Sunday 26 April, 2009

आज से २० वर्ष पूर्व होम्योपैथिक दवाओं का निर्माण कार्य आसान और कम खर्चीला था और इसी दौर मे कलकत्ता की अधिकाशं कम्पनियों  का सिक्का होम्योपैथिक दवा इन्डस्ट्री मे चलता रहा । सन्‌ १९९० के आस पास बदलाव की हवा चली , बाहरी कम्पनियों का आना एक के बाद एक शुरु हुआ , इसी दौर मे फ़्रान्स की बोरोन ( Boiron ) ने अपने देश से अनुबंध किया। हाल के दिनों मे  जर्मनी की विल्मर शवाबे ( इन्डिया ), बैकसन , रालसन , आर.एस. भारगव और बायो फ़ोर्स  ने भी दवा इन्डस्ट्री मे अपनी जगह बनायी । आज कलकत्ता की अधिकाशं होम्योपैथिक कम्पनियाँ उत्तर भारत मे तो कम से कम नजर नही आती । एक समय होम्योपैथिक को मजबूत और सस्ता आधार देने वाली कम्पनियों का सफ़ाया कम से कम कलकत्ता के अलावा शेष भारत मे तो हो ही चुका है । C.C.R.H. ( सेन्ट्र्ल काउन्सिल आफ़ होम्योपैथी ) और केन्द्र सरकार के नये नियमों के चलते अब होम्योपैथिक दवाओं पर मूल्य नियंत्रण आसान  नही रहा ।

होम्योपैथिक दवा इन्डस्ट्री मे नये बदलाव और गुणवत्ता  नियंत्रण क्या हैं इसको समझने के लिये यहाँ , यहाँ और यहाँ देखें । बोरोन इन्डिया की यूनिट पर एक नजर के लिये इस वीडियो को अवशय देखें :

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