अन्त हो जायेगा और इनके लोप हो जाने से मनुष्य के ह्र्दय मे आशाएं एंव आकाक्षाएं भी न रहेगीं । "

" मै अमर शैतान हूँ ! "

" झूठ , अपयश , विशवासघात , एवं विडम्बना के लिये मै प्रोत्साहन हूँ  और यदि इन तत्वों का बहिष्कार कर दिया जाए तो मानव- समाज एक निर्जन क्षेत्र-मात्र रह जायेगा , जिसमें धर्म के कांटॊं के अतिरिक्त कुछ भी न पनप पायेगा । "

" मै अमर शैतान हूँ ! "

 " मैं पाप का ह्र्दय हूँ । क्या तुम यह इच्छा कर सकोगे कि मेरे ह्र्दय के स्पन्दन को थामकर तुम मनुष्य गति को रोक दो ?"

" क्या तुम मूल को नष्ट करके उसके परिणाम को स्वीकार कर पाओगे ? मै ही तो मूल हूँ ।"

" क्या तुम अब भी मुझे इस निर्जन वन मे इसी तरह मरता छोडकर चले जाओगे?"

" क्या तुम आज उसी बन्धन को तोड फ़ेंकना चाहते हो , जो मेरे और तुम्हारे बीच दृढ है ? जबाब दो , ऐ पुजारी ! "

 

पिता इसमान व्याकुल हो उठे और कांपते हुये बोले ,

" मुझे विशवास हो गया है कि यदि तुम्हारी मृत्यु हो गयी तो प्रलोभन का भी अन्त हो जायेगा और इसके अन्त से मृत्यु उस आदर्श शक्ति को नष्ट कर देगी , जो मनुष्य को उन्नत और चौकस बनाती है ! "

"तुम्हें जीवित रहना होगा । यदि तुम मर गये तो लोगों के मन से भय का अन्त हो जायेगा और वे पूजा - अर्चना करना छोड देगें , क्योंकि पाप का अस्तित्व न रहेगा ! "

और अन्त मे  पिता इस्मान ने अपने कुरते की बाहें चढाते हुये शैतान को अपने कंधें पर लादा और अपने घर को चल दिये ।

 

 ’खलील जिब्रान ’ से संबधित साहित्य को आप  यहाँ , यहाँ, और यहाँ से आन लाइन पढ सकते हैं।





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विद्रोही

प्रसूता मे दूध का अभाव और होम्योपैथी ( Lactation failure & Homeopathy)

Thursday, 12 July 2007

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डा जयश्री जोशी एक बाल रोग चिकित्सका हैं और महाराष्ट्र के किसी ग्रामीण इलाके मे प्रैकिटिस करती हैं . एलोपैथिक चिकित्सक होने के बावजूद उनका रुझान होम्योपैथी , आयुर्वेदिक और अन्य भारतीय पद्दतियों की तरफ़ अधिक है . हाल ही मे उन्होने ”Lactation failure ’यानि “प्रसूता में दूध का अभाव ” पर एक पोस्ट लिखी थी , देखे यहाँ . कुछ होम्योपैथिक औषधियों का जिक्र उन्होने उस पोस्ट मे किया था , वह मेरे लिये लगभग नई थी , जिनका उपयोग मैने नही किया है , मै अभी तक Ricinus com Q और Lecithin 3x से काफ़ी अच्छे परिणाम निकाल रहा हूँ, इसलिये शायद किसी और नयी औषधि की तरफ़ देखने का मन न हुआ . डा जोशी ने जिन तीन का जिक्र किया था, वह निम्म हैं :
1. गैलेगा आफ़ (Galega officianlis)
2. एसपेरैगैस रेसीमोसा (Asparagus racemosa)
3. विथिनीया सोमिनीफ़ेरा या अशवगन्धा (Withania somnifera)
गत सप्ताह मुझे गैलेगा की प्रमाणिकता देखने का अवसर मिल ही गया , जुडवाँ बच्चे की एक माँ ने जब मुझसे लैक्टेशन समस्या के लिये सलाह माँगी तो हर बार की तरह मैने अपने पुराने विशवस्तों पर निर्भर रहना उचित समझा लेकिन अब कि कोई परिणाम न देखकर गैलगा देने की ठानी , मात्र ४८ घटों के अन्दर गैलगा ने यह समाधान मानो चुटकी मे कर दिया. डां जोशी , आपका धन्यवाद ! लेकिन गैलेगा को छोडकर मुझे अन्य दोनो औषधियों के क्लिनिकल प्रमाण किसी कोश मे नही मिले , यह हो सकता है कि डा जोशी के यह व्यक्तिगत अनुभव रहे हो जो उन्होने अपने रोगियों मे देकर हासिल किये. एक नजर गैलगा की तरफ़ :
1- गैल्र्गा आफ़ (Galega officianlis)

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गैलगा को होम्योपैथिक मैटेरिया मेडिका मे लाने का श्रेय डा. कैरन डी ला कैरी को जाता है . इस औषधि का उल्लेख भारत की होम्योपैथिक फ़ारमाकोपिया और यूनाईटेड स्टेस्ट्स की होम्योपैथिक फ़ारमाकोपिया में है.
होम्योपैथिक उपयोग:
भीषण कमर दर्द , अत्यन्त कमजोरी महसूस करना, रक्तभाव और पाचन क्रिया अव्यवस्थित रहने मे इसके प्रयोग सार्थक है.
इसके अलावा गैलगा का उपयोग प्रसूता मे दूध बढाने मे भी देखा गया है.
गैलगा मे ऐलकैलोडियज (alkaloids) , सैपोनिन (saponnins), फ़्लावोनोड(flavonoids) और टैनिन (tannins)पाये जाते हैं.
गैलगा का एक और उपयोग बढी हुयी शर्करा (blood sugar) को कम करने मे भी है.
पोटेन्सी : Q/1x
इस औषधि को मधुमेह के रोगियों मे प्रयोग करते समय सावधानी रखें और Q की खुराक को सेट करें.

2- ऐसपैगस रैसीमोसा ( Asparagus racemosa)
asparagus-racemosus1.jpg
3- अशवगन्धा ( Withania somnifera)
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ऐसपैगस रैसीमोसा ( Asparagus racemosa) और अशवगन्धा (Withania somnifera) के लिये यहाँ देखें.

लैकेटेशन से संबधित कम्पलीट रिपर्टरी और सिन्थिसिस रिपर्टरी पर उपलब्ध संकलन को देखने के लिये नीचे दिये चित्र पर किल्क करें . ( pdf आधारित इस फ़ाइल को देखने के लिये एडोब रीडर का प्रयोग करें )
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