होम्योपैथी का बचपन ओर उसकी तरुणता दोनो के ही रास्ते बहुत ही पथरीले रहे है। हैनिमैन जो कि स्वंय एलोपैथिक चिकित्सक थे, एक दिन एक “मेटिरिया-मेडिका” का अनुवाद करते समय उन्होनें देखा कि स्वस्थ शरीर में यदि सिनकोना की छाल का सेवन किया जाये,तो कम्पन ओर ज्वर पैदा हो जाता है, ओर सिनकोना ही कम्पन ओर ज्वर की प्रधान दवा है। यही हैनिमैन की नवीन चिकित्सा का मूल सूत्र हुआ। इसके बाद ,इसी सूत्र के अनुसार ,उन्होने कितने भेषज-द्र्व्य् का सेवन किया ओर उनसे जो-जो लक्षण दिखाई देते,उनकी उन्होनें परीक्षा की। साथ ही किसी रोग मे वे ही सब लक्षण दिखाई देते,तो उसी भॆषज-द्र्व्य् को देकर वे रोगी को रोग मुक्त करने लगे। होम्योपैथी के मूल में एक प्राकर्तिक सिद्दात निहित है। लैटिन में इसे similia smilibus curentur ( रुचि का उपचार रुचि से ही हो) कहा जाता है। तत्पयर यह है कि किसी भी रोग का निदान करने के लिये किसी ऐसी ओषधि की खोज की जानी चाहिये,जो स्वस्थ मनुषों पर उसी रोग के लक्षण उत्पन्न करने में समर्थ हो। उदाहरणार्थ जब कोई स्वस्थ मनुष्य cannabis indica (भाग) का सेवन करता है,तो वह मति-भ्रम का शिकार हो जाता है। वह हंसता है तो हंसता ही रहता है,पास की वस्तु बहुत दूर रखी दिखाई देती है,बात करता है,तो लगातार बक-बक करने लगता है,पेशाब बूदं-बूदं टपकता है ओर साथ में जलन भी होती है। होम्योपैथिक सिद्दातं के अनुसार यदि किसी रोग में ये लक्षण हों ,तो इसका निदान होम्योपैथिक ओषिधि-cannabis indica से सम्भव है,जो भांग से तैयार की जाती है।
इस प्रकार हम इस निष्कर्ष पर पहुचे-
1) होम्योपैथी मूल भूत प्राकर्तिक सिद्दातों पर आधारित है।
2) ओषिधियां रोग उत्पन्न कर सकती है।
3) किसी ओषधि के पूरे प्रभाव को जानने के लिये उसका परीक्षण स्वस्थ मनुषों पर किया जाता है।
4) किसी भी रोग का इलाज करने के लिये उस ओषिधि का चयन होता है,जिसमें वह लक्षण हों,जो रोग में हो।
किसी स्वस्थ मनुष में,ओषधि देने के पशचात जो भी मानसिक ओर शारीरक लक्षण उत्पन्न होते हैं,उनकी चर्चा materia medica में की जाती है।( materia medica यानी लक्षणों का शब्द कोश)
मैनें शुरु मे लिखा कि होम्योपैथी कि राह बहुत ही पथरीली रही है, कारण जर्मनी में हैनिमैन को उनके समकक्ष चिकित्सकों ने टिकने ना दिया,ओर आज भी सरकारी उपेक्षा का शिकार होम्योपैथी ही रही है,चाहे इन्टर्नेट पर लैन्सट की रिपोर्ट जो होम्योपैथी को अमान्य ओर बकवास चिकित्सा पद्दति करार देती है,इसके बावजूद भी होम्योपैथी अपनी जगह बनाये हुये है।
2 comments:
डा. प्रभात जी,
आपका होमीयोपैथी के विषय में लिखने का प्रयत्न सही कदम है| अभी तक अंतरजाल पर स्वास्थ्य सम्बन्धी साइटें, चर्चा-समूह् और चिट्ठे लगभग नहीं के बराबर हैं| आपके इस क्षेत्र में अगुवाई करने का बहुत सकारात्मक असर होगा और अनेकानेक लोग इस विषय पर हिन्दी में लिखना आरम्भ करेंगे| इससे जनसामन्य को बहुत लाभ पहुँचेगा|
कभी इस विषय पर भी लिखिये कि कब एलोपैथी ठीक है, कब आयुर्वेद, कब प्राकृतिक चिकित्सा और कब होमियोपैथी?
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